भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार द्वारा भले ही मप्र को विकासशाील राज्यों में होने के कितने ही दावे किए जाते हों, लेकिन कहीं न कहीं शासकीय स्तर पर जारी होने वाले आंकड़ों से इसकी पोल खुल ही जाती है। यही हाल सीवेज निपटान मामले का है।
इस मामले की पोल खुली तो सरकारी दावे धरे के धरे रह गए। हालत यह है कि बेहद खराब काम करने वाले मामले में मप्र का स्थान पहले तीन राज्यों में है। मप्र से अधिक फिसड्डी महज दो राज्य हैं। यह राज्य हैं महाराष्ट्र और केरल। मप्र के इस मामले में फिसड्डी होने का मतलब है कि प्रदेश के केवल गांवों, कस्बों में ही नहीं शहरों में भी सीवेज का ट्रीटमेंट नहीं किया जा रहा है। वैसे भी प्रदेश में हालत यह हैं कि सीवेज को खुले स्थानों के साथ नदी, तालाबों में भी छोड़ा जा रहा है। कुछ समय पहले वैसे भी प्रदेश के मुख्य सचिव ट्रिब्यूनल के समक्ष बता चुके हैं कि, प्रदेश में हर रोज निकलने वाले सीवेज और इसके निपटारे में करीब 1500 मिलियन लीटर का अंतर है।
नब्बे अरब का बजट
प्रदेश सरकार द्वारा एनजीटी को दी गई जानकारी में बताया गया है कि प्रदेश में सीवेज के निपटारे के लिए नब्बे अरब रुपए का बजट रखा गया है। फिलहाल प्रदेश में अभी 465 एमएलडी क्षमता के सीवरेज प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है। जिन पर करीब 2366 करोड़ रुपए का खर्च आ रहा है। इसके अलावा अमृत 2 व स्वच्छ भारत मिशन 2 में सीवेज ट्रीटमेंट सुविधाओं के लिए 7388 करोड़ रुपए की मंजूरी भी कैबिनेट द्वारा दी जा चुकी है। इसमें राज्य सरकार का 4657 करोड़ और केंद्र का 2731 करोड़ रुपए का हिस्सा होगा। अहम बात यह है कि भोपाल में ही चार अरब से ज्यादा खर्च हो चुके हैं फिर भी सौ फीसदी सिस्टम नहीं बन सका है। हालत यह है कि अमृत योजना के पहले चरण में सीवेज प्रोजेक्ट्स के लिए 442 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे। इससे बड़ा तालाब, कोलार और शाहपुरा तालाब में सीवेज मिलने से रोकने के लिए एक लाख घरों में कनेक्शन दिए जाने थे लेकिन अब तक महज आधा ही लक्ष्य पाया जा सका है। इसकी वजह से हर रोज निकलने वाले 265 मिलियन लीटर सीवेज में से करीब 204 मिलियन लीटर का ट्रीटमेंट ही हो पा रहा है। बाकी सीवेज प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर से जल स्रोतों में मिल रही है। अब अमृत योजना के दूसरे चरण में एक हजार करोड़ की नई डीपीआर तैयार की गई है, जिसमें से 345 करोड़ के कामों के लिए टेंडर भी जारी किए जा चुके हैं।
20/11/2023
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