जल जीवन मिशन को लगाया पलीता

जल जीवन मिश
  • अफसरों ने बिना सत्यापन कर दिया भुगतान

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र जहां केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में देश के अन्य राज्यों से आगे है, वहीं  केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण इलाकों में पाइप लाइन डालने के एवज में ठेकेदारों ने भुगतान के लिए फर्जी प्रमाणपत्र लगाने का मामला सामने आया है। ठेकेदारों ने केंद्रीय पेट्रो रसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान का नकली प्रमाणपत्र लगाकर ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से राशि का भुगतान करा लिया। इस मामले में गुपचुप तरीके से रिकवरी की तैयारी की जा रही थी,  लेकिन एक पत्र से मामले की पोल खुल गई है। ऐसे ही एक मामले में अब ईई मुरैना पर एफआईआर कराने के लिए पीएचई ग्वालियर के मुख्य अभियंता ने ईएनसी को चि_ी लिखकर अनुमति मांगी है। मामला जल जीवन मिशन से जुड़ा है। मुरैना के ईई एसएल बाथम पर आरोप है कि उन्होंने बिना सीपेट रिपोर्ट के सत्यापन के कई ठेकेदारों को लगभग 30 लाख रूपए का भुगतान कराया है। ये भुगतान सत्यापन के बिना हुए हैं, जिसमें फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल किया गया है। इसे लेकर ग्वालियर परिक्षेत्र के मुख्य अभियंता आरएलएस मौर्य ने ईएनसी केके सोनगरिया को चि_ी लिखी है। इसमें उन्होंने ईई एसएल बाथम पर पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति मांगी है। चि_ी में लिखा है कि पहले भी लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी खण्ड मुरैना के कार्यपालन यंत्री बाथम ने दण्डोतिया कन्स्ट्रक्शन कम्पनी मुटेना को बिना सीपेट रिपोर्ट के सत्यापन के भुगतान किया है। ऐसी कई शिकायतें मिल रही है कि एसएल बाथम ठेकेदारों से सांठ-गांठ कर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ठेकेदारों को भुगतान करते रहे हैं।
न  एफआईआर कराई, न ब्लैक लिस्टेड किया
दरअसल, अधिकारियों ने केंद्रीय एजेंसी के फर्जी प्रमाणपत्र की बात सामने आने के बाद भी अब तक न तो ठेकेदारों के खिलाफ एफआइआर कराई है, न ही कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड करने की कार्रवाई की है। विभाग के मुख्य अभियंता ने इस मामले में एफआईआर कराने के लिए पत्र भी लिखा है। योजना के तहत पाइप लाइन बिछाने के दौरान सामग्री की गुणवत्ता बनी रहे, इसलिए अच्छी कंपनियों के पाइप का इस्तेमाल करना होता है, जिसकी गुणवत्ता की जांच केंद्रीय पेट्रो रसायन इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीपेट) से करानी होती है। इस प्रमाणपत्र का सत्यापन कराना ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के अधिकारियों की जिम्मेदारी होती है, इसके बाद ही भुगतान किया जाता है। मुरैना की फर्म मां हरसिद्धि कंपनी सुजानगढ़ी जौरा और मेसर्स मीरा धाकड़ सुजानखेड़ी ने तीन स्थानों पर मुरैना के गांवों में काम किया था। इन फर्मों ने पूरा काम होने के बाद ग्रामीण पीएचई के मुरैना कार्यालय में भुगतान के लिए आवेदन किया। साथ में सीपेट का प्रमाणपत्र भी संलग्न किया। अधिकारियों ने सत्यापन कराए बिना ही 60 प्रतिशत राशि का भुगतान कर दिया।
कूटरचित दस्तावेज का मामला
ग्रामीण पीएचई के ईई एसएल बाथम के मांगने पर जब फर्मों ने ओरिजनल सीपेट प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया तो सीपेट को पत्र लिखा गया। इसमें संस्थान ने ऐसी किसी फर्म को प्रमाणपत्र जारी नहीं किए जाने की बात बताई। वहीं ठेकेदारों ने एएसएम इंडस्ट्री के पाइप लगाए जाने की बात कही गई थी। जब इस कंपनी को पत्र लिखा तो उन्होंने भी फर्म को कोई पाइप नहीं बेचे जाने की बात कही। इससे कूटरचित दस्तावेज की बात सामने आई। इस मामले में ईई ग्रामीण स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग मुरैना एसएल बाथम ने कहा कि दोनों फर्मों के प्रमाणपत्र पर संदेह होने पर जब हमने जांच कराई तो वह कूटरचित पाए गए। इस मामले में अफसरों का कहना है कि हम रिकवरी के प्रयास कर रहे हैं। सीपेट हमें नहीं, सीधे ठेकेदारों को ही प्रमाणपत्र प्रदान करता है। एफआईआर और ब्लैक लिस्टेड भी किया जाएगा।

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