- गौरव चौहान
मेट्रो प्रोजेक्ट सरकार के लिए सफेद हाथी बन चुका है। भोपाल के लोग मेट्रो की सवारी कब से कर सकेंगे यह अभी तय नहीं हो पाया है। उधर, स्थिति यह है की प्रोजेक्ट का खर्च बढ़ता ही जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि मेट्रो के लिए यात्री कहां से मिलेंगे इसका अता-पता किसी को नहीं है। आलम यह है कि शहर में मेट्रो ट्रेन के यात्री तलाशने के लिए पिछले 10 साल में सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है। मेट्रो कंपनी एक बार फिर दिल्ली की फर्म से यही सर्वे दोबारा करवा रही है। इस बार 5 करोड़ का भुगतान होना है।
शहर का मेट्रो प्रोजेक्ट 2018 में मंजूर हुआ था, और इसका पूरा होना 2022 में था। लेकिन अब अफसरों ने घोषणा की है कि यह मार्च 2027 तक पूरा होगा। यह 5 साल की देरी लागत में वृद्धि करेगी, जिससे कंपनी को नुकसान होगा और लोगों को सुविधा में विलम्ब होगा। जब मेट्रो की दोनों लाइनें करोंद से एम्स और भदभदा से रत्नागिरी तक पूरी तरह से ऑपरेटिव होंगी, तब ही लोगों को वह राइडरशिप मिलेगी। आम आदमी को अंतिम माइल कनेक्टिविटी देने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। अफसरों ने लागत कम करने के लिए उपयुक्त जमीनों का उपयोग करने का सुझाव दिया है, जहां पार्किंग के लिए जमीन उपलब्ध है, वहां कमर्शियल स्पेस का विकास भी किया जा सकता है।
अबकी बार सर्वे पर 5 करोड़ खर्च
भोपाल मेट्रो ट्रेन के लिए यात्री कहां से आएंगे इसके लिए एक और सर्वे कराया जाएगा। गौरतलब है कि पूर्व में किए गए सर्वे में प्राइवेट कंसल्टेंट्स ने पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के जरिए सरकार को लोक लुभावना सपने दिखाए हैं। वर्ष 2014 में मेट्रो रेल की डीपीआर तैयार होने के बाद मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने यात्रियों की उपलब्धता के लिए सर्वे करवाया गया। बदले में सवा करोड़ से ज्यादा का भुगतान हुआ। मेट्रो कंपनी एक बार फिर दिल्ली की फर्म से यही सर्वे दोबारा करवा रही है। इस बार 5 करोड़ का भुगतान होना है। यही हाल लो फ्लोर बसों का है। बीसीएलएल भी प्रसन्ना पर्पल, रैडिकल इंफ्रा के जरिए यात्रियों की तलाश के लिए भारी भरकम भुगतान कर सर्वे करवा चुका है।
अब तक सर्वे
सरकार ने अब तक विभिन्न कंपनियों से मेट्रो प्रोजेक्ट का सर्वे करवाया है। वर्ष 2012 में पहली बार प्रोजेक्ट की फीजिबिलिटी रिपोर्ट बनी। वर्ष 2013 में रोहित गुप्ता एसोसिएट और जर्मन की एलआरटीसी कंपनी ने डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाना शुरू की। वर्ष 2014 में मेट्रो की डीपीआर रोहित गुप्ता एसोसिएट ने रिपोर्ट तैयार की। कंपनी के 32 करोड़ बकाया हैं। वर्ष 2016 में इंदौर की मेहता एसोसिएट को ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट यानी भविष्य के यात्रियों की तलाश के लिए सवा करोड़ से अधिक का भुगतान हुआ। केंद्र सरकार शहरी आवासीय मंत्रालय के अधीन काम करने वाली फर्म अर्बन मास ट्रांजिट कंपनी को इस बार नए सिरे से मेट्रो के यात्री तलाश करने का काम दिया गया। प्रदेश मेट्रो रेल कंपनी इसके बदले 5 करोड़ का भुगतान करेगी। भुगतान में प्रदेश में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम मजबूत करने के लिए कंपनी अपने कंसल्टेंट की रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। एमडी मेट्रो रेल कॉरपोरेशन सीबी चक्रवर्ती का कहना है कि मेट्रो ट्रेन एक बड़ा प्रोजेक्ट है। हर भाग की एजेंसी तय है। हमारी भी पूरी टीम है और लगातार हम मॉनिटरिंग करके काम को पूरा करते हैं। यही हाल लो फ्लोर बस का भी रहा। भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड ने जवाहरलाल नेहरु अर्बन रिन्यूअल मिशन के तहत वर्ष 2013 में प्रसन्ना पर्पल कंपनी को ऑपरेशन का काम दिया। कंपनी ने यात्री सर्वे कर बसों का संचालन किया। इसके बदले सरकारी खाते से बस खरीद कर कंपनी ने स्वयं चलाई एवं मुनाफा कमाया। वर्ष 2018 में नए रूट एवं यात्री तलाश के लिए भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड ने भोपाल की ही रैडिकल इंफ्रा नामक कंपनी को सर्वे का काम दिया। सवा दो करोड़ से अधिक का भुगतान भी किया।
2500 करोड़ बढ़ी लागत
भोपाल के मेट्रो प्रोजेक्ट की लागत अब करीब 9500 करोड़ हो जाएगी। कौंसिल ऑफ कंसल्टिंग सिविल इंजीनियर्स के वाइस प्रेसिडेंट, स्ट्रक्चर इंजीनियर डॉ. शैलेंद्र बागरे के मुताबिक इस प्रोजेक्ट का पहला रूट 14.19 किमी का होगा, जबकि दूसरा रूट 12.88 किमी का होगा। वर्तमान में यह प्रोजेक्ट 6941.40 करोड़ रुपये की लागत में है। केंद्र ने भोपाल और इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट को मंजूरी के साथ 14,442 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।