सडक़ों और अस्पताल का मामला भी अधर में
भोपाल/चिन्मय दीक्षित/बिच्छू डॉट कॉम। मिशन 2023 के लिए भाजपा सरकार ने विकास का नया मॉडल प्रस्तुत करने का निर्णय लिया था। इसके तहत पूर्व में चल रहे विकास कार्यों के अलावा हर विधानसभा क्षेत्र में मंगल भवन, खेल मैदान, सडक़ें और अस्पताल का उन्नयन और निर्माण कराया जाना था। कुछ विधानसभा क्षेत्रों में इन कार्यों का भूमिपूजन भी हुआ, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ पाया। सूत्रों का कहना है कि सरकार ने जिस गति से इस काम की शुरूआत की थी, वह उतनी ही तेजी बंद हो गया। आज स्थिति यह है कि विधानसभा क्षेत्रों में पुरानी सडक़ों का उन्नयन तक नहीं हो पाया है। गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के लिए राज्य की भाजपा सरकार ने करीब एक साल पहले ही चुनावी राह पर विकास का काम करना तय कर लिया था। इसके तहत विधानसभा आधारित विकास की गाइडलाइन तय हुई, लेकिन अधिकतर मामलों में विकास अधूरा ही रह गया। वजह ये कि प्रशासनिक तौर पर काम होता रहा, जिससे हर विधानसभा स्तर पर मंगल भवन, खेल मैदान, सडक़ें और अस्पताल का मामला अधर में ही रहा है। विधानसभा स्तर पर विकास का मॉडल इससे पूरी तरह पूरा नहीं हो सका। अब चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में जहां पर काम हुआ वहां तो विकास के रिपोर्ट कार्ड में अच्छे अंक आ सकते हैं, लेकिन बाकी जगह पर दिक्कतें आ सकती हैं।
नहीं मिल पाया बजट
मिशन 2023 के तहत भाजपा ने विकास को मुद्दा बनाया है। पार्टी केंद्र और राज्य सरकार के विकास कार्यों का जमकर प्रचार कर रही है। लेकिन विधायकों के हाथ खाली हैं। भाजपा विधायकों का कहना है कि सरकार ने विधानसभा क्षेत्र में मंगल भवन, खेल मैदान, सडक़ें और अस्पताल का उन्नयन और निर्माण करने की बात तो की लेकिन ,बजट नहीं मिला। इस कारण विधानसभा विकास का मॉडल धरा का धरा रह गया। सरकार ने बड़ी योजनाओं के लिए बजट तो रखा, लेकिन विधानसभा मॉडल पर काम करने में दिक्कतें आईं। सरकार व विभाग के स्तर पर प्रशासनिक मॉडल संभाग, जिला, ब्लॉक, तहसील स्तर पर काम होता है इसलिए विधानसभा वार काम करने को लेकर निचले स्तर तक प्लानिंग नहीं हो सकी। सडक़ों के अलावा बाकी सेक्टर में बजट की कमी से काम अटके। दरअसल, विधानसभा स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाकर चुनावी बिसात मजबूत करने की जगह हितग्राही सेक्टर पर ध्यान दिया गया है। लाड़ली बहना, किसान सम्मान निधि, चरण पादुका योजना, सीखो कमाओ योजना सहित अन्य योजनाएं लाई गईं। बड़े वर्ग पर फोकस किया गया। इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधित मॉडल को स्थानीय स्तर पर ही छोड़ा गया।
रोडमैप बना, लेकिन अमल नहीं
जानकारों का कहना है कि विधानसभा विकास मॉडल के लिए रोडमैप तो तैयार किया गया लेकिन , उस पर अमल नहीं हो सका। इस बार भाजपा ने बड़ी सडक़ों पर फोकस करने के बजाय विधानसभावार सडक़ों की प्लानिंग की। छोटी सडक़ों के लिए ज्यादा बजट दिया गया। इस पर ही ज्यादा काम हुआ। हालांकि कांग्रेस विधायकों के मामले में बजट की दिक्कत रही। इसलिए कांग्रेस की अपेक्षा भाजपा विधायकों वाले क्षेत्रों में ज्यादा काम हुआ। सरकार ने हर विधानसभा में एक विकसित खेल मैदान तैयार करने के रोडमैप पर भी काम किया था।
इसमें खेल मैदान में बच्चों के लिए खेल संबंधित सुविधाएं भी जुटाई जानी थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इस मामले में पहले से जिन विधानसभा इलाकों में खेल मैदान हैं, केवल वहीं पर काम हुआ। बाकी काम नहीं हो सका। वहीं सरकार ने हर विधानसभा में सामुदायिक मंगल भवन बनाने की प्लानिंग की थी । यह सामुदायिक भवन का ही एक स्वरूप था, लेकिन इस पर करीब साठ फीसदी ही काम हो सका है। इसमें भी पहले से विकासखंड स्तर पर बने भवनों के कारण काम हुआ। वजह ये कि विधानसभा मॉडल पर अधिकतर जगह पर भवन मंजूर नहीं हो पाया। विधायक निधि के जरिए जरुर विधानसभा स्तर पर यह बनाए गए हैं।
पुराने पूरे नहीं, नए वादों की भरमार
प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस दोनों ही मुफ्त की योजनाओं के सहारे वोटरों को साधने में जुटे हुए हैं। भाजपा की सरकार जहां लाड़ली बहना योजना के जरिए आधी आबादी के वोटों पर नजरें गड़ाए हुए है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी नारी सम्मान योजना और मुफ्त बिजली का पिटारा खोलकर चुनावी नैया पार लगाने की कोशिश शुरू कर दी है। राजनीतिक दलों को चुनावों में जीत के लिए सरकारी योजनाओं से कहीं ज्यादा मुफ्त की योजनाओं पर ज्यादा भरोसा है। शायद यही वजह है कि चुनावी साल वाले मप्र में दोनों प्रमुख दल यानी कांग्रेस और भाजपा वोटरों को मुफ्त की योजनाओं के जरिए लुभाने में लग गए हैं। लेकिन विडंबना यह है कि पुराने वादे अभी भी अधर में हैं और नए वादों की भरमार लगी हुई है। सत्ता परिवर्तन के बाद 28 सीटों पर अलग-अलग घोषणा-पत्र भाजपा ने जारी किए थे। 19 सीटों पर भाजपा को जीत मिली, लेकिन चुनावी घोषणा-पत्र पर 55 से 60 फीसदी ही अमल हो सका। खास तौर पर सड़क, बिजली और पानी के अलावा अन्य वादों को लेकर अनदेखी रही। सडक़ें और ब्रिज के वादे जरूर पूरे हुए, लेकिन बाकी कई अधूरे हैं।