पवन ऊर्जा का भी प्रमुख केंद्र… बन सकता है मध्यप्रदेश

पवन ऊर्जा
  • थर्मल और सौर ऊर्जा के साथ ही सरकार का विंड एनर्जी पर जोर

भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। ऊर्जा उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश, देश का एक बड़ा केंद्र माना जाता रहा है। यहां कोयले से चलने वाले कई थर्मल पावर प्लांट या कहें ताप विद्युत संयंत्र हैं। वहीं अब प्रदेश अक्षय ऊर्जा का बड़ा केंद्र बनता जा रहा है। प्रदेश में सौर ऊर्जा का तेजी से विकास हो रहा है। इसके साथ ही सरकार ने पवन ऊर्जा के विस्तार पर भी जोर देना शुरू कर दिया है। राज्य सरकार को 12 गीगावॉट का अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य 2022 के अंत तक हासिल करना है जिसमें से अब तक महज 2.6 गीगावॉट सौर ऊर्जा और 2.5 गीगावॉट पवन ऊर्जा की क्षमता स्थापित की जा सकी है।
पवन ऊर्जा के गैर परंपरागत ऊर्जा का एक प्रमुख स्त्रोत है। मप्र में सर्वाधिक पवनचक्कियों की स्थापना इंदौर, देवास, मंदसौर, राजगढ़ तथा अगार मालवा आदि जिलों में की गई है। प्रदेश में सर्व प्रथम वर्ष 1995 में देवास जिले के जामगोदरानी पहाड़ी में 64 पवन चक्की स्थापित की गई है, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता 15 मेगावाट है। वहीं पिछले 15 साल में प्रदेश में 78 गुना बढ़ा विंड एनर्जी जनरेशन हुआ है।
8 साल में 10 गुना हुआ हरित ऊर्जा का उत्पादन
प्रदेश में हरित ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि पर्यावरण के संरक्षण में महती भूमिका निभा सकें। राज्य में बीते आठ साल में हरित ऊर्जा का उत्पादन 10 गुना से ज्यादा बढ़ा है। ग्रीन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में प्रदेश तेजी से आगे बढ़ रहा है। पिछले 8 वर्षों में इसके उत्पादन को 10 गुना से अधिक बढ़ाया है। वर्ष 2012 में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, बायोमास ऊर्जा और लघु जल विद्युत में उत्पादन 438 मेगावॉट हुआ करता था, जो 2021 में बढ़कर लगभग 5500 मेगावॉट हो चुका है। भविष्य ग्रीन ऊर्जा का है, क्योंकि ऊर्जा के पारंपरिक संसाधन निश्चित तौर पर धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे, जिसकी आहट अभी से सुनाई पड़ने लगी है, ऊर्जा उत्पादन में कोयला भंडारों का दोहन होने से आपूर्ति का संकट मंडराने लगा है। सूर्य से अक्षय ऊर्जा मिलती है। सूर्य, पवन और बायोमास से मिलने वाली ऊर्जा सस्ती होने के साथ पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक है।
जल्द बनेगा बिजली बैंक
अब तक हमने बिजली को स्टोर यानी जमा करने की बातें सुनी होंगी, लेकिन देश में अब यह जल्द संभव हो सकेगा। इस दिशा में मध्य प्रदेश सबसे पहला राज्य होगा जो कदम बढ़ाने जा रहा है। सरकार का मानना है कि इस मेगा प्रोजेक्ट से 600 मेगावॉट तक बिजली जमा हो सकेगी। ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे का कहना है कि मूल रूप से प्राकृतिक स्त्रोतों से मिलने वाली बिजली में इसका इस्तेमाल होगा जिसमें विंड एनर्जी ,सोलर एनर्जी शामिल है।
अमूमन औसत बिजली आपूर्ति हो जाने के बाद अतिरिक्त बिजली को इस्तेमाल में नहीं लिया जा सकता था, क्योंकि अतिरिक्त बिजली को स्टोर करने की सुविधा नहीं थी। लेकिन टंगस्टन ऑक्साइड बेस नैनोमेटेरियल बैटरी से यह सब संभव हो पाएगा। जानकारी के मुताबिक प्रथम चरण में 600 मेगावाट बिजली की बचत हो इस लिहाज से एक बड़े क्षेत्र में बैटरी रखी जाएगी जिसमें 600 किलोवाट तक बिजली स्टोर हो सकेगी।
2500 मेगावॉट विंड एनर्जी का उत्पादन
हवा से बिजली बनाने यानि विंड एनर्जी जनरेशन के मामले में मप्र लगातार प्रगति कर रहा है। 2007 में हमारे यहां हवा से सिर्फ 32 मेगावाट बिजली बन रही थी। यह आंकड़ा बढ़कर अब 2500 मेगावॉट पहुंच गया है। यानी मप्र में बीते 15 सालों में 78 गुना इजाफा हुआ है। प्रदेश में सबसे पहले देवास के नजदीक सोनकच्छ में छोटी सी पहाड़ी पर यह सिस्टम लगे थे। अब देवास के अलावा उज्जैन, धार, आगर मालवा, शाजापुर और रतलाम जिलों के में भी हवा से बिजली पैदा की जा रही है।
मप्र अभी देश में आठवें नंबर पर
विंड एनर्जी जनरेशन के मामले में मप्र अभी देश में आठवें नंबर पर हैं। प्रदेश में विंड एनर्जी के मामले को लेकर की गई पड़ताल में यह जानकारी सामने आई। इसमें ये भी पता चला कि प्रदेश में सिर्फ पश्चिमी हिस्से यानी मालवा के इलाकों में ही विंड एनर्जी के सेटअप लगे हैं। प्रदेश के अन्य इलाकों के मुकाबले यहां हवा की रफ्तार ज्यादा रहती है। पिछले 5 साल में विंड एनर्जी के मामले में काम की रफ्तार थोड़ी धीमी हुई है। इसकी वजह केंद्र सरकार की गाइड लाइन है जिसमें टैरिफ तय करने के अलावा टेंडर के आधार पर ही बिजली खरीदे जाने का जिक्र है।
मालवा में विंड एनर्जी के लिए परिस्थितियां अनुकूल
एक मौसम विशेषज्ञ के मुताबिक यदि हवा का रुख पश्चिमी है और पहाड़ी या घाटी का ढलान भी पश्चिमी है तो ऐसे स्थान पर हवा की रफ्तार भी ज्यादा रहेगी। इसे विंड वर्ड साइड कहते हैं। मालवा इलाके के ज्यादातर क्षेत्रों में विंड एनर्जी के लिए परिस्थितियां इसीलिए अनुकूल हैं। अन्य इलाके ली साइड में है वहां हवा की रफ्तार कम होती है। ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने बताया कि 3 से 15 मीटर प्रति सेकंड रफ्तार की हवा विंड एनर्जी जनरेशन के लिए सबसे ज्यादा सहायक होती है। मप्र में अभी 2500 मेगावाट विंड एनर्जी बन रही है। विंड एनर्जी जनरेशन के मामले में हम अभी देशभर में आठवें नंबर पर हैं।

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