चारे की कमी से प्रदेश में दूध उत्पादन घटा

दूध उत्पादन
  • भूसा के थोक भाव में तीन गुना से चार तक उछाल

भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के कई जिलों में पशु चारे एवं भूसे के परिवहन पर रोक के कारण पशुओं के लिए चारे का संकट खड़ा हो गया है। इससे पशुपालकों के सामने समस्या खड़ी हो गई है। परिवहन नहीं होने से भूसा के थोक भाव में तीन गुना से चार तक उछाल आ गया है। यह स्थिति पिछले एक महीने के दरमियान बनी है।  सामान्य दिनों में जो चारा थोक में 2 से 4 रुपए किलो तक मिल जाता था, वह 12 से 15 रुपए तक बिक गया। वही हरा चारे का संकट भी बढ़ गया है। इससे दूध उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है। वर्तमान में रबी  फसल की कटाई का कार्य चल रहा है। गेहूं और चने के भूसे का निर्यात बड़ी मात्रा में राजस्थान के निकटवर्ती जिलों में किया जाता है। वही सरसों, मेथी और गेहूं के भूसे का इस्तेमाल फैक्ट्रियों में बॉयलर के ईंधन और ईट भट्टों में बड़ी मात्रा में किया जाता है। इसको देखते हुए कई जिलों ने सूखे भूसे के परिवहन पर रोक लगा दिया है।
दूसरे जिले में सूखा चारा लाने-भेजने पर रोक
प्रदेश के कई जिले ऐसे हैं, जहां प्रशासन ने एक से दूसरे जिले में सूखा चारा लाने-भेजने पर रोक लगा दी है। सूबे से लगे पड़ोसी पांच राज्यों खासतौर पर राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात में भी चारा परिवहन फिलहाल रोका गया है। रबी सीजन की फसलों की कटाई के बाद भी दरों में आंशिक कमी आ पाई है। इसका सीधा असर पशु पालकों पर हुआ, जिन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। एक तो सूखा-हरा चारा महंगा खरीदने को मजबूर हैं तो गर्मी का मौसम आते ही पशुओं का दूध उत्पादन भी घट गया है। प्रदेश राज्य पशुपालन एवं डेयरी विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में कुल पशुधन 406.37 लाख है। प्रदेश में कुल पशुधन के लिए सालभर में अनुमानित 1186 लाख मैट्रिक टन हरे चारे की और 604 लाख मैट्रिक टन सूखे चारे की आवश्यकता पड़ती है। इस हिसाब से अगर उत्पादन की बात की जाए तो प्रदेश में सूखे चारे का उत्पादन पर्याप्त है लेकिन पड़ोसी राज्यों में परिवहन के कारण संकट की स्थिति बनी। हरे चारे के उत्पादन की स्थिति अच्छी नहीं है। कुल 680 लाख मैट्रिक टन हरा चारा उगाया जाता है जो मांग की तुलना में 57 प्रतिशत कम है।
इसलिए कम हो रहा चारा
 प्रदेश में पिछले कुछ सालों में कम्बाइंड हार्वेस्टर से गेहूं कटाई का ट्रेंड तेजी से बढ़ा।  इससे भूसे की समस्या बढ़ गई है। वहीं केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार की लाख कोशिश के बाद भी किसान खेतों से फसलें काटने के बाद नरवाई यानी पराली जलाने में जुटे हुए हैं। इसके कारण भूसे से चारा बन नहीं रहा और प्रदूषण बढ़ रहा है सो अलग। उधर मक्का, ज्वार, बाजरा आदि से साइलेज (सूखे चारे की ब्रिक्स) बनाना शासन की प्राथमिकता में शामिल नहीं है। ऐसे में प्रदेश में साइलेजन और सूखे चारे के भण्डारण जैसी व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई।  प्रदेश में अब सरसों और धान का रकबा तेजी से बढ़ रहा है। इन दोनों की फसलों के दाम गेहूं की तुलना में बेहतर मिलते हैं, जिसके कारण किसानों की पहली पसंद अब ये फसलें हैं।
कालाबाजारी ने बढाया भूसे का संकट
प्रदेश में भूसे का संकट दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। भूसे के दाम इतने बढ़ गए हैं कि शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों के पशुपालकों को मवेशियों के लिए चारा भी नहीं मिल रहा। ऐसे में मजबूरी में लोग अपनी मवेशियों को बेसहारा छोड़ऩा पड़ रहा है। यह संकट भूसे के अवैध परिवहन के कारण बढ़ गया है। मध्य प्रदेश राज्य पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम के प्रबंध संचालक डॉ. एचबीएस भदौरिया का कहना है कि शासन ने सभी जिलों में गेहूं की नरवाई जलाने पर प्रतिबंध लगा रखा है ताकि पशुपालक स्ट्रारिपर से आवश्यकता अनुसार भूसा निकाल सकें। इसी तरह हरे चारे के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए भी किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत चारा फसलों के बीजों का उत्पादन व हरे चारे से साइलेज बनाने की गतिविधि को लिया गया है। इन उपायों को अपनाकर संकट से उबरने की कोशिश है।

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