- सहकारी समितियों के संचालक मंडलों के चुनाव के लिए फॉर्मूला तैयार…
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पा रहे हैं। हाई कोर्ट के निर्देश पर इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हुई, लेकिन सदस्य सूची ही नहीं बन पाई, इसलिए चुनाव फिर टल गए हैं। खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों के व्यस्त होने के कारण कार्य प्रभावित हुआ। उधर, हाईकोर्ट के दबाव में सरकार चाहती है कि जल्द से जल्द चुनाव कराए जाएं। उधर, भाजपा ने सहकारी समितियों के संचालक मंडलों के लिए चुनाव के विकल्प की खोज लगभग पूरी कर ली है। इसके तहत निर्वाचन की बजाय संचालक मंडलों के सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं। इस फॉर्मूले पर आज भाजपा में मंथन कर मुहर लगाई जाएगी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्ष 2013 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के चुनाव हुए थे। इसके बाद से प्रशासक ही पदस्थ हैं। सहकारिता चुनाव को लेकर सरकार पर अदालत का दबाव बना हुआ है। हाईकोर्ट के दबाव में सरकार ने जुलाई से सितंबर तक चार चरणों में चुनाव का कार्यक्रम भी घोषित किया था। मगर मानसून को आगे कर चुनाव चुपचाप से दबा दिए गए। सरकार को परेशानी से बाहर निकालने का जिम्मा संगठन ने उठाया है। प्रदेश संगठन ने आज सहकारिता के नए-पुराने दिग्गजों को भोपाल बुलाया है। यहां प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के अलावा प्रदेश प्रभारी डॉ. महेंद्र सिंह और सह प्रभारी सतीश उपाध्याय सहकारिता के 15 दिग्गजों के साथ इस मामले पर मंथन करेंगे। इस बैठक में चुनाव का विकल्प खोजा जाना है। संगठन का प्रस्ताव है कि सहकारिता क्षेत्र में संचालक मंडलों के सदस्यों की नियुक्ति कर दी जाए है। इससे समय भी बचेगा और समितियों और संचालक मंडल में लंबे समय से पदस्थ प्रशासकों की जगह सरकार अपने प्रतिनिधि पदस्थ कर सकेगी। सूत्रों के मुताबिक कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी चुनाव न होते देख प्रदेश भर में समितियों के सदस्यों की नियुक्ति दबे पैर बीते महीनों से चल रही है। ढाई हजार से ज्यादा समितियों के 11-11 सदस्य बनाए जा चुके हैं। इनमें से कई ने जिला और प्रदेश के संचालक मंडलों के लिए दावेदारी की तैयारी पूरी कर ली है। अब संगठन से इस वैकल्पिक प्रक्रिया द्वारा हरी झंडी मिलते ही सरकार नियुक्तियां कर सकती है। इससे अदालत द्वारा तय समय सीमा में निर्वाचन प्रक्रिया भी पूर्ण हो जाएगी। प्रदेश में कृषि सहित सभी क्षेत्रों में करीब 55 हजार सहकारी समितियां हैं। जिनमें 2018 से ही प्रशासक ही काम संभाल रहे हैं।
आज फॉर्मूले पर लगेगी मंथन
भाजपा ने सहकारी समितियों के संचालक मंडलों के चुनाव के लिए जो फॉर्मूला तैयार किया है उस पर आज मंथन होगा। जानकारों का कहना है कि सरकार को नियुक्ति का अधिकार है। कृषि, डेयरी, मस्त्य पालन, मार्केटिंग फेडरेशन सहित करीब आधा दर्जन क्षेत्रों में किसान प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्यों का चुनाव करते हैं। इनमें से ही जिला और फिर प्रदेश के संचालक मंडल बनते हैं। सहकारिता अधिनियम में सरकार को अधिकार है कि वह चाहे तो सदस्यों की सीधी नियुक्ति कर सकती है। इसके लिए प्राथमिक समितियों के सदस्य बनाए जाते हैं। इन्हीं में से फिर जिलों के संचालक मंडल के सदस्य पर चुन लिये जाते हैं और अंत में प्रदेश स्तरीय संचालक मंडल के 11 सदस्य चुने जाते हैं। मंगलवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय में होने वाली बैठक में अप्रत्यक्ष प्रणाली से संचालक मंडलों के चयन पर मुहर लगाई जाने की संभावना है। संयोजक भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ मोहन राठौर का कहना है कि अदालत का दबाव है चुनाव तो समय से करना ही होंगे। प्रक्रिया क्या हो, इस पर संगठन आज चिंतन करेगा।
11 वर्षों से टल रहे हैं चुनाव
प्रदेश की सहकारी समितियों से लगभग 50 लाख किसान जुड़े हुए हैं। प्रदेश में 4,534 प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियां हैं। इनके चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था। इसके बाद सरकार ने चुनाव नहीं कराए, जिसके कारण जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के भी चुनाव नहीं हुए। जबकि, प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव कराए जाने का प्रावधान है। चुनाव न होने की सूरत में पहले 6 माह और फिर अधिकतम 1 वर्ष के लिए प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यह अवधि भी बीत चुकी है। इसको लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 26 जून से नौ सितंबर तक चार चरण में चुनाव का कार्यक्रम जारी किया था।