गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। विधानसभा चुनाव में भले ही अभी सात माह का समय है, लेकिन अभी से दावेदार सामने आना शुरु हो गए हैं। ऐसे में भोपाल भी इससे अछूता नहीं है। भाजपा जिले की छह विधानसभा सीटों की बात की जाए तो भाजपा के लिए पुराने शहर की उत्तर सीट सबसे कठिन मानी जाती है। इस सीट पर भाजपा की लहर के बाद भी लगातार कांग्रेस विधायक आरिफ अकील जीतते आ रहे हैं। यही वजह है कि इस बार भाजपा की नजर इस सीट पर लगी हुई है। यह ऐसी सीट है जिस पर भाजपा बीते पंाच चुनाव से नए चेहरों पर दांव लगाती रही है, लेकिन जीत हासिल नहीं हो सकी है। इसके बाद भी इस सीट पर ही भाजपा के सबसे अधिक दावेदार बने हुए हैं। वहीं , जिले की अन्य सीटों पर भी जहां भाजपा विधायक हैं, उन पर भी कई-कई नेताओं द्वारा दावेदारी की जा रही है। माना जा रहा है कि चुनावी जमावट और टिकट के लिए जातीय, क्षेत्रीय और सियासी गणित साधने में जुटी भाजपा इस बार कई सीटों पर नए चेहरों पर दांव लगाने की रणनीति पर काम कर रही है।
भोपाल उत्तर सीट की बात की जाए तो मौजूदा विधायक कांग्रेस के आरिफ अकील का स्वास्थ्य नाजुक बना हुआ है। अगर इसकी वजह से वे चुनावी मैदान में नही उतरते हैं तो भाजपा की राह कुछ हद तक आसान हो सकती है। भाजपा इस बार उत्तर में कट्टर हिंदू नेता की छवि वाले प्रत्याशी पर दांव खेल सकती है। इनमें हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा और सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम सत्ता-संगठन की चर्चा में आ चुके हैं। इन दो चेहरों के अलावा उत्तर में आलोक शर्मा, भक्ति शर्मा, दुर्गेश केशवानी, चेतन भार्गव के अलावा जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी की भी दावेदारी बनी हुई है। माना जा रहा है कि यह ऐसे नाम हैं, जिनमें से किसी एक नाम पर ही संगठन मुहर लगाएगा। यह विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद अब तक भाजपा को एक बार ही जीत हासिल हो सकी है। इस सीट पर आरिफ अकील की पकड़ इससे ही समझी जा सकती है कि वे एक बार निर्दलीय और पांच बार कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके हैं। इसी तरह से मध्य विधानसभा सीट भी बीते चुनाव में गलत टिकट की वजह से भाजपा के हाथ से निकल गई थी। इस सीट को भाजपा फिर से अपने पास लाना चाहती है। इस बीच इस सीट पर पूर्व विधायक ध्रुव नारायण सिंह की स्वाभाविक दावेदारी बनी हुई है। उनके अलावा यहां से पूर्व विधायक और बीता चुनाव हारने वाले सुरेन्द्र नाथ सिंह ,सीमा सिंह और नेहा बग्गा का नाम भी दावेदार के रुप में सामने आ रहा है। अगर हुजूर सीट की बात की जाए तो इसे भाजपा के गढ़ के रुप में जाना जाता है। इस सीट पर मौजूदा विधायक रामेश्वर शर्मा का वैसे तो टिकट तय माना जा रहा है , लेकिन अगर उन्हें उत्तर सीट पर भेजा जाता है तो यहां से भगवानदास सबनानी और भाजपा के कार्यालय मंत्री राघवेंद्र शर्मा में से किसी को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। इसी तरह से दक्षिण-पश्चिम सीट पर शैलेंद्र शर्मा, राहुल कोठारी, नेहा बग्गा, जगदीश यादव, किशन सूर्यवंशी के अलावा पूर्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता अपनी बेटी का नाम आगे बढ़ा रहे हैं। गोविंदपुरा में विधायक कृष्णा गौर के अलावा आलोक शर्मा, सुमित पचौरी की भी दावेदारी बनी हुई है। नरेला से मौजूदा विधायक व मंत्री विश्वास सारंग ही हैं। इसी तरह से बैरसिया में विधायक विष्णु खत्री के अतिरिक्त किशन सूर्यवंशी व मोहिनी शाक्यवार की दावेदारी है।
बढ़ी सियासी गर्मी
भाजपा प्रदेश महामंत्री भगवान दास सबनानी को इंदौर के संभागीय प्रभार से कुछ दिन पहले ही मुक्त किया गया है। इसके पीछे की वजह अधिकृत रूप से तो कोई सामने नहीं आयी है , लेकिन माना जा रहा है कि वे इस बार पार्टी के भोपाल में विधायक पद के उम्मीदवार होंगे। इसके बाद से ही भोपाल की सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। संगठन में प्रभावशाली और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा के करीबी होने के साथ ही उनके पक्ष में सिंधी समुदाय को होना भी है। वैसे भी भोपाल में भाजपा करीब 6 दशक बाद सिंधी उम्मीदवार के नाम पर गंभीर दिख रही है। यह बात अलग है कि भोपाल में हर सीट पर कई-कई मजबूत दावेदार उभर रहे हैं। इसकी वजह से पार्टी के सामने नया संकट खड़ा होता दिख रहा है। इनमें वे सीटें भी शामिल हैं, जिन पर अभी भी भाजपा विधायक हैं। गौरतलब है कि हाल ही में राजधानी में हुए अखिल भारतीय सिंधी सम्मेलन में संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत को बुलाकर सबनानी अपनी ताकत और तैयारी का संकेत दे चुके हैं। भोपाल में 1967 में जनसंघ के टिकट पर अर्जुनदास गुरजानी विधायक चुने गए थे। उनके बाद भाजपा ने विधानसभा चुनाव में सिंधी समाज से किसी को आगे नहीं बढ़ाया, जबकि कांग्रेस की ओर से चार सिंधी प्रत्याशी आ चुके हैं। भाजपा ने हाल ही में संगठन के कुछ पदाधिकारियों को मौजूदा दायित्व से मुक्त कर उनको चुनावी क्षेत्र में फोकस करने के संकेत दिए हैं। माना जा रहा है कि संगठन के मौजूदा पदाधिकारियों में महामंत्री सबनानी के अलावा उपाध्यक्ष आलोक शर्मा, सीमा सिंह, जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी और मंत्री राहुल कोठारी के अलावा करीब 10-12 नेता ऐसे हैं, जो दावेदारी में जुटे हैं। संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी टिकट की खातिर अपने मौजूदा पद भी छोड़ सकते हैं।
26/04/2023
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