- मोहन सरकार भी चली शिवराज सरकार की राह पर
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र प्रदेश में नई सरकार में विकास की गति और तेज हो गई है। योजनाओं-परियोजनाओं को समय सीमा में पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। खासकर सरकार का फोकस सिंचाई परियोजनाओं पर है। सरकार की कोशिश है कि सिंचाई परियोजनाओं को समय पर पूरा कर लिया जाए ताकि सिंचाई का रबका बढ़ने से प्रदेश अनाज उत्पादन में रिकॉर्ड बना सके। लेकिन विडंबना यह है कि प्रदेश की सिंचाई परियोजनाएं संविदा अधिकारियों और इंजीनियरों के भरोसे हैं। ऐसे में हजारों करोड़ की ये परियोजनाएं समय पर पूरा हो सकेंगी कहा नहीं जा सकता। दरअसल, सरकार ने पदोन्नति न होने के कारण अधिकारियों-कर्मचारियों के असंतोष को देखते हुए उच्च पदों का कार्यवाहक प्रभार देने का विकल्प अपनाया है। निरीक्षण करने से लेकर अन्य कार्यों की जिम्मेदारी विभाग के इंजीनियरों पर है, पर इसका मुखिया ही संविदा पर है। ऐसे में प्रदेश में हजारों करोड़ रुपये की सिंचाई परियोजनाओं पर काम चल रहा है। जल संसाधन विभाग के माध्यम से सरकार ने वर्ष 2025 तक 65 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा है। इसकी पूर्ति के लिए निरीक्षण करने से लेकर अन्य कार्यों की जिम्मेदारी विभाग के इंजीनियरों पर है, पर इसका मुखिया ही संविदा पर है। इस मामले में अब मोहन सरकार भी शिवराज की राह पर चलने लगी है। गौरतलब है कि शिशिर कुशवाहा की संविदा अवधि समाप्त होने पर विभाग ने फिर प्रमुख अभियंता पद पर संविदा नियुक्ति देकर शिरीष मिश्रा को पदस्थ किया है। मिश्रा अधीक्षण यंत्री पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि विभाग में 10 अधीक्षण यंत्री कार्यरत हैं। इसके पहले लोक निर्माण विभाग में भी शालिगराम बघेल को प्रमुख अभियंता बनाया था। वे भी मूल रूप से अधीक्षण यंत्री थे और उन्हें प्रभारी प्रमुख अभियंता बनाया था। सरकार ने पदोन्नति न होने के कारण अधिकारियों-कर्मचारियों के असंतोष को देखते हुए उच्च पदों का कार्यवाहक प्रभार देने का विकल्प अपनाया है। गृह, जेल, स्कूल शिक्षा, सहकारिता सहित अन्य विभागों में यह व्यवस्था लागू हो चुकी है। चूंकि, अधिकारी पदोन्नत वेतनमान ले रहे हैं, इसलिए इसमें कोई वैधानिक अड़चन भी नहीं है।
पदोन्नति बंद होने से बिगड़ी स्थिति…
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि यह स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि, प्रदेश में 2016 से पदोन्नतियां बंद हैं। जो जिस पद पर तब था, अब भी है। यदि समय रहते पदोन्नतियां होती रहती हैं तो निर्माण विभागों में प्रभार या फिर संविदा नियुक्ति देने जैसी स्थिति नहीं बनती। नियमानुसार सभी अधिकारी उतनी सेवाएं दे चुके हैं, जितनी उच्च पद पर पदोन्नति के लिए आवश्यक है। प्रदेश में पदोन्नतियां नहीं होने के कारण संवर्ग प्रबंधन पूरी तरह से गड़बड़ा गया है। निर्माण विभागों में स्थितियां सबसे खराब हैं। जल संसाधन हो या फिर लोक निर्माण विभाग, यहां अधीक्षण यंत्री को मुख्य अभियंता का प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है। जल संसाधन विभाग में अभी तक शिशिर कुशवाहा, जो मूल रूप से अधीक्षण यंत्री थे, उन्हें संविदा नियुक्ति देकर प्रमुख अभियंता बनाया गया। जैसे ही कुशवाहा की संविदा अवधि पूरी हुई तो दो दिन पहले शिरीष मिश्रा को संविदा नियुक्ति देकर प्रमुख अभियंता बना दिया गया। जबकि, विभाग में 10 अधीक्षण यंत्री कार्यरत हैं। यही स्थिति लोक निर्माण विभाग की भी है। शिवराज सरकार में शालिग्राम बघेल को प्रभारी प्रमुख अभियंता थे, जो प्रभारी मुख्य अभियंता थे। नियमित प्रमुख अभियंता विभाग में केवल आरके मेहरा हैं, जिन्हें मोहन सरकार में शालिगराम बघेल को हटाकर प्रमुख अभियंता पदस्थ किया है। वे भी अक्टूबर 2024 में सेवानिवृत्त हो जाएंगे। उधर, विभाग में जीपी मेहरा एक मात्र नियमित मुख्य अभियंता हैं, जो इसी माह सेवानिवृत्त हो रहे हैं। इसके बाद कोई भी नियमित मुख्य अभियंता विभाग में नहीं रह जाएगा। अभी सभी परिक्षेत्रों में मुख्य अभियंता का प्रभार अधीक्षण यंत्रियों के पास है।