- शहडोल, छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट, धार और झाबुआ आदिवासियों में आक्रोश
भोपाल/गणेश पाण्डेय/बिच्छू डॉट कॉम। लोकसभा चुनाव की ठीक पहले अपर मुख्य सचिव वन जेएन कंसोटिया के 27 मार्च को निकाले गया आदेश भाजपा को महंगा ना पड़ जाए। इस आदेश को लेकर शहडोल, छिंदवाड़ा, मंडला, बालाघाट, धार और झाबुआ के मतदाताओं में आक्रोश है। वैसे पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से ही इस वर्ग का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ता नजर आ रहा है। एसीएस के आदेश से आदिवासियों और वनवासियों में हडक़ंप है। इस आदेश से वनवासियों और आदिवासियों के मन में यह संदेश ‘घर’ कर रहे हैं कि सरकार उनके हक के साथ-साथ रोजगार छीनने पर आमादा है।
दरअसल पहले जो काम सीधे वन विभाग के माध्यम से आदिवासियों और वन समितियों को दिया जाता था, वह काम अब ठेकेदारों के माध्यम से किया जाएगा। वन मंत्रालय द्वारा इस संबंध में प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बाल प्रमुख को आदेश जारी कर दिए हैं। इसे लेकर आदिवासियों और वनवासियों में काफी नाराजगी है। उनका कहना है कि सरकार द्वारा अब ठेकेदारों को काम देकर उनसे रोजगार का अवसर छीना जा रहा है। वन ग्राम में रहने वाले वनवासियों और आदिवासियों से पहले वन विभाग कार्य करता था लेकिन अब जंगल में होने वाले समस्त निर्माण और पौधारोपण से जुड़े कार्य टेंडर के माध्यम से ठेकेदारों से कराए जाएंगे।
जबकि अभी तक वन विभाग में ठेका प्रथा लागू नहीं हुई थी। जंगल के होने वाले सारे कार्य वन समिति के माध्यम से वहां के स्थानीय वनवासियों और आदिवासियों की मदद से पूरे कराए जाते थे। लेकिन अब जंगल में भी ठेका प्रथा लागू होने से रोजगार छीनने के साथ-साथ उनके शोषण की संभावना भी बढ़ गई है। वन मंत्रालय के इस आदेश का विरोध मध्य प्रदेश रेंजर्स संगठन ने भी किया है।
डीएफओ को निर्देश जारी
पूरे प्रदेश सहित छिंदवाड़ा जिले में भी वन विभाग के समस्त वानिकी, क्षेत्रीय और तकनीकी कार्य ठेका पद्धति यानि की निविदा के माध्यम से कराई जाने की तैयारी पूरी की जा चुकी है। इसके लिए सभी डीएफओ को निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं। वन विभाग में ठेका प्रथा लागू होने से वन क्षेत्र से सटे इलाकों में निवास करने वाले वहां के वनवासियों और आदिवासियों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो जाएगा। वन समितियां सिर्फ नाम मात्र की होगी। जिनके पास रोजगार के लिए कोई विकल्प नहीं होगा।
अगर रोजगार छीना तो क्या करेंगे आदिवासी और वनवासी
वन विभाग द्वारा जंगल के नजदीक रहने वाले ग्रामीण क्षेत्र के वनवासियों और आदिवासियों को कार्य और रोजगार के अवसर देकर उनका जंगल से पलायन रोका जाता था। ताकि प्राचीन सभ्यता और संस्कृति जीवित रहे। वनवासियों और आदिवासियों से पौधारोपण में गड्ढे खुदाई, तालाब और कंटूर निर्माण, पौधे लगाना, फायर लाइन बनाना, निंदाई-बुआई जैसे कार्य के माध्यम से इन्हें रोजगार का अवसर दिया जाता था। इसके बदले इन्हें राशि आवंटित होती थी, जो सीधे इनके खातों में जाती थी। इसका एक लाभ यह भी था कि वन क्षेत्र में किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश नहीं होता था, जिससे जंगल को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचता था ना ही किसी जंगली जानवर का शिकार होता था। लेकिन अब इस नए आदेश के मुताबिक ठेकेदारों का जंगल पर राज होगा। वे वनवासियों के अलावा कहीं से भी मजदूर लाकर जंगलों में काम कर मोटा मुनाफा कमाएंगे। यानी कि वन समिति और वनवासियों का हिस्सा अब ठेकेदार खाएंगे।
तो फिर डीएफओ बन जायेंगे सिर्फ एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
वन मंत्रालय के इस नए आदेश के मुताबिक वन विभाग के कार्य निविदा के माध्यम से होंगे। सभी वन मंडल स्तर पर होने वाले कार्यों के लिए टेंडर निकाले जाएंगे साथ ही जंगल की सीमा के अंदर भारी ठेकेदारों को प्रवेश की अनुमति होगी। इससे जंगल में वन्य प्राणियों का शिकार,वन संपदा को नुकसान सहित अन्य घटनाएं भी सामने आएगी। बाउंड्री वाल निर्माण, भवन निर्माण,नर्सरी से जुड़े कार्य, पौधारोपण, गड्ढे की खुदाई, वन मार्ग उन्नयन, तालाब निर्माण और अन्य कार्य अब वन विभाग की जगह ठेकेदारों से कराया जाएगा, यानी की डीएफओ सिर्फ एग्जीक्यूटिव इंजीनियर की तरह इन ठेकेदारों पर निगरानी रखेंगे और अपनी रिपोर्ट तैयार करेंगे।