मध्यप्रदेश को देना पड़ रहा हर माह 99 करोड़ का ब्याज

ब्याज
  • गेहूं-धान खरीदी में गड़बड़ी का खामियाजा

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र आज देश का सबसे बड़ा अनाज उत्पादक राज्य बना हुआ है। लेकिन अफसरों की भर्राशाही के कारण गेहूं और धान की खरीदी के हिसाब में गड़बड़ी होने का खामियाजा प्रदेश को उठाना पड़ रहा है। खरीदी में गड़बड़ी के कारण केंद्र सरकार ने बड़ी राशि रोक दी है।  इस कारण मप्र खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम को बैकों से लिए कर्ज का हर महीने करीब 99 करोड़ रूपए कर्ज के रूप में भुगतान करना पड़ रहा है।
मप्र खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम के सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा पिछले दस सालों में की गई गेहूं और धान की खरीदी का हिसाब बराबर न होने की वजह से केंद्र ने 10 हजार करोड़ रुपए रोक दिए हैं। यह राशि खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम ने बैकों से कर्ज ली है जिसका उसे 3 करोड़ रुपए रोज ब्याज का भुगतान करना पड़ रहा है।
यह है नियम
 केंद्र और राज्य के बीच एग्रीमेंट के अनुसार गेहूं और धान की खपत का 95 प्रतिशत भुगतान कर दिया जाता है, 5 प्रतिशत राशि क्लेम सेटल होने के बाद दी जाती है। यानी खरीदी का भौतिक सत्यापन होने के बाद ऑडिट रिपोर्ट कंप्लीट होने पर भुगतान किए जाने का नियम है। यहां हालात यह है कि 2010-11 से 2022 तक का ऑडिट कंप्लीट नहीं हुआ है। मप्र खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम का कहना है कि  इस बारे में सेटलमेंट का काम चल रहा है। जितना गेहूं वितरित किया गया, उसका स्टॉक रजिस्टर नहीं हुआ।  60 लाख टन गेहूं में से 54 लाख टन का भुगतान तो केंद्र ने कर दिया। 6 लाख टन का भुगतान अभी रुका हुआ है।
अनाज भंडारण में हिसाब गड़बड़ाया
पिछले पांच सालों में औसतन गेहूं की 80 लाख टन हर साल खरीदी हुई। इस साल 45 लाख टन  की खरीदी हुई है। इस अनाज के भंडारण में हिसाब गड़बड़ा रहा है। पिछले तीन सालों में अनाज रखने के लिए 500 करोड़ रुपए का बारदाना खरीदा गया। इसके अलावा उपभोक्ता भंडारों से सिंगल यूज किया गया बारदाना भी लिया गया। बारदाना खरीदी के हिसाब में गड़बड़ी 2020-21 में हुई जब 200 करोड़ का बारदाना खरीदा गया, लेकिन उपयोग 125 करोड़ के बारदाने का हुआ। 75 करोड़ रुपए का बारदाना गोदामों में पड़ा रहा। इस राशि पर ब्याज सरकार को भुगतना पड़ रहा है। इसमें कम गुणवत्ता के बारदाना खरीदी का मामला भी सामने आया। गेहूं-धान खरीदी के बाद वेयर हाउस में रखी जाती है। 7.50 रु. प्रति क्विंटल के हिसाब से साढ़े पांच महीने का किराया केंद्र देता है, इसके बाद गोदाम खाली नहीं होता तो किराया राज्य सरकार को भरना होता है।  रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद और रीवा में 3-3 साल से गोदाम खाली नहीं हुए, जहां 30 प्रतिशत गेहूं खराब होने का अनुमान है। सीहोर जिले के प्रबंधक सवाहत सलमान को 6 माह पहले सस्पेंड किया, लेकिन बहाल कर मंडला का जिला प्रबंधक बना दिया है। हर साल इन गोदामों में रखे अनाज का 600 करोड़ रुपए सरकार भर रही है।

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