इतना आसान नहीं होगा श्रीमंत समर्थकों को समायोजित करना

भाजपा

भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्यप्रदेश भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी पूरी तरह से गठित न हो पाने की बड़ी वजह श्रीमंत के समर्थक बने हुए हैं। दरअसल संगठन पर दबाव है कि सत्ता की तरह ही संगठन में भी उनके समर्थकों को भागीदारी मिले। यही वजह है कि लगातार मंथन के बाद भी बीच का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। यही वजह है कि श्रीमंत समर्थकों को समायोजित करना मुश्किल बना हुआ है। उधर प्रदेश कार्यकारिणी के रिक्त पदों को जल्द भरने के लिए कार्यकर्ताओं का संगठन पर भारी दबाव बना हुआ है। यही वजह है कि अब एक बार प्रदेश में इन पदों को भरने के लिए बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। दरअसल पार्टी का पुराना निष्ठावान कार्यकर्ता कांग्रेस से हाल ही में आने वाले कार्यकर्ता और नेताओं को पार्टी में सीधे प्रदेश और जिला स्तर पर पद देने के विरोध में है। संगठन को पहले से ही सिंधिया समर्थकों को अपने पुराने बड़े नेताओं का टिकट काटकर श्रीमंत समर्थकों को उपचुनाव लड़ाना  और फिर उन्हें मंत्री पद से नवाजने की वजह से अपने ही नेताओं के विरोध का सामना अब तक असंतोष के रुप में करना पड़ रहा है। इस वजह से संगठन अब और कोई खतरा उठाने को तैयार नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि लगातार मंथन और बैठकों के बाद भी श्रीमंत समर्थकों को पद देकर समायोजित करने का मामला सुलझने के बजाए उलझता ही जा रहा है। संगठन के सभी प्रमुख नेता इस संबंध में संघ के क्षेत्रीय प्रमुख दीपक विस्पुते से लेकर मुख्यमंत्री तक से चर्चा कर चुके हैं। अब संगठन इस मामले में नौ जून  को श्रीमंत के साथ बैठक कर समायोजित किए जाने वाले नेताओं के नामों पर अंतिम फैसला करेगा। श्रीमंत का सीएम सहित प्रदेश के प्रमुख नेताओं के साथ मुलाकात का कार्यक्रम पहले से ही तय है। गौरतलब है कि भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्यों की सूची लंबे समय से घोषित नहीं हो पा रही है। इसके अलावा संगठन द्वारा प्रदेश प्रवक्ताओं और पेनालिस्टों की सूची भी इसी वजह से जारी नहीं की जा पा रही है।
इसकी जो वजह सामने आ रही है, उसके मुताबिक संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर समर्थकों को एडजस्ट नहीं किए जाने की वजह से अब श्रीमंत अपने समर्थकों के लिए शेष रहे पदों में समायोजित करने की मांग कर रहे हैं। यही वजह है कि हाल ही में इसको लेकर संगठन नेताओं द्वारा तीन बार सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ बैठक होने के बाद भी नामों को लेकर सहमति नहीं बन सकी है। कार्यकारिणी का पूरी तरह से गठन न हो पाने की वजह से उसकी बैठकें भी लंबे समय से नहीं हो पा रही है, जबकि पार्टी संविधान के अनुसार हर तीन माह में बैठक होनी चाहिए। इन बैठकों में बीते तीन माह के कामकाज की समीक्षा के साथ ही अगले तीन माह के कार्यक्रमों की योजना तैयार करने का काम किया जाता है। इसकी वजह से पार्टी की मैदानी स्तर पर लगातार सक्रियता में भी कमी होती जा रही है। माना जा रहा है कि श्रीमंत की नौ जून को संगठन नेताओं और सीएम के साथ होने वाली बैठक में समर्थकों को एडजस्ट करने का फार्मूला तय किया जाएगा। इस दौरान श्रीमंत समर्थक एक दर्जन नेताओं को संगठन में शामिल करने पर सहमति बन सकती है, जिसमें उनके एक समर्थक को प्रवक्ता, तो दो नेताओं को मीडिया पेनालिस्ट में और करीब आधा दर्जन से अधिक नेताओं को प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य बनाया जा सकता है।
11 माह के इंतजार के बाद घोषित हुए पदाधिकारी
प्रदेश भाजपा की कमान संभालने के करीब 11 माह बाद वीडी शर्मा अपने पदाधिकारियों की घोषणा कर सके। यह बात अलग है कि प्रदेशाध्यक्ष बनने के कुछ माह बाद ही  उनकी टीम में पांच प्रदेश महामंत्रियों की नियुक्ति की गई थी। जिस तरह से अब कवायद हो रही है उससे माना जा रहा है कि एक पखवाड़े के अंदर टीम वीडी का पूरी तरह से गठन किया जा सकता है।
सात साल से समन्वय समिति का नहीं हुआ पुनर्गठन
भाजपा की नई कार्यकारिणी की ही तरह सात साल पहले सत्ता व संगठन में समन्वय बनाने के लिए एक समिति का गठन किया गया था। उसके बाद से ही इस समिति का पुनर्गठन नहीं हुआ है, लिहाजा इस बीच इस समिति के करीब आधे सदस्य दिवंगत हो चुके हैं। इस समिति के अध्यक्ष का दायित्व उस समय नंदकुमार सिंह चौहान को बनाया गया था, जो अब दिवंगत हो चुके हैं। खास बात यह है कि उस समिति में सुंदरलाल पटवा , कैलाश जोशी जैसे दिग्गजों को शामिल किया गया था। यह नेता भी अब दिवंगत हो चुके हैं। यही नहीं इस समन्वय समिति की लंबे समय से कोई बैठक ही नहीं हुई है। खास बात यह है कि इस समिति के पास कोई काम नहीं होने की वजह से इसमें शामिल नेता भी अन्य महत्वपूर्ण पदों की दावेदारी करने लगे हैं। खास बात यह है कि समिति के सदस्यों के सामने कई बार नाराज चल रहे नेता अपनी बात कहते थे , जिसकी वजह से उनकी नाराजगी दूर की जाती थी। यही नहीं इस समिति में शामिल कई नेताओं का तो अब मप्र से प्रत्यक्ष रुप से वास्ता ही नहीं रहा है। इनमें अरविंद मेनन का नाम प्रमुख रूप से शामिल है। यही वजह है कि अब संगठन में समन्वय के लिए कोई प्लेटफार्म न होने की वजह से नाराज नेता और कार्यकर्ता अपनी बात सार्वजनिक या फिर सोशल मीडिया के माध्यम से रखने लगे हैं , जिसकी वजह से कई बार सत्ता व संगठन के सामने असहज स्थिति बन जाती है। बीते डेढ़ साल में ऐसे हालात कई बार बन चुके हैं।
समिति को छोटी रखने का प्रयास
भाजपा सूत्रों की माने तो इस बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अपनी कार्यसमिति को छोटा रखने के प्रयास में हैं। इसकी वजह है पूर्व की टीम में करीब 500 नेताओं के नाम शामिल थे। जिसमें 43 पदाधिकारी, 70 कार्यसमिति सदस्य, 80 स्थाई और 308 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल थे। इसके अलावा इस टीम के सदस्य जिलाध्यक्ष, संगठन मंत्री और मोर्चा प्रकोष्ठों के अध्यक्ष भी रहते हैं। यह टीम स्व. नंद कुमार सिंह द्वारा गठित की गई थी।

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