- संगठन चुनाव के बाद सत्ता में भागीदारी देने की तैयारी
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में रिक्त चल रहे तमाम निगम मंडलों में संगठन चुनाव के बाद राजनैतिक नियुक्तियां करने की तैयारी है। इसके लिए संगठन व सरकार ने मिलकर नामों की सूची तैयार कर ली है। इस सूची पर अब सिर्फ पार्टी हाईकमान की मुहर लगना बाकी है। यही वजह है कि इसके दावेदारों द्वारा लगातार अपना नाम तय कराने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस सूची में अधिकांश उन नेताओं के नाम शामिल हैं जो विधानसभा व लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए हैं। इसके साथ ही कुछ ऐसे नाम भी शामिल हैं, जिनकी मजबूत दावेदारी के बाद भी उन्हें पार्टी ने चुनाव में टिकट नहीं दिया था। जिन लोगों को सत्ता में भागीदारी मिलना तय है, उनमें सुरेश पचौरी, दीपक सक्सेना, पूर्व सांसद गजेंद्र राजूखेड़ी, शिवदयाल बागरी, दिनेश अहिरवार और शशांक भार्गव और केपी सिंह शामिल हैं। यह नियुक्तियां तो अब तक हो जातीं अगर संगठन चुनाव नहीं आते। अब संगठन चुनाव के बाद और दिपावली के पहले नियुक्ति आदेश जारी किए जाएंगे। दरअसल, चुनाव के दौरान पार्टी ने इस बार नया प्रयोग करते हुए दूसरे दलों के प्रभावशाली नेताओं को पार्टी में लाने के लिए ज्वाइनिंग टोली का गठन किया था। इस टोली ने मुख्य विपक्षी पार्टी में जमकर सेंधमारी करते हुए उसके कई बड़े नेताओं को भाजपा में शामिल कराने का काम किया था, जिसमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री से लेकर पूर्व विधायक और उनके समर्थक तक शामिल हैं। इनमें एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री 6 पूर्व विधायक, 1 महापौर, 205 पार्षद-सरपंच और 500 पूर्व जनप्रतिनिधियों सहित 17 हजार कांग्रेसी बीजेपी ज्वाॉइन कर चुके हैं। इस बार पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 32 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए थे। इनमें से कई के तो टिकट इसलिए भी काट दिए गए थे क्योंकि वे दमदार प्रत्याशी होने के बाद भी जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों में फिट नहीं बैठ रहे थे। यही वजह रही की पन्ना के संजय नगाइच और जबलपुर के धीरज पटैरिया जैसे नेताओं को इस बार टिकट की दावेदारी के बाद भी चुनाव में उतरने का मौका नहीं मिल सका। इसी तरह से लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने 8 सांसदों के टिकट काटे थे। इनमें से भी कई लोगों को निगम-मंडल में जगह मिल सकती है। इनमें गुना से सांसद रहे केपी यादव की प्रबल दावेदारी है। चुनाव के दौरान अमित शाह ने उन्हें पद देने का भरोसा भी दिया था।
कई मंडल अध्यक्षों को न बंगले मिले थे, न ही वाहन
मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, शिवराज सरकार की चौथी पारी में जिन नेताओं को निगम-मंडलों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष बनाकर मंत्री का दर्जा दिया था, उनमें से कई को न तो बंगला आवंटित किया गया और न ही उन्हें वाहन दिया गया। इनमें से 11 नेताओं ने दिसंबर 2022 में सरकार से बंगला-गाड़ी की डिमांड करते हुए पत्र भी लिखा था। कुछ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने मंडल की पुरानी गाड़ी के बदले नई गाड़ी की डिमांड की थी। सरकार की तरफ से आर्थिक स्थिति का हवाला दिया गया। कई नेताओं की डिमांड भी पूरी नहीं हो पाई और वे पद से हट गए।
पूर्व मंत्री भी दावेदार
मोहन यादव सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में 28 विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। इनमें 18 विधायकों को कैबिनेट और 10 विधायकों को राज्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। पहली बार जीतकर आए 7 विधायक प्रहलाद सिंह पटेल, राकेश सिंह, संपतिया उइके, नरेंद्र पटेल, प्रतिमा बागरी, राधा सिंह और दिलीप अहिरवार को भी मंत्री बनाया गया। इनके अलावा सिंधिया समर्थक तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत और प्रद्युम्न सिंह तोमर को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। शिवराज सरकार के 19 मंत्री इस बार चुनाव जीतकर आए थे। पुरानी सरकार के केवल 6 मंत्रियों को ही मोहन कैबिनेट में जगह मिली है। इसकी वजह से मंत्रिपद के दावेदार वरिष्ठ पूर्व मंत्रियों को भी मौका दिया जा सकता है।
पूर्व संगठन मंत्रियों को भी फिर मिल सकता है मौका
शिवराज सरकार के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने दिसंबर 2021 में संगठनात्मक बदलाव करते हुए संभागीय संगठन मंत्रियों को निगम-मंडलों में पदस्थ कर मंत्री का दर्जा दिया था। पिछले साल विधानसभा चुनाव के बाद इन नेताओं को हटा दिया गया था। इन नेताओं को एक बार फिर निगम-मंडलों में नियुक्त किया जा सकता है। पार्टी सूत्रों की मानें तो शैलेंद्र बरुआ और जितेंद्र लिटोरिया को एक बार फिर राजनीतिक पद दिए जाने की संभावना है। भाजपा नेताओं में डॉ. हितेश बाजपेयी, नरेंद्र बिरथरे, गौरव रणदिवे, यशपाल सिंह सिसोदिया, विनोद गोटिया की प्रबल दावेदारी मानी जा रही है।
60 नेताओं को दी गई थी जिम्मेदारी
शिवराज सरकार में निगम-मंडलों के राजनीतिक पदों पर दो साल पहले 25 नियुक्तियां की थीं। इसके बाद चुनाव से ठीक सात महीने पहले 35 और राजनीतिक नियुक्तियां की गई थीं। चुनाव नतीजे के बाद निगम, मंडल, प्राधिकरण के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की नियुक्तियों को निरस्त कर दिया गया था। प्रदेश में पहले भी भाजपा की ही सरकार थी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब भाजपा ने अपनी ही सरकार के सत्ता में लौटने के बाद निगम-मंडलों के अध्यक्ष-उपाध्यक्षों को हटाया गया है।