श्रीमंत का साथ देना… भारी पड़ा कई नेताओं को

  • आम चुनाव में टिकट के लिए बना दिए गए बेगाने
  • गौरव चौहान
श्रीमंत

एक कहावत है कि न घर के रहे, न घाट के। यह कहावत उन आठ नेताओं पर पूरी तरह से फिट बैठ रही है, जो श्रीमंत के साथ दलबदल कर अपनी पार्टी छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए थे। यह वे नेता हैं , जिनकी वजह से ही भाजपा की करीब साढ़े तीन साल पहले सत्ता में वापसी हो सकी थी। उस समय भाजपा में केन्द्रीय नेताओं से लेकर प्रदेश के बड़े नेताओं की आंखो के नूर बने यह नेता अब उनके लिए पूरी तरह से बेगाने हो गए हैं।
यही वजह है कि इस बार उन्हें तमाम प्रयासों के बाद भी भाजपा ने टिकट देना तक मुनासिब नहीं समझा है। इसकी वजह से इन नेताओं की हालत अब उन बेगानों की तरह हो गई है, जिनकी कोई पूछ परख नहीं होती है। फिलहाल इस तरह के आठ नेता हैं, जिनमें से सात तो ऐसे हैं, जिन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रति अपनी पूरी निष्ठा दिखाते हुए उनके कहते ही एक झटके में अपनी विधायकी त्याग दी थी। जिन विधायकों ने विधायकी छोड़ी थी, उनमें से  कुछ का भाग्य अच्छा निकला, जो उपचुनाव जीत कर फिर से विधायक बन गए , तो कुछ के भाग्य ने ऐसा धोखा दिया कि, वे न तो उपचुनाव में जीत दर्ज कर सके और न ही जब आम विधानसभा चुनाव आए तो टिकट ही पा सके। इसकी वजह से वे महज 15 महीने के लिए ही विधायक बन कर रह गए। भाजपा नेताओं ने इनमें से आठ नेताओं को टिकट देने के लायक तक नहीं समझा है। अब यही नेता भाजपा के लिए पूरी तरह से बेगाने बन गए हैं। इनमें श्रीमंत समर्थक एक मंत्री ओपीएस भदौरिया भी शामिल हैं। उनके बारे में माना जा रहा था कि मंत्री होने की वजह से ऐनकेन प्रकारेण उनका टिकट हो ही जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
भटौरिया मेहगांव से 2018 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने थे। इसके बाद वे श्रीमंत के साथ बीजेपी में शामिल हुए और इस्तीफा दे दिया था। उपचुनाव जीते और मंत्री भी बने। लेकिन पांच साल में ही ये बेमानी हो गए और बीजेपी ने इनका टिकट काट दिया। यह बात अलग है कि इनमें से कई चेहरों को उपचुनाव में मिली हार के बाद भी उन्हें निगम मंडलों की कमान देकर सत्ता में भागीदारी देकर उपकृत किया गया।
इन नेताओं को भी नहीं मिला टिकट
भांडेर की विधायक रक्षा सिरौनिया ने भी श्रीमंत के लिए अपनी विधायकी दांव पर लगा दी थी। इस्तीफा दिया और उपचुनाव में जीत भी हासिल हुई। हालांकि उपचुनाव में वे मामूली अंतर से ही जीत दर्ज कर सकीं थीं। लेकिन अब बीजेपी ने मौजूदा विधायक होने के बाद भी उन्हें टिकट देने लायक ही नहीं समझा। उधर, गिर्राज दंडोतिया दिमनी से 2018 में पहली बार विधायक चुने गए । वे भी श्रीमंत के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे। कुछ दिन मंत्री भी रहे, लेकिन इसके बाद हुए उपचुनाव में उन्हें जीत नहीं मिल सकी। अब पार्टी ने इनका भी टिकट काट दिया इसी तरह से ग्वालियर पूर्व से पहली बार विधायक बने मुन्नालाल गोयल की तो किस्मत ही खराब रही। वे चार चुनाव लड़े तब कहीं जाकर जैसे तैसे विधायक बन सके। वे भी 15 महीने में ही श्रीमंत के साथ दलबदल कर गए। इसके बाद उपचुनाव में उन्हें भी जनता ने नकार दिया। इसके बाद अब भाजपा ने उन्हें टिकट देने लायक भी नहीं समझा। गोहद से रणवीर जाटव का यही हाल है। रणवीर बमुश्किल दूसरी बार विधायक बने।
श्रीमंत के साथ वे भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। दूसरी बार की विधायकी 15 महीने की ही रही। इस्तीफा दिया और उपचुनाव में जीत नहीं सके। अब उनकी टिकट काट दी गई है। उनकी जगह लाल सिंह आर्य को टिकट दिया गया है। आर्य वही भाजपा नेता हैं, जिन्हें रणवीर ने 2018 के आम विधानसभा चुनाव में हराया था। ऐसे ही एक अन्य नेता हैं,जसवंत जाटव। वे अंबाह से 2018 में विधायक का चुनाव जीते थे। उन्हें भी श्रीमंत का प्रेम ले डूबा। जाटव ने भी दलबदल किया और विधायकी पद से इस्तीफा  दे दिया। बाद में उपचुनाव हार गए और अब टिकट भी हनंी मिल सका है। इसी तरह से नेपानगर से पहली बार 2018 में विधायक बनी सुमित्रा कास्डकर का हाल है। वे कांग्रेस में अरुण यादव की करीबी मानी जाती थीं, लेकिन उन्होंने अचानक कांग्रेस छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया था। इसके बाद उनके द्वारा इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ा गया, जिसमें वे जीती भी , लेकिन अब जब टिकट की बारी आयी तो उन्हें टिकट ही नहीं दिया गया। यही हाल राहुल  सिंह लोधी का भी है। 2018 में हुए आम विधानसभा चुनाव में राहुल ने जयंत मलैया जैसे दिग्गज को हराकर खूब वाह-वाही बटोरी थी। उन्होंने कभी कांग्रेस न छोडऩे के दावे भी किए थे, इसके बाद भी उनका मन कांग्रेस में नहीं लगा और वे भाजपा में शामिल हो गए। विधायकी से इस्तीफा देकर उपचुनाव लड़ा और चुनाव हार गए। अब बीजेपी ने इनका टिकट काटकर फिर जयंत मलैया को टिकट दे दिया गया है।

Related Articles