मप्र की सियासत में छाए… छात्र राजनीति से निकले नेता

छात्र राजनीति
  • केन्द्र सहित राज्य में मनवा चुके हैं अपने कौशल का लोहा

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भले ही 10-11 साल से छात्र संघ चुनाव नहीं हो रहे हैं, लेकिन आज भी प्रदेश की सियासत में छात्र राजनीति से निकले नेताओं का बोल बाला है। मप्र की 16वीं विधानसभा में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव समेत कई मंत्री और विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने राजनीति की पहली पाठशाला यानी कॉलेज से राजनीति शुरू की है। जानकारों का कहना है कि चुनाव से छात्रों में लीडरशिप क्वालिटी डेवलप होती है। इसका लाभ राजनीति सहित समाज के प्रत्येक क्षेत्र में मिलता है। वर्तमान समय में मप्र की राजनीति में छात्र राजनीति से आए नेताओं की दमदारी देखने को मिलती रहती है।
राजनीति की असली पाठशाला छात्र संघ की राजनीति को कहा जाता रहा है। आज की राजनीति के सफलतम नाम अपने समय के अच्छे छात्र नेता रहे हैं। छात्र जीवन से सामाजिक क्षेत्र में आगे बढ़ने की राह इन्हें कुछ यूं रास आई कि इन विद्यार्थी नेताओं को सफलतम राजनेता बना दिया। मप्र के छात्रसंघ चुनाव का कभी डंका बजता था। लेकिन इसमें हुई हिंसा और जानलेवा घटनाओं ने सरकारों को हिलाकर कर रख दिया। लिहाजा, चुनाव बंद हो गए। प्रदेश के सरकारी-निजी कॉलेजों में छात्रसंघ चुनावों पर ब्रेक लगा है। बढ़ते विवादों के कारण सरकार ने भी प्राथमिकता में इन चुनाव को शामिल नहीं किया है। अब विभिन्न दलों के छात्र संगठन युवा चेहरों को तैयार कर रहे हैं। ये युवा नेतृत्व देने वाली पाठशाला हो गए हैं। इसी का नतीजा है कि आज तक प्रदेश और देश में नाम कमाने छात्र नेता इन संगठनों की हैं देन हैं। वर्ष 2003 में बदले स्वरूप के साथ छात्रसंघ चुनाव हुए, लेकिन वह चमक नहीं थी। वर्ष 2009 और 2010 में मेरिट के आधार पर चुनाव हुए। वर्ष 2011 के चुनाव में भी यही प्रक्रिया अपनाई गई। लगातार पांच साल गेप रहा। विद्यार्थी परिषद ने आंदोलन किया। 2016 में आंदोलन के बाद सरकार ने चुनाव कराने का फैसला लिया, पर इस पर अमल ही नहीं हो सका।
छात्रसंघ संघ चुनाव से अच्छा नेतृत्व
भाजपा जिला महामंत्री निवाड़ी व पूर्व राष्ट्रीय मंत्री अभाविप डॉ. रोहिन राय का कहना है कि छात्रसंघ संघ चुनाव होने चाहिए। इससे अच्छा नेतृत्व समाज को मिलता है। वहीं कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा का कहना है कि छात्रसंघ चुनाव बंद होने से नई पौध राजनीति में नहीं पनप पा रही है। इसे शुरू करना चाहिए।  दरअसल छात्र राजनीति से कई नेता चमके और देश-प्रदेश की राजनीति में उच्च मुकाम पर पहुंचे हैं। छात्र राजनीति कर आने वालों की सूची में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का नाम भी सबसे ऊपर आता है। विजयवर्गीय ने 1975 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुडकर छात्र राजनीति शुरू की। शासकीय कला व वाणिज्य महाविद्यालय से पढ़ाई की है। कुछ साल छात्र राजनीति करने के बाद 1983 में पार्षद का चुनाव जीता। इस बीच 1985 में भारतीय जनता युवा मोर्चा में महत्वपूर्ण पद संभाला। 1990 से लेकर 2013 तक छह बार विधायक रहे है। इसके बाद पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव की कमान सौंपी। एक बार फिर पार्टी ने विजयवर्गीय पर भरोसा करते हुए विधानसभा एक से मैदान में उतारा। वे सातवीं बार विधायक बनकर प्रदेश सरकार में मंत्री बने हैं। छात्र राजनीति से करियर शुरू करने वाले नरेंद्र तोमर इस बार मुरैना की दिमनी सीट से चुनकर आए हैं। वो भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और अब मप्र में नयी जिम्मेदारी यानी विधानसभा अध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजदीकी माने जाने वाले तोमर केंद्र में कृषि मंत्री थे। मौजूदा सरकार में जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट भी छात्र राजनीति करके मुख्य धारा में आए हैं। उनकी राजनीति शासकीय कला व वाणिज्य महाविद्यालय से शुरू हुई। एनएसयूआइ में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद कांग्रेस से विधायक बने। 2018 में कांग्रेस ने सिलावट को सांवेर से टिकट दिया। जीत हासिल कर कांग्रेस सरकार में मंत्री बने। ये ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थकों में शामिल हैं। सिंधिया के भाजपा में शामिल होते ही सिलावट भी भाजपा में आए। सज्जन सिंह वर्मा की राजनीति वर्ष 1980 से शुरू हुई है। शासकीय कला व वाणिज्य महाविद्यालय से एमए की पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति की। 1983 में वर्मा पार्षद रहे। फिर 1985 से लेकर 2009 तक सोनकच्छ से विधायक रहे। 2014 में सांसद रहे। 2018 में दोबारा विधायक चुने और पीडब्ल्यूडी मंत्री रहे। पूर्व विधायक अश्विन जोशी भी छात्र राजनीति से निकले और तीन बार कांग्रेस विधायक रहे। उन्होंने अपने छात्र राजनीति की शुरुआत होलकर साइंस कालेज की। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जीतू पटवारी ने भी छात्र राजनीति से ही शुरुआत की है। विधायक महेंद्र हार्डिया भी विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति से तीन बार विधान सभा तक का सफर तय किया।
छात्र राजनीति से पहुंचे उच्च मुकाम पर
वर्तमान समय में मप्र की राजनीति में कई ऐसे नेता उच्च पदों पर आसीन हैं, जिन्होंने छात्र राजनीति से अपना सियासी सफर शुरू किया है। डॉ. मोहन यादव मप्र के मुख्यमंत्री हैं। वहीं शिवराज सिंह चौहान पूर्व मुख्यमंत्री व विधायक हैं। जबकि वीडी शर्मा प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री और वर्तमान में मप्र के मंत्री प्रहलाद पटेल, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सांसद भोपाल, कैलाश विजयवर्गीय इंदौर-1 से भाजपा विधायक, नरेंद्र सिंह तोमर पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री और स्पीकर, जगदीश देवड़ा पूर्व वित्त मंत्री और मौजूदा डिप्टी सीएम,राजेंद्र शुक्ला पूर्व में जनसंपर्क मंत्री, वर्तमान में डिप्टी सीएम, इंदर सिंह परमार पूर्व मंत्री और मौजूदा विधायक, अर्चना चिटनीस बुरहानपुर से विधायक, जितेंद्र सिंह पंड्या बड़नगर से विधायक, घनश्याम चंद्रवंशी कालापीपल से विधायक, अभिलाष पांडेय जबलपुर उत्तर से विधायक, भगवानदास सबनानी भोपाल दक्षिण-पश्चिम से विधायक, डॉ. राजेश सोनकर सोनकच्छ से विधायक, पुष्यमित्र भार्गव महापौर इंदौर, शैलेंद्र बरुआ पाठ्य-पुस्तक निगम के अध्यक्ष हैं। भाजपा के अलावा कांग्रेस में भी कई नेता राजनीति में अपना दम दिखा रहे हैं जो छात्र राजनीति से निकले हैं। इनमें लखन घनघोरिया विधायक, जबलपुर पूर्व, आरिफ मसूद विधायक, भोपाल मध्य, उमंग सिंगार विधायक, गंधवानी, डॉ. विक्रांत भूरिया विधायक, झाबुआ के अलावा केके मिश्रा, सुरेश पचौरी, सज्जन वर्मा, एनपी प्रजापति, कमलेश्वर पटेल, आरिफ अकील, दीपक जोशी, विक्रम चौधरी, कुणाल चौधरी शामिल हैं। इनके अलावा पूर्व कृषि मंत्री कमल पटेल, अभाविप में पूर्व प्रांत संगठन मंत्री अरविंद भदौरिया, पूर्व मंत्री और एससी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य, पंधाना से पूर्व विधायक राम डांगोरे, अभाविप में भोपाल नगर मंत्री और विभाग के सह-संयोजक रहे भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष वैभव पवार समेत अन्य राजनीति में आगे बढ़ रहे हैं।

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