आमने सामने के मुकाबले में फंसे कुशवाह

कुशवाह
  • ग्वालियर:  मोदी की लोकप्रियता और पाठक के जातिगत समीकरण में उलझी जीत-हार

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बीच भाजपा के पूर्व मंत्री रहे भारत सिंह कुशवाह को कांग्रेस के प्रवीण पाठक के जातिगत समीकरणों की वजह से कड़ी टक्कर मिल रही है। अहम बात यह है कि भाजपा व कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी पांच माह पहले हुए विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। इस सीट पर बसपा भी चुनावी मैदान में है, लेकिन वह असरकारक नहीं हो पा रही है जिसकी वजह है भाजपा व कांग्रेस में आमने -सामने का मुकाबला हो रहा है। इस सीट पर कुशवाह प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा कर रहे हैं। वहीं, पाठक को जातिगत समीकरण पर भरोसा है। हालांकि, पार्टी में टिकट की दावेदारी कर रहे नेता उनसे नाराज चल रहे हैं। फिर भी पाठक कड़ी टक्कर दे रहे हैं। ग्वालियर सीट पर सबसे ज्यादा अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं। इस सीट पर अनुसूचित जाति के  चार लाख के करीब मतदाता हैं। दो लाख क्षत्रिय, दो लाख गुर्जर, दो लाख यादव, डेढ़ लाख अनुसूचित जनजाति, डेढ़ लाख करीब मुस्लिम और तीन लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं। इस सीट पर बड़ी संख्या में कुशवाह वोटर भी हैं। इसमें कांग्रेस प्रत्याशी को उम्मीद है कि ब्राह्मण के साथ ही मुस्लिम, गुर्जर, आदिवासी जनजाति और अनुसूचित जनजाति के मतदाता उनको वोट देंगे। वहीं, कुशवाह को मोदी फैक्टर, केंद्रीय योजनाओं पर भरोसा है। साथ ही जातिगत मतदाताओं को साधने के लिए उनके अनुसार नेताओं को प्रचार करने के लिए बुलाया जा रहा है। बीता चुनाव इस सीट पर भाजपा के विवेक शेजवलकर ने जीता था।  उन्होंने कांग्रेस के अशोक सिंह को 1.46 लाख वोट से चुनाव हराया था। इस बार भाजपा ने विवेक शेजवलकर का टिकट काट कर भारत सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा है।
 दल से ज्यादा असरदार सिंधिया परिवार
ग्वालियर लोकसभा सीट पर हमेशा से ही किसी राजनीतिक दल से ज्यादा सिंधिया परिवार का असर रहा है। समय-समय पर कांग्रेस, जनसंघ और भाजपा सिंधिया घराने की मदद से यहां पैर जमाने की कोशिश करते आए हैं। यहां से माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी, और वो सबसे ज्यादा बार सांसद चुने गए। ग्वालियर में कांग्रेस के विस्तार के पीछे माधवराव सिंधिया का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। 2001 में माधवराव सिंधिया का निधन कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था। उनके बाद यहां की राजनीति में सिंधिया परिवार को माधवराव की बहन यशोधरा राजे सिंधिया ने आगे बढ़ाया। यशोधरा राजे सिंधिया 2007 के उपचुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत कर आई थीं। उन्होंने ग्वालियर में भाजपा को ऊपर उठाया। माधवराव से पहले उनकी मां विजयाराजे सिंधिया भी यहां से कांग्रेस सांसद रह चुकी थीं।
ग्वालियर में त्रिकोणीय मुकाबले की  संभावना नहीं
इस संसदीय क्षेत्र में बसपा ने उम्मीदवार अवश्य उतारा है। इस सीट पर हाथी कभी प्रभावी भूमिका में नहीं रहा है। इस बार बसपा ने कांग्रेस से नाराज कल्याण सिंह को टिकट दिया। यहां भी भाजपा व कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि बसपा उम्मीदवार केवल चुनाव में उपस्थिति दर्ज करा पाएंगे। इसके साथ ही दोनों उम्मीदवारों के जीत-हार के अंतर को कुछ कम कर सकते हैं। त्रिकोणीय मुकाबले की कोई संभावना यहां भी नजर नहीं आ रही है।
2007 से भाजपा का कब्जा
ग्वालियर संसदीय सीट पर 2007 से भाजपा का कब्जा है। यहां पर 2007 का उपचुनाव और 2009 का चुनाव यशोधरा राजे सिंधिया जींती। इसके बाद 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर और 2019 में विवेक शेजवलकर ने चुनाव जीता। उन्होंने कांग्रेस के अशोक सिंह को 1.46 लाख वोट से चुनाव हराया था। इस बार भाजपा ने विवेक शेजवलकर का टिकट काट कर भारत सिंह कुशवाह को मैदान में उतारा है। उनके लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लगातार चुनावी बिसात बिछा रहे हैं। दरअसल कुशवाह को तोमर का बेहद करीबी माना जाता है। कुशवाह को तोमर की सिफारिश पर ही प्रत्याशी बनाया गया है।  
आठ विधानसभा सीटों में से चार कांग्रेस के पास
ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें चार सीट भाजपा और चार सीट कांग्रेस के पास है। ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर पूर्व, डबरा, पोहरी सीट पर कांग्रेस और ग्वालियर, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, करेरा सीट पर भाजपा विधायक हैं। 

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