दस जिलों में जलजीवन मिशन का काम फिसड्डी

जलजीवन मिशन
  • टंकी निर्माण  का काम भी पिछड़ा

    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। हर घर नल से जल का काम भले ही सरकार की प्राथमिकता में है, लेकिन इसके बाद भी प्रदेश में यह काम बेहद पीछे चल रहा है। हालत यह है कि अब भी कई ऐसे जिले हैं , जहां पर लक्ष्य की तुलना में पचास फीसदी काम भी नहीं हो पाया है। यही नहीं जहां पर काम अच्छा बताया गया है। वहां पर भी गर्मी के मौसम में ग्रामीणों को पानी के लिए दर -दर भटकने से इस मिशन की पोल खुल चुकी है। इसके बाद भी जिम्मेदार अफसर अपनी पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहे हैं। अब इस काम में होने वाली देरी के लिए जिम्मेदारों द्वारा टंकी निर्माण के काम में होने वाली देरी के लिए नया बहाना टंकी निर्माण के ठेकेदारों की कमी को बता दिया गया है। लेकिन अब जिम्मेदार इसका बहाना नहीं बना पाएंगे। इसके लिए अब सरकार ने एल्युमिनियम -जिंक की पानी की टंकियों के निर्माण की भी अनुमति प्रदान कर दी है। इसके बाद से इनके निर्माण का काम भी शुरू कर दिया गया है। इस तरह की टंकियों का निर्माण अब विंध्य अंचल में किया जा रहा है। इससे न केवल समय बचेगा बल्कि, लागत भी कम आएगी। दरअसल, सीमेंट की टंकियां बनाने में ज्यादा समय लग रहा था, इसलिए अब एल्युमिनियम, जिंक व लोहे का उपयोग कर टंकियां बनाई जा रही है। इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि सीमेन्ट कॉन्क्रीट की टंकियों की सामान्य उम्र 35- 40 वर्ष मानी जाती है। पहले लोहे की टंकियां बनती थी। यह 15-20 साल में खराब होने लगती हैं। यदि एल्युमिनियम, जिंक और लोहे से टंकी बन रही है तो इसे बेहतर कह सकते हैं। इसमें जंग जल्दी लगने की आशंका कम होती है। इसकी सामान्य उम्र 45-50 साल होती है। इंजीनियरों का तर्क है कि कॉन्क्रीट की टंकी बनाने में 8-10 माह लगते हैं। जल- जीवन मिशन के एक साल पूरे हो गए हैं। हर ठेकेदार को करीब 300 टंकियां बनानी है। स्ट्रक्चर बनाकर एल्युमिनियम की टंकी असेंबल की जाती है। इंजीनियरों का दावा है, ऐसे में दो माह में ही टंकी तैयार की जा सकती है।
    उज्जैन में 68 फीसदी काम
    मुख्यमंत्री के गृह जिला उज्जैन सहित 31 जिलों में 50 से 74 फीसदी से कम तक काम हो पाया है। इनमें उज्जैन जिला भी शामिल हैं, जहां पर महज 68 फीसदी ही काम हुआ है। हालांकि इन जिलों में 6 माह के अंदर पूरा मिशन का काम पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यहां पानी की टंकियां बनाने, पाइप लाइन सप्लाई और इंटेकवेल का निर्माण बचा हुआ है। बताया जाता है कि धार, खरगोन, दमोह, भोपाल, उमरिया, अलीराजपुर, नर्मदापुरम, कटनी जिले में मिशन का 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। वहीं इंदौर, खंडवा, नरसिंहपुर, दतिया, राजगढ़, हरदा और बैतूल में 90 फीसदी तक काम पूरा हो गया है।
    असेम्बल कर बनती है टंकी
    बताया जाता है कि इस टंकी को असेम्बल कर बनाया जाता है, बनाने के बाद उसे क्रेन के जरिए स्ट्रक्चर पर रख दिया जाता है। लोहा, जिंक और एल्युमीनियम की टंकी बनाने में समय के साथ ही कीमत भी एक से दो फीसदी तक कम लग रही है। कांक्रीट की तरह ही जिंक, लोहा और एल्युमीनियम टंकियों की लाइफ 25 से तीस वर्ष होने का दावा कंपनी ने किया है। यह टंकी कांक्रीट की टंकियों से भार में भी कम है।
    प्रदेश में मिशन के हाल
    रीवा, सतना, सिंगरौली, सीधी, पन्ना, शिवपुरी, छतरपुर, अलीराजपुर सहित दस जिलों में जल जीवन मिशन का काम 50 फीसदी से कम हुआ है। सबसे पीछे छतपुर, सिंगरौली और अलीराजपुर जिला है। इन जिलों को पिछडऩे की मुख्य वजह यह है कि यहां 30 से 40 किमी दूर से पानी लाया जा रहा है। अभी तक प्रदेश के 70 फीसदी घरों तक पाइप लाइन डाल दी गई है, 60 फीसदी घरों में सप्लाई भी शुरू कर दी गई है।

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