भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश ऐसा राज्य है, जहां पर अफसरशाही की कार्यप्रणाली हमेशा से चर्चा में रहती है। उनकी कार्यप्रणाली से आम जनता ही नहीं सरकारी कर्मचारी भी परेशान रहते हैं। ऐसा ही एक मामला वन विभाग का है। अफसरों की मनमानी की वजह से ऐसे सैकड़ों वन कर्मचारी हैं, जो वेतन के मामले में जूनियरों से पीछे हो गए हैं। ऐसे प्रदेश में करीब दो हजार वनरक्षक हैं जिनसे आगे उनके जूनियर हैं। इसमें भी खास बात यह है कि इस तरह का शिकार बने वनरक्षक भोपाल और नर्मदापुरम वन वृत्त के हैं। हद तो यह है कि जिम्मेदार अधिकारी भी इस मामले से सहमत नहीं हैं। वे उस नियम का हवाला देकर पल्ला झाड़ रहे हैं, जो विचार के लिए शासन स्तर पर लंबित है। दरअसल वन रक्षकों को प्रशिक्षण के बाद मूल वेतन 5680 व ग्रेड-पे 1900 के अनुरूप वेतन दिया जाना है। इस नियम के हिसाब से प्रदेश के सागर, जबलपुर समेत अन्य जिलों में वेतन का भुगतान वन रक्षकों को किया जा रहा है। इसके बाद भी दो नववृत्तों में इसका पालन नहीं किया जा रहा है।
इस तरह से भेदभाव
दक्षिण वन मंडल सिवनी में 14 अगस्त 2008 को पदस्थ हुए वन रक्षक मुकेश तिवारी ने 1 अप्रैल 2009 में एक वर्ष का प्रशिक्षण पूरा किया। इस अवधि से उन्हें 5680 मूल वेतन व ग्रेड-पे 1900 के अनुरूप वेतन भुगतान होने लगा। वर्तमान में मूल वेतन 32100 रुपए प्रतिमाह है। भत्ते समेत अन्य खर्च अलग से जुड़ते हैं। वहीं कार्यालय वन संरक्षक कार्य आयोजना भोपाल में 16 नवंबर 2006 को पदस्थ होकर 1 अक्टूबर 2007 को प्रशिक्षण पूरा करने वाले वन रक्षक आरपी वर्मा को मूल वेतन 5410 व ग्रेड-पे 1900 के अनुरूप भुगतान किया जा रहा है। वर्तमान में वेतन 32100 बन रहा है जो 2008 में भर्ती मुकेश के समान ही है, जबकि वर्मा 2006 में भर्ती होने के नाते मुकेश से वरिष्ठ हैं। मप्र वन एवं वन्यप्राणी संरक्षण कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष रामयश मौर्य, कर्मचारी मप्र वन संघ के प्रदेश महामंत्री आमोद तिवारी व कर्मचारी नेता नीलम ठाकुर का कहना है कि शासन को शुरू से बता रहे हैं कि भेदभाव हो रहा है, लेकिन अधिकारी मानने को तैयार नहीं। अब तो वेतनमान में सुधार करना चाहिए। को हमारे वन रक्षक जंगल व वन्यप्राणियों की सुरक्षा का अहम हिस्सा है। यदि ये वेतन लेकर परेशान हैं तो यह ठीक नहीं है। वेतन में एकरूपता तो होनी ही चाहिए। इस समस्या का हल कम से कम समय में निकालेंगे।
04/01/2024
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