अमेरिकी किनोवा से मालामाल होंगे मप्र के किसान

  • कम लागत में देती है ज्यादा मुनाफा

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में चावल, गेहूं और मक्का जैसे अनाज की खेती करने वाले किसानों को अमेरिकन सुपर फूड किनोवा आकर्षित कर रहा है। दरअसल, इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल और फाइबर पाए जाते हैं। ऐसे में इसकी मांग अधिक होने की संभावना है। इसको देखते हुए मप्र के किसान किनोवा की खेती करने की तैयारी कर रहे हैं। इसकी खेती करके आप पारंपरिक फसलों को टक्कर दे सकते हैं। जबलपुर के भरतरी गांव के प्रगतिशील किसान दुर्गेश पटेल ने अमेरिका में पैदा होने वाले किनोवा नाम के बीज की फसल लगाई है। किनोवा मिलेट्स श्रेणी का अन्न है। किनोवा एक ऐसा मिलेट्स श्रेणी का अन्य है। जिसमें कई गुना मात्रा में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन, मिनरल्स के साथ फाइबर पाया जाता है। अब ऐसे में किसान का कहना है कि यह फसल कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है।  किसान दुर्गेश पटेल का कहना है की वह किनोवा की खेती कर रहे हैं। इन्होंने लगभग 65 एकड़ जमीन में इनोवा की बुवाई की है। इनका कहना है कि उनके लिए यह एक फायदेमंद सौदा साबित होने वाला है। इतना ही नहीं है कि इसको केवल एक बार पानी देना होता है। जिसके बाद इसकी फसल पूरी तरह से तैयार हो जाती है। इनका कहना है कि यह फसल बेहद फायदेमंद है। किसान दुर्गेश ने बताया कि इससे प्रति एकड़ लगभग 15 से 18 क्विंटल होता है। इसकी मार्केट में कीमत बीते साल 8000 रूपए प्रति क्विंटल देखी गई थी। यह एक बेहद फायदा देने वाली फसल है।
गेंहू को टक्कर देगा अमेरिकन सुपर फूड
पूरी दुनिया में लगभग 80 हजार प्रजाति के पौधे पाए जाते हैं। इनमें से मात्र 30 हजार खाने योग्य हैं। लगभग 7000 किस्म के बीजों का इस्तेमाल मनुष्य अपने उपयोग के लिए उगाता है और इनमें से मात्र 150 बीज ऐसे हैं जिनकी फसल पैदा की जाती है। इनमें से मात्र तीन खाद्यान्न ऐसे हैं जो पूरी दुनिया में 90त्न भोजन का स्रोत हैं। जिन्हें हम चावल, गेहूं और मक्का के नाम से जानते हैं। जलवायु परिवर्तन की वजह से पूरी दुनिया को इस बात का डर रहता है कि केवल गेहूं, मक्का और चावल पर हमारी निर्भरता कभी भी दुनिया में खाने का संकट खड़ा कर सकती है। इसलिए पूरी दुनिया में भोजन के नए स्रोतों की तलाश की जा रही है। इसी के तहत 2013 को अंतर्राष्ट्रीय किनोवा ईयर के रूप में मनाया गया था। किनोवा उत्तरी अमेरिका के इंडीज पर्वतमाला से निकला एक पौधा है। लेकिन यह भारत के वातावरण में भी भरपूर मात्रा में ऊग जाता है। भारत में हम इसे बथुआ के नाम से जानते हैं। हमारे यहां लोग इसे भाजी या हरे साग के रूप में इस्तेमाल करते हैं।
किनोवा की खेती लाभदायक
जबलपुर के भरतरी गांव के प्रगतिशील किसान दुर्गेश पटेल ने किनोवा की खेती शुरू की है। उन्होंने पहले ही साल इसे लगभग 65 एकड़ जगह में बोया है। दुर्गेश पटेल का कहना है कि, उन्हें पूरा भरोसा है कि यह उनके लिए फायदे का सौदा होगा। अभी तक के अनुभव के बारे में दुर्गेश का कहना है कि, उन्हें मात्र एक बार पानी देना पड़ा है। खाद के रूप में उन्होंने अभी तक कुछ भी इस्तेमाल नहीं किया है, फिर भी फसल पूरी तरह स्वस्थ है। दुर्गेश का कहना है कि, इसका उत्पादन प्रति एकड़ 15 से 18 क्विंटल होता है। पिछले साल इसके दाम 8000 प्रति क्विंटल तक मंडी में बिके थे। ऐसी स्थिति में यह एक बेहद मुनाफा देने वाली फसल है। ऑनलाइन किनोवा 200 से लेकर 300 किलो तक बिक रहा है। डाइटिशियन रितुल राजपूत का कहना है कि, किनोवा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर और मिनरल से भरपूर खाद्यान्न है। इसमें ग्लूटेन नहीं होता, इसलिए गेहूं की वजह से जो बीमारियां होती हैं उन्हें इसके भोजन से ठीक किया जा सकता है।
अमेरिकन फूड पर प्रयोग जारी
फिलहाल भारत में मिलेट्स पर प्रयोग चल रहे है। इस प्रयोग के चलते आने वाले समय में गेहूं और मक्के की फसलों के अलावा और भी कई सारी फसलें होंगी। जिसके किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। अब ऐसे में किसान दुर्गेश द्वारा की गिनीज खेती में कितनी सफलता मिलती है यह समय बताएगा। किनोवा एक ऐसी चीज है जिसको खाने के कई सारे फायदे होते हैं। वहीं इसकी मार्केट में कीमत 200 से 300 प्रति प्रति किलो पाई जाती है। इतना ही नहीं डाइटिशियन ऋतुल राजपूत ने बताया कि इसमें कार्बोहाइड्रेट के साथ प्रोटीन और फाइबर के साथ मिनरल भी पाया जाता है जो कि आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है। इससे कई बीमारियां भी ठीक होती है।

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