मंत्रालय में मेडिकल बिल में फर्जीवाड़े की खुलने लगी परतें
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। सरकार की नाक के नीचे यानी राज्य मंत्रालय में हुए मेडिकल बिल फर्जीवाड़े की परतें खुलने लगी है। हैरानी की बात यह है कि बीमारी के दौरान बिना छुट्टी लिए कर्मचारी काम करते रहे और इसके बाद भी उन्हें दवाई और इलाज के लिए 30 करोड़ रुपए भी दे दिए गए। घोटाला उजागर होने के बाद जब से इसकी जांच शुरू हुई है इसमें नए-नए खुलासे हो रहे हैं। जानकारी के अनुसार मेडिकल बिल के नाम पर भारी-भरकम राशि का आहरण कर काली कमाई करने की यह कवायद वर्षों से चल रही है। अब इस इसकी परतें खुलने लगी हैं। मेडिकल बिल के नाम पर राज्य मंत्रालय के कर्मचारी लगभग तीस करोड़ रुपए डकार गए हैं। सामान्य प्रशासन विभाग ने इस घोटाले की जांच शुरू कर दी है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, मंत्रालय के कर्मचारियों के गुनाहों की परतें भी खुलती जा रही हैं। कर्मचारियों ने यह बिल खुद को गंभीर रूप से बीमार बताकर निकाला है। खास बात यह कि खराब सेहत के बावजूद कर्मचारियों ने छुट्टी एक भी नहीं ली है।
750 कर्मचारियों का इलाज कुछ डाक्टरों ने किया
मेडिकल बिल के नाम पर मंत्रालय में चल रहे फर्जीवाड़े की कलई खोलने के लिए यह सबूत भी पर्याप्त है कि तकरीबन साढ़े सात सौ कर्मचारियों का इलाज सिर्फ तीन से पांच डाक्टरों ने किया है। यह पूरा घोटाला मंत्रालय में बैठे आला अफसरों के नीचे हुआ है। यह पूरा घोटाला तीन साल में अंजाम दिया है। इस मामले में तीन अलग- अलग शिकायतें सामान्य प्रशासन विभाग में की गई हैं, जिसकी जांच शुरू कर दी है। यह पूरी गड़बड़ी 29 करोड़ 46 लाख 24 हजार 226 रुपए की है। इसके तहत जनवरी 2020 से अक्टूबर 2022 के बीच मेडिकल बिल के नाम पर राशि का आहरण किया गया है। बताते हैं कि जो तीन शिकायतें की गई हैं, उनमें 250 कर्मचारियों के नाम हैं। दावा किया गया है कि इस घोटाले में शामिल कर्मचारियों की संख्या 750 के पार है।
स्वास्थ्य बीमा योजना का विरोध
मंत्रालयीन सूत्रों का कहना है की मेडिकल बिल घोटाले की जांच में यह तथ्य भी सामने आया है की कर्मचारी संगठन स्वास्थ्य बीमा योजना का विरोध क्यों कर रहे थे। गौरतलब है कि तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने कर्मचारियों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना का अनुमोदन किया था, लेकिन वह योजना लागू नहीं हो पाई। कई कर्मचारी संगठन भी बीमा योजना लागू करने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि मेडिकल बिल के नाम पर भारी-भरकम राशि का आहरण कर अपनी जेब भर रहे हैं। आश्चर्य यह है कि कर्मचारी संगठन बीमा योजना को लागू करने की मांग भी नहीं उठा रहे हैं। चौरई विधायक चौधरी सुजीत मेर सिंह ने इस मामले को विधानसभा में उठाया था। उन्होंने पूछा था कि एक वित्तीय वर्ष में 25,000 रुपए से अधिक की राशि का मेडिकल बिल हासिल करने वाले कर्मचारियों की संख्या कितनी है? सरकार ने कहा कि इस मामले की जानकारी एकत्रित की जा रही है।
पहले भी हुआ ऐसा फर्जीवाड़ा
प्रदेश के जल संसाधन विभाग में लगभग दस साल पहले इसी तरह का फर्जीवाड़ा हो चुका है। विभाग के कर्मचारियों ने मेडिकल बिलों में बड़ा फर्जीवाड़ा किया था। मामले के खुलासे के बाद तत्कालीन प्रमुख अभियंता ने एफआईआर दर्ज कराई थी। क्राइम ब्रांच ने जांच के बाद जिला अदालत में 19 कर्मचारियों के खिलाफ चालान पेश किया था। इस मामले में कर्मचारियों को तीन-तीन वर्ष के कारावास की सजा भी सुनाई गई थी।