- एमएफपी से निर्मित औषधि उत्पाद के सैंपल लगातार हो रहे फेल’

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
वन औषधि उत्पादों की गुणवत्ता के लिए देशभर में ख्यात मप्र लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र (एमएफपी) की साख लगातार गिर रही है। इसकी वजह यह है कि एमएफपी से निर्मित औषधि उत्पाद के सैंपल लगातार फेल हो रहे हैं। इसके कारण केंद्र की छवि को बट्टा लग रहा है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए संघ के एमडी बिभाष ठाकुर ने हाल ही में दो डॉक्टरों को नोटिस जारी किया है।
इनमें डॉ. संजय शर्मा और डॉ. विजय सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। गौरतलब है कि मप्र लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र बरखेड़ा पठानी भोपाल में स्थित है। यहां निर्मित उत्पादों के सैंपल परीक्षण में एमएफपी पार्क की प्रयोगशाला एवं शासकीय आयुष प्रयोगशाला ग्वालियर में लगातार फेल हो रहे हैं। पिछले तीन साल के दौरान जो औषधीय सैंपल फेल हुए हैं उनमें वर्ष 2022 में टेस्टिंग के लिए 195 सैंपल प्राप्त हुए हैं। इनमें से 142 अनुमोदित किए गए हैं, जबकि 27 प्रतिशत यानी 53 सैंपल फेल हो गए हैं। वर्ष 2023 में टेस्टिंग के लिए 92 सैपल प्राप्त हुए थे। इनमें से 68 अनुमोदित किए गए हैं, जबकि 26 प्रतिशत यानी 24 सैंपल फेल पाए गए हैं। वर्ष 2024 एवं जनवरी-2025 में टेस्टिंग के लिए 129 सैंपल प्राप्त हुए हैं, जिसमें से 86 पास हुए है और 34 प्रतिशत सैंपल फैल हो गए।
उत्पाद प्रक्रिया का पालन नहीं
दोनों डॉक्टरों के होते हुए संस्थान में गुड मेन्यूफेक्चरिंग प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा रहा है बिना स्टैण्डर्ड उत्पादन प्रक्रिया के मनमर्जी तरीके से कुछ भी मिक्चर कर काली-पीली तरीके से उत्पादन कर दिया जाता है। इसीलिये न तो बीपीसीआर (बैच मेन्यूफेक्चरिंग रिकॉर्ड) बनाया जाता है न ही दवाई फेल होने पर कोई कार्यवाही होती हैं। पूर्व सीईओ प्रफुल्ल फुलझेले ने तो बीपीसीआर के अनुसार डॉक्टरों को उत्पादन रिकॉर्ड संधारण और जीएमपी के मानकों के पालन हेतु बैठक भी ली थी और पत्र भी लिखा था लेकिन अभी पदस्थ सीईओ को डॉक्टर ही चला रहे है न तो जीएमपी के हिसाब रिकॉर्ड संधारण हो रहा है और न ही समय पर उत्पादन हो रहा है। इस पर मीटिंग में एसीएस जेएन कंसोटिया ने भी गंभीर आपत्ति ली और जांच कर संबंधित पर कार्यवाही करने के निर्देश दिये थे।
35 से 40 प्रतिशत तक सैंपल फेल
बताया जा रहा है कि एमएफपी से निर्मित औषधि उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी डॉ. संजय शर्मा और डॉ. विजय सिंह पर है। इन दोनों डॉक्टरों की नियुक्ति अवैध है ये बिना चयन प्रक्रिया के बैक डोर इंट्री से अवैध तरीके से कार्यरत है। इनके खिलाफ पूर्व में भी कई शिकायतें आई हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई हैं। डॉ विजय सिंह मैन्युफैक्चरिंग केमिस्ट और डॉ. संजय शर्मा क्वालिटी कंट्रोल केमिस्ट को क्वालिटी कंट्रोलर बनाया गया है। इन्हें बिना चयन प्रक्रिया के अवैध भर्ती कर नियमित कर्मचारी के समान लाभ दिया जा रहा है। लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक बिभाष ठाकुर की ओर से संजय शर्मा और विजय सिंह को दिए गए नोटिस में कहा गया कि पिछले तीन सालों में की गई गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया, जिसमें शासकीय आयुष प्रयोगशाला ग्वालियर द्वारा एमएफपी पार्क में निर्मित उत्पादों के 35 से 40 प्रतिशत तक सैंपल फेल पाए गए है। नोटिस में संजय शर्मा से पूछा गया है कि आपको औषधीय क्वालिटी कंट्रोल के लिए नियुक्त किया गया है। आपकी ओर से अपने कार्यों का संपादन पूर्ण निष्ठा से नहीं किया गया है, जिसके कारण जांच में काफी मात्रा में सैंपल फेल पाए गए हैं। इससे दवाइयों की गुणवत्ता एवं कार्य प्रभावित हो रहे हैं, जिससे संस्था की छवि खराब हुई है। आपका यह कृत्य आपकी कार्य के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। विजय सिंह को दिए नोटिस का ड्राफ्ट भी कमोवेश शर्मा जैसा है। सिंह को औषधीय मैन्युफैक्चरिंग के लिए नियुक्त किया गया है। गंभीर पहलू यह भी है कि दोनों डॉक्टरों की नियुक्ति पर भी हमेशा सवाल उठते रहें हैं। एक नौकरशाह की कृपा बरसने की वजह से संजय शर्मा लगातार मनमानी कर रहें हैं। उनका नाम रॉ मटेरियल सप्लायर्स सिंडीकेट से भी जुड़ा है। शर्मा हमेशा विवादों में रहें हैं। पूर्व में जब विवेक जैन एमएफपी पार्क सीइओ थे, तब शर्मा से उनकी कार्यशैली को लेकर विवाद हो गया था। जैन ने उन्हें एमएफपी पार्क से हटाने का आदेश जारी कर दिया था, लेकिन तत्कालीन प्रमुख सचिव वन के हस्तक्षेप से शर्मा की एमएफपी पार्क में वापसी हो गई। शर्मा की पुरानी सेवाएं समाप्त कर नई सेवा के लिए आदेश जारी किया गया। जैन को शर्मा के खिलाफ एक्शन लेना महंगा पड़ा था और उन्हें सीइओ पद से हटना पड़ा था।