वक्त है ऑक्सीजन और पानी की खेती करने का

  • प्रवीण कक्कड़
ऑक्सीजन और पानी

हमारी जिंदगी पंच ‘ज’ से संचालित है। पंच ‘ज’ यानी जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर। हमने सुख की चाह में प्रकृति को रौंद दिया। अब भविष्य खतरे में है। हमने इसे छोटा सा शब्द दे दिया  ‘ग्लोबल वार्मिंग’।  ये ग्लोबल वार्मिंग नहीं ये पूरे अस्तित्व के खात्मे की शुरुआत है। हमने जंगल काटकर, जल को खत्म किया ,जल और जंगल के खात्मे से जमीन, जानवर और जन यानी हम खुद मुसीबत में आ गए। पानी और ऑक्सीजन दोनों को तरस रहे हैं। तापमान को सिर्फ 50 डिग्री में मत आंकिये। अब भी नहीं संभले तो ये 50 डिग्री हमारी आने वाली पीढिय़ों को सौ फीसदी खत्म कर देगा। जरूरी है आज से ही हम पौधे लगाएं, जो हैं उनकी रक्षा करें और बारिश को पानी को सहेजें। वाटर रिचार्ज करें। वक्त है हम ऑक्सीजन और पानी की खेती करें। पौधे और पानी मिलकर ही हमें ऑक्सीजन देंगे, वर्ना सबको कंधे पर ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर चलना पड़ेगा।  तापमान का 50 डिग्री को छू लेना और कहीं तो उसके भी पर हो जाना संपूर्ण मानव जाति  के लिए एक गंभीर खतरे की शुरुआत है। बहुत ही छोटी उपमाओं के रूप में हम इसका कारण  ग्लोबल वार्मिंग कहकर छोड़ देते हैं।  पर इस गर्मी ने हमें जो रूप दिखाया है उसके बाद भी इस तरफ से बेरुखी कर लेना अपने अस्तित्व को चुनौती देने की तरह है।  क्यूंकि हालात  इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि  सिर्फ गर्मी ही नहीं आने वाले सारे  मौसमों के रूप हमें बदले हुए नजर आएंगे। देशभर से गर्मी के कारण मौत की खबरें आ रही हैं। आने वाले समय में पानी की कमी हमें परेशान  करेगी।  जलवायु के बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैज्ञानिकों की मानें तो हमें 2030 तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को 40 प्रतिशत तक कम करने की जरूरत है। हमें ये समझना होगा की ऑक्सीजन की कमी सिर्फ ऊंचाई पर ही नहीं सताती बल्कि, अत्यधिक तापमान में भी ऑक्सीजन की कमी होती है।
आमतौर पर ठंडे रहने वाले शहरों ने भी इस गर्मी को झेला है। जिसका सबसे अहम कारण है अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाय ऑक्साइड का उत्सर्जन करना। हम जितने साधन संपन्न हुए हैं पर्यावरण को उतना ही नुकसान पहुंचाया है। हम जितने सुविधाभोगी हुए हैं उतना ही पृथ्वी को कष्ट में डाला है। यह सब प्रमाणित कर रहे हैं कि आज हमारे चारों तरफ जो कुछ भी हो रहा है यह सब इन्हीं कारणों से हैं।  महत्वपूर्ण यह है कि हम इनके प्रति कितने जागरूक हो पाते हैं और प्रकृति संरक्षण के लिए क्या प्रयास कर पाते हैं।
प्रकृति को नुकसान पहुंचाने की एक बड़ी परेशानी जो हम झेल रहे  हैं, वो है जल संकट की। महानगरों की बात हो या छोटे शहरों की जमीन का जलस्तर नीचे चला गया है। प्राकृतिक स्रोत सूख गए, वहीं पेयजल तक के लिए लोगों को परेशान होना पड़ा। हमने जिस तेजी से विकास के प्रति दौड़ लगाई उसमें हमने बहुत कुछ पीछे छोड़ दिया।  इनमें प्रकृति और पर्यावरण सबसे बड़े मुद्दे थे और अब आज साफ दिखाई दे रहा है कि हमारी नदियां,  जंगल, वायु,  मिट्टी सब कहीं न कहीं खतरे में आ गए हैं। हम जितने ताकतवर हुए हैं। हमारा कार्बन फुटप्रिंट उतना ही बढ़ गया है। यदि हम अपने कार्बन उत्सरजन को काम नहीं कर पाए तो , हर साल दुनियाभर में 250000 से अधिक लोगों की मौत  हो सकती है। ईश्वर ने यह पृथ्वी बनाई है सामंजस्य और सद्भाव के लिए, प्रेम के लिए। पृथ्वी किसी एक प्राणी की नहीं है बल्कि सबसे सूक्ष्म जीव से लेकर सबसे विशाल जीव तक सभी के लिए पृथ्वी एक समान है। यह सहनशील है और हमारी अनजानी भूलों को माफ करने की क्षमता रखती है लेकिन जब हम जानबूझकर भूल करते हैं तो फिर पृथ्वी भी दंड देती है। हमारी जानबूझकर की गई भूलों का दंड विधान अब चल रहा है। तूफान, सूखा, अतिवर्षा, बढ़ता तापमान यह सब पृथ्वी का दंड विधान है। यह दंड विधान और क्रूरतम न हो इसकी फिक्र हर मानव को करना है।
 पर्यावरण संरक्षण के लिए इन सुझावों को आप अपने जीवन में उतार सकते हैं
1. घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें
2. ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करें
3. कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें, पॉलिथीन-प्लास्टिक न लें
4. लोगों को बर्थडे, त्योहार पर पौधे गिफ्ट करें
5. वायुमंडल को शुद्ध करने के लिए पेड़ लगाएं, भले एक पेड़ लगाएं लेकिन उसे बड़ा करने की जिम्मेदारी लें।
6. प्लास्टिक के खाली डब्बों में सामान रखें या पौधे लगायें
7. कागज के दोनों तरफ प्रिंट लें, फालतू प्रिंट न करें
दुनिया के ताकतवर देश एक टेबल पर बैठकर समझौता कर सकते हैं, लेकिन इन समझौतों को लागू करना हम मानवों का कर्तव्य है। क्योंकि इस पृथ्वी पर मानव ही पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है। इस पर्यावरण दिवस यही चिंतन करने की जरूरत है कि एक इंसान के रूप में हम अपने आसपास के पर्यावरण को कैसे बचा सकते हैं। अपना खुद का कार्बन फुटप्रिंट कितना कम कर सकते हैं। और कितने अधिक पेड़ पौधे लगाकर उन्हें सहेज सकते हैं। अन्यथा पृथ्वी के दंड विधान से बचना असंभव है। यही चिंतन सर्वोपरि है।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

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