कम मार्जिन वाली जीत ने इस बार भी डराया

कम मार्जिन वाली जीत
  • 2018 में 46 विधायक 3 प्रतिशत से कम वोटों से जीते

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में राजनीतिक दल प्रत्येक सीट पर चुनावी समीकरण बैठाने की जुगत में लगे रहे। एक-एक वोट पाने के लिए नेता मशक्कत करते दिखे। मतदाताओं के पैर पकड़ने से लेकर उन्हें रिझाने की हर संभव कोशिश की गई। इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही की पिछले चुनाव में कई दिग्गजों को कम मार्जिन से जीत मिली थी या फिर चुनाव हार गए थे। जानकारी के अनुसार 2018 में 46 विधायक 3 प्रतिशत से कम वोटों से जीते थे। इससे संकेत मिलता है कि इस बार के चुनाव सत्तारूढ़ भाजपा में गुटीय लड़ाई इसकी संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।
2018 में तीन फीसदी से कम वोटों के अंतर से जीतने वाले 46 विधायकों में से 23 भाजपा के और 20 कांग्रेस के थे। तीन अन्य सीटें दो निर्दलीय और एक बसपा उम्मीदवार ने बेहद कम अंतर से जीतीं। तीनों पर भाजपा उपविजेता रही थी। दोनों राष्ट्रीय दलों का 46 में से 41 सीटों पर सीधा मुकाबला हुआ था।   भाजपा द्वारा जीती गई 23 सीटों में से दो (ग्वालियर ग्रामीण और देवतालाब) पर बसपा के उम्मीदवार उपविजेता रहे थे। इसके अलावा, करीबी अंतर से जीतने वाले 46 विधायकों में से 17, 1 प्रतिशत से कम वोट शेयर से जीते, 13 ऐसे विधायक थे, जिनकी जीत का अंतर 1-2 प्रतिशत वोट शेयर और अन्य 16 महज 2-3 प्रतिशत वोट शेयर से जीते। साल 2018 के चुनाव में 10 सीटें ऐसी थी, जहां जीत-हार का अंतर एक हजार मतों से कम था। ग्वालियर दक्षिण सीट पर कांग्रेस के प्रवीण पाठक सिर्फ 121 मतों से चुनाव जीते थे, यह प्रदेश में सबसे कम मतों के अंतर से जीत थी। प्रदेश की दस सीटें ऐसी थी, जहां जीत-हार का अंतर 40 हजार से ज्यादा था। इंदौर-2 से भाजपा के रमेश मेंदोला 71,011 से चुनाव जीते थे। यह प्रदेश की सबसे बड़ी जीत थी। कुक्षी के कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह बघेल हनी 62,930 मतों से चुनाव जीते थे। यह कांग्रेस के किसी प्रत्याशी की सबसे बड़ी जीत थी।
अधिकतर भाजपा विधायकों का अंतर कम हुआ
2018 के विधानसभा चुनाव में हुए कांटे के मुकाबले में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। यही वजह है कि 2013 में काफी बड़े मार्जिन से चुनाव जीतने वाले अधिकतर भाजपा विधायकों का 2018 के चुनाव में जीत का अंतर कम हो गया था। इसमें सीएम शिवराज सिंह चौहान से लेकर दिग्गज मंत्री व विधायक शामिल थे। इस बार भी भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला कड़ा माना जा रहा है। चुनाव जीतने के लिए सभी प्रत्याशी एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। चुनाव में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह चुनाव परिणाम आने पर पता चलेगा। देखना होगा कि भाजपा के दिग्गज नेताओं का हार-जीत का अंतर पिछले चुनाव के मुकाबले और कम होता है या वे फिर से खुद को 2013 की स्थिति में पहुंचा पाते हैं। एमपी में वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत विधानसभा क्षेत्र इंदौर-2 में रमेश मेंदाला को मिली थी। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी छोटू शुक्ला को 91,017 मतों के बड़े अंतर से हराया था। 2018 के चुनाव में मेंदोला की जीत का अंतर 71,011 था। पांच साल में उनके वोट करीच 20 हजार घट गए थे। ऐसे ही वर्ष 2013 के चुनाव में बुधनी से भाजपा प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान 84,805 मतों से चुनाव जीते थे, जबकि चौहान 2018 के चुनाव में 58,999 मतों से जीते थे। इन पांच वर्षों में उनके वोट करीब 25 हजार घट गए थे। मंत्री गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, मीना सिंह, अशोक रोहाणी, डॉ. सीतासरन शर्मा जैसे कई दिग्गज भाजपा नेता 2013 के मुकाबले 2018 के चुनाव में कम मार्जिन से चुनाव जीते थे। यही कारण है कि वर्ष 2013 के मुकाबले 2018 के चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 4.51 प्रतिशत बढ़ गया था। कांग्रेस को 2013 के चुनाव में 36.38 प्रतिशत वोट मिल थे, जो 2018 में बढक़र  40.89 प्रतिशत हो गए थे। इसके इतर, भाजपा को 2013 के चुनाव में 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे, जो 2018 के चुनाव में घटकर 41.02 प्रतिशत हो गए थे।
कई दिग्गज हार गए थे चुनाव
साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस की हवा होने के बाद भी कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए थे। पवई से मुकेश नायक, चुरहट से अजय सिंह, अमरपाटन से राजेंद्र कुमार सिंह, मंदसौर से नरेंद्र नाहटा, विजयपुर से रामनिवास रावत और नागौद से यादवेंद्र सिंह चुनाव हार गए थे। ऐसे ही भाजपा के कई मंत्री व दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए थे। इनमें मुरैना से रुस्तम सिंह, गोहद से लाल सिंह आर्य, ग्वालियर सीट से जयभान सिंह पवैया, ग्वालियर दक्षिण से नारायण सिंह कुशवाहा, भितरवार से अनूप मिश्रा, दमोह से जयंत मलैया, मलहरा से ललिता यादव, जबलपुर उत्तर से शरद जैन, भोपाल दक्षिण-पश्चिम से उमाशंकर गुप्ता, हाटपिपलिया से दीपक जोशी, बुरहानपुर से अर्चना चिटनीस, सेंधवा से अंतर सिंह आर्य, बदनावर से भंवर सिंह शेखावत व शाहपुरा से ओमप्रकाश धुर्वे चुनाव हार गए थे।

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