बेकाम साबित हो रही है मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद

गुणवत्ता परिषद
  • शिकवा शिकायतों के बाद भी विभाग नहीं ले रहे गुणवत्ता परिषद को जांच देने में रुचि

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकारी स्तर पर होने वाले तमाम कामों को लेकर हर रोज विभागों के पास से लेकर सरकार तक ढेरों शिकवा शिकायतें पहुंच रही हैं, लेकिन इसके बाद भी विभागों द्वारा कामों की जांच मप्र कार्यगुणवत्ता परिषद को नही दी जा रही है। इसकी वजह से अब तो गुणवत्ता परिषद को लेकर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। इसकी वजह है बीते एक साल से गुणवत्ता परिषद बेकाम बनी हुई है। यह बात अलग है कि इसकी वजह से परिषद में पदस्थ अफसर और कर्मचारियों की मौज बनी हुई हैं। उन्हें बगैर किसी काम के वेतन मिल रहा है। दरअसल वर्ष 2022 में भंग हुए मुख्य तकनीकी परीक्षक (सीटीई) के बाद इसे परिषद में बदल दिया गया था। हद तो यह है कि बगैर काम के परिषद का गठन कर दिया गया और उसकी कमान तत्कालीन शिव सरकार ने अपने चहेते पूर्व आईएएस अफसर अशोक शाह को महानिदेशक बनाकर सौंप दी थी। हद तो यह भी है कि एक साल बाद भी परिषद का न तो कोई बाइलॉज और न ही नियम तैयार किए गए हैं। इसके बाद भी सरकारी खजाने को परिषद में तैनात कर्मचारियों पर हर माह बड़ी रकम खर्च करनी पड़ रही है। इसमें उनके लिए वाहन से लेकर अन्य तरह की सुविधाएं भी शामिल हैं। प्रदेश में यह हाल तब बने हुए जबकि सरकार का खजाना खाली है और प्रदेश में तमाम निर्माण विभागों के 50 हजार काम चल रहे हैं। जिन विभागों के काम चल रहे हैं उनमें लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग शामिल हैं। इन विभागों द्वारा सडक़ों के निर्माण से लेकर सरकारी भवनों पानी की टंकी और सिचाई परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है। दरअसल सरकार ने इन कार्यों की क्वालिटी जांचने के लिए कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया था। गौरतलब है कि मौजूदा समय में परिषद में 22 कर्मचारी पदस्थ है , जिन पर हर माह करीब 25 लाख रुपए तक खर्च आता है।
जांच फाइलें खा रही हैं धूल
बुंदेलखंड पैकेज सहित विभिन्न विभागों के 12 सौ निर्माण कार्य के भ्रष्टाचारों की जांच सीटीई को सौंपी गई थीं, जिसकी जांच का काम चल रहा था , कि अचानक से सरकार ने सीटीई को बंद करने का निर्णय ले लिया। इसके बाद जांच से संबंधित फाइलों को उनके विभागोंं को लौटा दिया गया। इसके बाद से यह फाइलें विभागों में धूल खा रही हैं। जिन विभागों के कामों में भ्रष्टाचार की शिकायतें थीं, उन पर संबधित विभाग काम करने को तैयार नहीं हैं, लिहाजा, शिकायतकर्ता अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं , बल्कि भ्रष्टाचार करने वाला सरकारी महकमे के हौसले भी बुलंद हो रहे हैं।
नहीं है कार्रवाई का अधिकार मांग
अहम बात यह है कि गठित की गई परिषद के बाद दोषियों पर कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है। परिषद इस अधिकार के लिए शासन को पत्र भी लिख चुकी है, लेकिन इस पत्र का क्या हुआ कोई नहीं जानता है। इसकी वजह है सामान्य प्रशासन का वह रुख , जिसमें कार्रवाई का अधिकार विभाग के पास ही रखना चाहती है। परिषद ने निर्माण सहित अन्य विभागों से जानकारी मांगी थी, लेकिन एक भी विभाग ने तो परिषद को कोई जवाब दिया और ना ही उन्होंने कोई जानकारी भेजी। उधर इस मामले में परिषद का कहना है कि दस विभागों के निर्माण कार्यों की जांच की है, कंप्लायंस रिपोर्ट आना बाकी है। इस रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।  उधर सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है कि मेरी शिकायत पर बुंदेलखंड पैकेज की जांच सीटीई के जरिए रेंडम की गई। विस्तार से जांच के लिए मामले को ईओडब्ल्यू को दिया गया, लेकिन ईओडब्ल्यू ने कोई जानकारी ही नहीं दी है।

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