अल्पसंख्यक बन… स्कूल शिक्षा के अधिकार का उड़ा रहे मजाक

 स्कूल शिक्षा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र सरकार का लक्ष्य है कि प्रदेश का हर बच्चा अच्छी और सस्ती शिक्षा पाए। इसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाने के लिए शिक्षा के अधिकार का उपयोग किया जा रहा है। लेकिन स्कूल संचालकों ने शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मिलकर स्कूल को अल्पसंख्यक घोषित करवाकर गरीब बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। नियमों की इस विसंगति पर मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सवाल उठाया है। आयोग ने स्कूल शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर आरटीई नियमों में संशोधन करने की अनुशंसा की है। जानकारी के अनुसार अधिकारियों की मिलीभगत से प्रदेश के 777 और राजधानी भोपाल के 76 निजी स्कूलों ने अपने आप को अल्पसंख्यक घोषित किया है और शिक्षा के अधिकार के तहत होने वाली प्रवेश प्रक्रिया से खुद को बाहर कर लिया। है। जबकि, स्थिति यह है कि इन स्कूलों में अधिकतर (करीब 90 से 99 प्रतिशत) विद्यार्थी बहुसंख्यक ही अध्ययन कर रहे हैं। गौरतलब है कि आरटीई के तहत इस वर्ष प्रदेश के 26340 निजी स्कूलों में दो लाख 74 हजार सीटों के लिए 25 प्रतिशत सीटों पर प्रवेश के लिए दो लाख 308 आवेदन आए हैं। अब तक एक लाख 53 हजार 220 सत्यापन हुए हैं, यानी 76 प्रतिशत आवेदकों का सत्यापन हो पाया है। दस्तावेजों के सत्यापन नौ जुलाई तक होंगे। 14 जुलाई को ऑनलाइन लॉटरी के माध्यम से सीटों का आवंटन कर प्रवेश दिया जाएगा।
आरटीई नियमों में संसोधन की मांग
मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पत्र में लिखा है कि कई बड़े निजी स्कूल अपनी प्रबंधन समिति में अल्पसंख्यक सदस्यों की संख्या बताकर हर साल आरटीई के दायरे से बाहर हो जाते हैं। इससे कमजोर और वंचित वर्ग के बच्चों को अच्छे स्कूलों में दाखिला नहीं मिल पाता। आयोग ने अनुशंसा की है कि इन बच्चों के हित को देखते हुए सरकार ऐसा नियम बनाए, जिससे आरटीई के दायरे से कोई भी स्कूल केवल कमेटी के सदस्यों की संख्या के आधार पर बच न सके। प्रविधान के तहत अल्पसंख्यक स्कूल आरटीई के दायरे में नहीं आते। यह छूट संविधान की धारा-29, 30 के तहत दी जाती है। कोविड काल में प्रदेश के 1508 निजी स्कूल बंद होने से आरटीई के तहत प्रवेशित 12195 बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए हैं। साथ ही इन स्कूलों की सीटें इस वर्ष आरटीई प्रवेश प्रक्रिया में शामिल नहीं है। आरटीई नियंत्रक रामाशंकर तिवारी कहते हैं कि निजी स्कूल प्रबंधन समिति में अधिक संख्या में अल्पसंख्यक सदस्यों को रखकर आरटीई के दायरे से बाहर हो जाते हैं। इसके लिए वे अल्पसंख्यक का प्रमाण पत्र जमा करते हैं। शासन स्तर पर आरटीई कानून में संशोधन की आवश्यकता है।  बाल आयोग के सदस्य ब्रजेश चौहान का कहना है कि राज्य शिक्षा केंद्र प्रदेश के सभी निजी स्कूल आरटीई के दायरे में आए, इसके  लिए शासन आरटीई के नियमों में संशोधन करके ऐसा नियम बनाए कि कोई भी कमजोर एवं वंचित वर्ग का बच्चा बड़े स्कूलों में पढ़ाई करने से वंचित ना हो सके।
साल दर साल बढ़ रहा आंकड़ा
स्कूलों के अल्पसंख्यक घोषित करने के इस खेल में अधिकतर बड़े-बड़े निजी स्कूल शामिल हैं। वे अल्पसंख्यक संस्था होने का हवाला देकर शिक्षा के अधिकार अधिनियम के दायरे से बच निकलते हैं। इसके लिए वे राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्था आयोग, नई दिल्ली या जनजातीय कार्य विभाग से जारी प्रमाणपत्र जमा कर अपने संस्था को अल्पसंख्यक बताते हैं। राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों का कहना है कि हर साल अल्पसंख्यक स्कूलों की संख्या बढ़ती जा रही है। प्रदेश में पांच साल पहले तक 400 से 500 तक अल्पसंख्यक स्कूल थे। इस साल आंकड़ा 700 से अधिक हो गया है। निजी स्कूल अपनी प्रबंधन समिति में अल्पसंख्यक सदस्यों की संख्या बढ़ा रहे हैं, जबकि स्कूलों में 50 प्रतिशत अल्पसंख्यक बच्चों का प्रवेश भी होना चाहिए, तब वे आरटीई के दायरे से बाहर होंगे।

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