सत्ता के लिए ‘दुश्मनों’ पर उमड़ा प्यार

  • बागियों को साधने में जुटी भाजपा और कांग्रेस
  • गौरव चौहान
दुश्मनों

प्रदेश में जैसे-जैसे मतगणना की तारीख नजदीक आती जा रही है,भाजपा और कांग्रेस के साथ ही आम आदमी भी जीत-हार का गणित लगा रहा है। उधर, मतदाताओं के मौन और तरह-तरह की आ रही रिपोट्र्स के बाद भाजपा और कांग्रेस का ‘दुश्मनों’ (बागियों)पर प्यार उमड़ पड़ा है। ये वे नेता हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी से बगावत करके चुनाव लड़ा है और उन्हें उनकी पार्टी ने अपना दुश्मन बताते हुए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। लेकिन अब जिन ‘दुश्मनों’ के जीत की संभावना जताई जा रही है, उनको साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने कवायद शुरू कर दी है।
बिना लहर के चुनाव होने के कारण इस बार प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। ऐसे में सरकार बनाने के लिए अभी से दोनों पार्टियों ने जमावट करनी शुरू कर दी है। जानकारों की मानें तो कांग्रेस-भाजपा की नजर ऐसे प्रत्याशियों पर है, जिन्होंने बागी होकर चुनाव लड़ा और अब वे जीत के मुहाने पर बताए जा रहे है। गौरतलब है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस बगावत कर बसपा, निर्दलीय या अन्य दलों हसे चुनाव लड़ एक दर्जन से ज्यादा ऐसे प्रत्याशी है, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे मजबूत स्थिति में है और परिणाम उनके पक्ष में जा सकता है। ऐसे में दोनों प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस ने इन नेताओं से संपर्क बनना शुरु कर दिया है। वर्ष 2018 के चुनाव में दोनों पार्टियों के 30 बागी मैदान में थे, उनमें से महज 4 ही चुनाव जीत पाने में कामयाब हुए थे, लेकिन कई ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाकर कई सीटों पर अपनी मूल पार्टी का नुकसान किया था। इस बार बागी हुए बड़े और कद्दावर नेताओं की संख्या एक दर्जन से ज्यादा है। इनमें से कुछ को भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने दल से प्रत्याशी बनाया है, जबकि दूसरे निर्दलीय बसपा या आम आदमी पार्टी से चुनावी मैदान में है। विशेषज्ञों की माने तो बसपा या आम आदमी पार्टी से जितने ही प्रत्याशी विधायक चुने जाएंगे, उन्हें प्रमुख दल तभी अपने साथ मिला जाएंगे, जब वे दलबदल कानून के तहत पर्याप्त संख्या बल के आधार पर दलों का साथ देने को तैयार होंगे।
बागी बनेंगे किंग मेकर
प्रदेश में मतगणना से पहले जिस तरह की खबरें आ रही हैं ,उससे तो यही लगता है कि इस बार बागी किंग मेकर बन सकते हैं। सूत्रों की मानें तो दल के रणनीतिकार ऐसी संभावनाओं को लेकर पहले से तैयारी करना चाहते है कि यदि सरकार बनाने के लिए बहुमत से कुछ सदस्य कम हुए, तो निर्दलीय, बसपा या दूसरे दूसरे दलों से जीते विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने अपना रास्ता साफ कर लें। सतना जिले की नागौद विधानसभा सीट पर  त्रिकोणीय संघर्ष बताया जा रहा है। यहां भाजपा कांग्रेस के अलावा बसपा मजबूती से मैदान में डटी रही। उसके सिम्बल पर कांग्रेस के मौजूदा विधायक यादवेंद्र सिंह ने टिकट नहीं मिलने की वजह से बगावत कर चुनाव लड़ा। सूत्रों का कहना है कि इसके लिए कांग्रेस ने अभी से सिंह का मन टटोलना शुरु कर दिया है। इधर मुरैना में बसपा की टिकट से चुनाव लड़े राकेश सिंह पर भाजपा की नजर है। कहा जा रहा है कि मुरैना में त्रिकोणीय मुकाबले में राकेश सिंह बेहतर स्थिति में हो सकते है। राकेश सिंह पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे है, जिन्होंने बेटे के बसपा से चुनाव लडऩे के बाद भाजपा से नाता तोड़ लिया था और वे भी पुत्र के साथ बसपा की राजनीति में सक्रिय हुए है। कहा जा रहा है कि भाजपा रुस्तम सिंह से संपर्क बना सकती है। सीधी के भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ल भी सांसद रीति पाठक के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़े है। जो खबरें सामने आ रही है, उसमें शुक्ला को मौजूदगी ने वहां का मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है। जिससे रीति पाठक को कड़ा मुकाबला लड़ना पड़ा है। जानकारों की मानें तो भाजपा की नजर केदार पर है और परिणाम आने से पहले उनसे संपर्क भी साधा जा सकता है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह की लहार सीट पर भी भाजपा के बड़े नेता रसाल सिंह भी बसपा की टिकट पर मैदान में उतरे। जिसकी वजह से यह सीट भी कांटे की टक्कर की वजह से फंसी हुई बताई जा रही है। ऐसे में भाजपा रसाल सिंह से आने वाले समय में संपर्क कर सकती है। चाचौड़ा में भी भाजपा के लिए उनकी ही पूर्व विधायक ममता मीना सिरदर्द बनी हुई है। कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी की टिकट पर मैदान में उतरी मीना जीत का दावा कर रही है। इसी दावे के आधार पर भाजपा ममता से संपर्क साध सकती है। हालांकि अब तक ऐसी पहल नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उनके परिवार के लोग दूसरे दलों या निर्दलीय चुनाव जीतते है, तो स्वाभाविक तौर पर उनका लगाव पार्टी से होना लाजिमी है, क्योंकि वे भले ही पार्टी के चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़े हो, लेकिन उनकी विचारधारा नहीं बदल सकती। प्रदेश की करीब 24 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है। कुछ बागी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में हैं। इन सीटों पर मुकाबला रोचक हो गया है। इनमें से कई बागियों का विधानसभा क्षेत्र में अच्छा होल्ड है और उन्हें जनता का समर्थन भी मिला है।

Related Articles