दुष्काल : कल्याण योजनाओं को ‘सत्तारूढ़’ और ‘सत्ता से दूर’ नेताओं से मुक्त रखें

  • राकेश दुबे
कोरोना संक्रमण

-कोरोना संक्रमण से हुईं मौतों के बारे में अफसरों ने गलत आंकड़े देकर सरकार को भी किया गुमराह

आज देश में कोरोना संकट से ज्यादा सत्तारूढ़ औए सत्ता से दूर लोगों की बेईमानी का भयावह कहर है। सत्ता से जुड़े होने के अनुचित लाभ लेकर पिछले कुछ सालों में करोड़पति बने सत्ता के दलाल पूरी बेशर्मी से अवसर को सम्पन्नता में बदल रहे हैं  उन्हें अस्पताल का पलंग, दवा आॅक्सीजन कहीं से भी मानवीय आवश्यकता नहीं दिखती बल्कि उसे वे मौके का फायदा मानकर जितना लाभ ले सकते हैं ले रहे हैं राज्य और केंद्र की सत्ता से दूर लोग आवाज नहीं उठा रहे हैं, उन्हें जन पक्ष से ज्यादा लाभ भयादोहन से हो रहा है मानवीय स्तर पर भी और आर्थिक स्तर पर भी। उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि कहीं बच्चे अनाथ हो गये हैं तो कहीं परिवार का कमाऊ व्यक्ति असमय काल-कवलित हो गया है। एक बड़ा मानवीय संकट है, जिसको लेकर सत्ताधीशों से संवेदनशील व्यवहार की दरकार है। सरकारें जानती है, वे कौन है ? किसी राज्य में उसका नाम ‘मोखा’ है तो कहीं ‘कालरा’ सत्तारुढ़ और सत्ता से नजदीक ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई होना चाहिए साथ ही उन संगठनों को तो प्रतिबंधित ही कर देना चाहिए जिनसे ये समाजद्रोही उपजे हैं। विडंबना यह है कि राज्य सरकारों द्वारा कोरोना के वास्तविक आंकड़ों से खिलवाड़ किया जा रहा है और ऐसे लोग सरकारों को मुफीद बैठते हैं सही आंकड़ों से अकर्मण्यता की पोल तो निष्पक्ष जांच से खुलती है। देशी-विदेशी एजेंसियां जांच करने के बाद कह रही हैं कि मरने वालों और दर्ज आंकड़ों में फर्क है। राज्यों के विभिन्न दूर-दराज के इलाकों से उपचार के लिये आने वाले मरीजों को महानगरों के मृतकों के आंकड़ों में दर्ज नहीं किया जाता है। हाल ये है कि प्रधानमंत्री तक को कहना पड़ा है कि राज्य सच्चाई के साथ आंकड़े सामने रखें। बहरहाल,इस निर्मम समय में दो मुख्यमंत्रियों के उम्मीद जगाने वाले बयान सामने आये। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कोविड महामारी में माता-पिता की मौत के बाद अनाथ हो गये बच्चों को हर माह पांच हजार रुपये की पेंशन दी जायेगी। सरकार ऐसे बच्चों की मुफ्त शिक्षा व मुफ्त राशन की व्यवस्था भी करेगी। वहीं केजरीवाल सरकार ने भी अनाथ हुए बच्चों की शिक्षा व जीवन-यापन का खर्चा उठाने की घोषणा की है। निस्संदेह ऐसे बच्चों को सामने लाना समाज व सरकारों की जिम्मेदारी भी है।
उम्मीद है कि सरकारें ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निभाएंगी। साथ ही सही आंकड़े सामने लाना भी उसका कर्तव्य है । अभी कोरोना की दूसरी लहर का कहर जारी है और सही संख्या का पता दुष्काल के खात्मे के बाद ही चल पायेगा। सरकारों का ध्यान लोगों की जान बचाने और अवसर को आपदा में बदलते लोगों पर होने के कठोर दंड देने पर होना चाहिए । कई परिवार का कमाऊ सदस्य चला गया है उनके उत्तरजीवी के लिए विशेष प्रावधान केंद्र सरकार को करना चाहिए, ऐसी स्थिति बुजुर्गों के बेटे-बेटियों की भी हो सकती है। उन्हें भी सहायता कार्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। कोरोना दुष्काल से तहस-नहस हुई अर्थव्यवस्था ने लाखों लोगों के रोजगार छीन लिये,उनके बारे में भी सोचा जाना चाहिए। उन्हें जीवन-यापन के लिये अवसर कैसे दिया जा सकता है। केंद्र सरकार को भी इसमें सहयोग करना चाहिए क्योंकि राज्यों की अर्थव्यवस्था पहले ही इस संकट में चरमरा गई है।
इस निमित्त जहां सत्ताधीशों में इच्छाशक्ति की जरूरत है, वहीं प्रशासन के स्तर पर भी कोशिश हो कि सहायता की बंदरबांट न हो, कम से कम दलाल कोसों दूर रहें। पात्र लोगों को ही इसका लाभ मिले। ये घोषणाएं सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने और सस्ती लोकप्रियता पाने का हथकंडा बनकर न रह जाएं। अब ग्रामीण क्षेत्रों में महामारी कहर बरपा रही है तो वहां भी मुसीबत के मारों की सुध ली जाये। कल्याणकारी योजनाओं की सार्थकता उनके पारदर्शी क्रियान्वयन में ही है। बेहतर होगा कि केंद्रीय स्तर पर ऐसी योजनाएं बनें और राज्यों के साथ बेहतर तालमेल के साथ उनका क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाये। हालांकि, इस संकट का सबसे बड़ा सबक यही है कि हमारा तंत्र हर मोर्चे पर भक्तों के कारण विफल रहा है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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