22 फीसदी वोट बैंक को कब्जाने कांग्रेस लेगी आदिवासी संगठनों का सहारा
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार बनाने के लिए ट्रायबल वोटर्स निर्णायक हैं। आदिवासी वोट बैंक जिससे दूर हुआ, वो सत्ता से दूर हुआ। यानी मप्र में 22 फीसदी आदिवासी वोट को सत्ता की चाबी माना जाता है। सत्ता की इस चाबी पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ की नजर है। उन्होंने इस वोट बैंक को कांग्रेस अपने पक्ष में करने के लिए आदिवासी संगठनों को एक मंच पर लाने की कवायद करेगी। यानी प्रदेश के आदिवासी संगठनों को एकजुट कर कांग्रेस प्रदेश की 22 फीसदी आबादी का वोट अपने पक्ष में लाने का प्रयास करेगी।
गौरतलब है कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अब सिर्फ एक साल बचा है। भाजपा-कांग्रेस ने उन 78 सीटों पर फोकस बढ़ा दिया है जो ,जहां आदिवासी वोटर किसी को जीताने-हराने का माद्दा रखते हैं। इनमें से 47 सीटें रिजर्व हैं। दोनों दलों की चिंता की बड़ी वजह यह भी है कि हाल ही दिनों में सिस्टम से नाराज आदिवासियों किसी राजनीतिक झंडे- बैनर से अलग एकजुट होकर अपनी ताकत दिखाई है। यही कारण है कि भाजपा ने गतदिनों मांडू में हुए राज्य स्तरीय प्रशिक्षण शिविर के एजेंडे पर टॉप पर आदिवासी वोर्ट बैंक रहा। इधर कांग्रेस ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का जो रूट फाइनल किया है, वह आदिवासी इलाकों से गुजरता है। वहीं अब कमलनाथ आदिवासी संगठनों को एक मंच पर लाने की तैयारी कर रहे हैं।
जयस का बढ़ता जनाधार बड़ी चुनौती
पिछले दिनों से जयस आदिवासियों के मुद्दे को तेजी से उठा रहा है। इससे नजर आता है कि 2023 के इलेक्शन में जयस भाजपा और कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ सकती है। हालांकि, भाजपा जयस को कांग्रेस की बी टीम बताकर उसके प्रभाव को खत्म करने की मुहिम में जुटी है। इसका कारण है जयस के फाउंडर मेंबर्स में से एक डॉ. हीरालाल अलावा जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़, लेकिन जयस के बाकी नेताओं का कहना है कि जयस किसी की ए या बी टीम नहीं है। हाल ही में हुई ऐसी कुछ घटनाओं के बाद यह वर्ग बिना किसी राजनीतिक दल के नेतृत्व में मैदान में उतरा। आदिवासी युवाओं की ब्रिगेड तेयार हो रही है। जो विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत का अहसास कराएगी। दरअसल, प्रदेश के राजनीतिक इतिहास को देखें तो सरकारी स्तर पर योजनाएं चलाकर आदिवासियों के उत्थान करने के दावे किए गए, लेकिन आज हालात और परिस्थितियां बदल गई हैं। उन्हें अपने वोट की ताकत का अहसास होता रहा है। यही वजह है कि आदिवासियों के बीच से तैयार हुए संगठन भी हासिएं पर पहुंच गए। राजनीतिक जानकार अरुण दीक्षित कहते हैं- जब से मध्य प्रदेश बना, तब से राजनैतिक दलों ने आदिवासियों को शोभा की वस्तु बनाकर रखा। कांग्रेस और भाजपा दोनों ने। आदिवासियों को सहेजकर रखने की कोशिश तो हुई, लेकिन जितनी उनकी आबादी है, उस हिसाब से उनकी लीडरशिप को पॉलिटिकल स्पेस नहीं मिला।
मप्र में तीसरा दल मजबूत नहीं
प्रदेश में मुख्य तौर पर चुनावी मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होता है। कोई तीसरा दल अपनी स्थिति को मजबूत नहीं कर सका है। तीसरे दल के तौर पर बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने पैर जमाने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2018 के विधानसभा चुनाव की जो तस्वीर सामने आई उसमें वोटर ने जातीय वोटों की राजनीति करने वाले सभी दलों को नकार दिया।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को गोंड आदिवासियों का ही समर्थन नहीं मिला था। जाटव वोट बीएसपी के बजाए कांग्रेस को चले गए थे। पंद्रह साल बाद कांग्रेस की सरकार में वापसी अनुसूचित जाति और जनजाति के वोटों के कारण ही संभव हो सकी थी। जबकि कांग्रेस को भाजपा से कम वोट मिले थे। भाजपा को 41.02 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस जब भी 40 प्रतिशत से नीचे वोट पाती है वह सरकार से बाहर हो जाती है। भाजपा ने वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में कुल 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को पाने के लिए पार्टी दोहरी रणनीति पर काम कर रही है। पहली रणनीति कार्यकतार्ओं के जरिए पोलिंग स्टेशन को मजबूत करने की है। रणनीति का दूसरा हिस्सा हितग्राही मूलक योजनाओं के जरिए वोटर के बीच अपनी पैठ बनाने की है।
आदिवासी वोट के कारण 2018 में सत्ता मिली
मप्र की राजनीति के केन्द्र में इस समय आदिवासी हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनाने में आदिवासियों का महत्वपूर्ण रोल रहा था। आदिवासियों को अपनी तरफ खींचने की रणनीति से बेचैन कांग्रेस ने अब आदिवासियों को कांग्रेस से जोड़े रखने की प्लानिंग पर तेजी से काम शुरू कर दिया है। मप्र कांग्रेस के कमलनाथ ने कांग्रेस के आदिवासी विधायकों के साथ बैठक कर आदिवासी संगठनों को एक मंच पर लाकर चर्चा करने की जिम्मेदारी दी है। बैठक में कांग्रेस के आदिवासी विधायकों से अलग-अलग क्षेत्रों में आदिवासी संगठनों के प्रभाव को लेकर चर्चा की। बैठक में जयय के संरक्षक डॉ हीरालाल बच्चन, अशोक मर्सकोले, सुरेन्द्र सिंह बघेल, कांतिलाल भूरिया सहित आदिवासी विधायक मौजूद थे। बैठक में कमलनाथ ने विधायकों से कहा आदिवासियों को बांटने के लिए भाजपा और आरएसएस कई प्रकार से प्रयास कर रहे हैं। आदिवासियों को आपस में लड़ाने और उपजातियों को बांटने की कोशिश हो रही है। इस सच्चाई को हमें बताना जरूरी है। आदिवासियों के शिक्षित और जागरूक युवाओं को प्रलोभन दिए जा रहे हैं। इसके बारे में आदिवासियों को बताने समझाने की जरूरत है।
आदिवासियों के संगठन बड़ी चुनौती
बैठक में मौजूद कांग्रेस विधायक और जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा ने बताया पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ जी ने आदिवासी विधायकों के साथ बैठक हुई। बैठक में आदिवासी विधायकों के साथ आदिवासी कांग्रेस के पदाधिकारियों के साथ मिशन 2023 की चुनौती को लेकर चर्चा हुई। इसमें आदिवासी समाज और आदिवासी सामाजिक संगठनों की भूमिका को लेकर चर्चा की। हमने आदिवासियों के मूलभूत मुद्दे कमलनाथ जी को बताए हैं। उन्होंने आदिवासी संगठनों के साथ बैठकर चर्चा करने की बात कही है। जल्दी ही कमलनाथ जी जयस सहित सभी आदिवासी संगठनों के साथ चर्चा करेंगे।