– एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट का खुलासा
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र की स्कूली शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। लेकिन सरकार की कोशिशों के बावजूद प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई का आलम यह है कि इन छात्रों को गुणा-भाग तक नहीं आता है। इसका खुलासा एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर) की ओर से जारी शिक्षा की वार्षिक रिपोर्ट में हुआ है। बड़ी बात यह है कि मध्य प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू करने वाला पहला राज्य बना है, लेकिन बच्चों की सीखने की क्षमता पर साल-दर-साल मामूली सुधार हुआ है। मप्र में सरकारी स्कूलों के बच्चे ठीक तरह से अक्षर तक नहीं पहचान पा रहे हैं। इस बात का खुलासा होने के बाद से ही सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर सवाल खड़े हो गए हैं। दरअसल, स्कूल शिक्षा विभाग के सर्वे रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद यह खुलासा हुआ है।
मप्र की सरकार लगातार यह दावा करने से नहीं चूकती कि उनकी सरकार में स्कूली शिक्षा को बेहतर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब सर्वे रिपोर्ट के सामने आने के बाद प्रदेश की स्कूली शिक्षा की पोल खुल गई है। इस सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों के मुकाबले निजी स्कूलों के बच्चों की सीखने की क्षमता में वृद्धि हुई है। कक्षा पांचवीं के सरकारी स्कूलों के 37 फीसदी बच्चे ही कक्षा दूसरी का पाठ पढ़ पाते हैं, जबकि निजी के 58 फीसदी बच्चे पढ़ पा रहे हैं।
82 फीसदी घटाव नहीं कर पा रहे
एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट के अनुसार मप्र के तीसरी कक्षा के 81 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ ही नहीं पढ़ पाते हैं। 82 फीसदी बच्चे गणित में दो अंकों का घटाव नहीं कर पा रहे। वहीं, पांचवीं कक्षा के 56 फीसदी बच्चों को दूसरी कक्षा का पाठ पढऩा नहीं आता और 79 फीसदी बच्चे गणित में तीन अंकों का भाग हल नहीं कर पा रहे। हालांकि पिछले सालों के मुकाबले में बच्चों के सीखने की क्षमता में सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी ये पीछे हैं। बड़ी बात यह है कि मध्य प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू करने वाला पहला राज्य बना है, लेकिन बच्चों की सीखने की क्षमता पर साल-दर-साल मामूली सुधार हुआ है। यह सर्वे प्रदेश के 50 जिलों के सरकारी व निजी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों पर किया गया है। हालांकि बच्चों को स्कूल भेजने के प्रति अभिभावकों में रुचि बढ़ी है। सात साल के आंकड़ों पर नजर डालें तो नामांकन का दर बढ़ा है। 2024 में प्री-स्कूल में तीन साल के 90.5 फीसदी, चार साल के 88.7 फीसदी और पांच साल के 66.7 फीसदी बच्चों ने प्रवेश लिया है।
स्कूलों से दूर बालक-बालिकाएं
एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2024 में 15 से 16 वर्ष के 16 प्रतिशत बालिकाएं व 12 प्रतिशत बालकों का स्कूलों में नामांकन नहीं हुआ है। हालांकि यह आंकड़ा पिछले आठ सालों में कम हुआ है। 2022 में 12 फीसदी बालक और 17 फीसदी बालिकाओं का स्कूलों में नामांकन नहीं हुआ है। कोविड से पहले यह आंकड़ा और अधिक था। इस सर्वे में स्कूल में उपलब्ध मूलभूत सुविधाओं का भी आकलन किया गया है। इसमें पिछले सालों के मुकाबले कुछ सुधार हुआ है। 58 फीसदी स्कूलों के कन्या शौचालय उपयोग के लायक है तो 70 फीसदी स्कूलों में पीने का पानी उपलब्ध है। 91 फीसदी स्कूलों में मध्याह्न भोजन दिया जाता है, वहीं 90 फीसदी स्कूलों में बिजली कनेक्शन है।