कान्ह और शिप्रा में किसी भी तरह का पानी छोड़ना प्रतिबंधित

भोपाल नगर निगम
  • कमाई के लिए अफसरों ने तैयार किए हजारों करोड़ के प्रस्ताव, फिरेगा पानी  

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश के सबसे बड़े धार्मिक शहर उज्जैन की पतित पावन क्षिप्रा और उसकी सहायक नदी कान्ह का पानी लाख प्रयासों के बाद भी आचमन लायक नहीं बन पाया है। अब इस मामले को डां. मोहन यादव की सरकार ने गंभीरता से लिया है। इसके लिए अब दोनों ही नदियों में किसी भी तरह का पानी छोड़ना प्रतिबंधित कर दिया गया है। उधर, उन अफसरों की मंशा पर भी सरकार ने पानी फेर दिया है, जो दोनों नदियों के जल की स्वच्छता के लिए हजारों करोड़ की योजनाएं बनाकर बैठे हुए थे। दरअसल अब तक इन दोनों ही नदियों के पानी का प्रदूषण मुक्त करने नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं , लेकिन स्थिति तस की जस बनी हुई है। अब सरकार द्वारा इंदौर व उज्जैन नगरीय निकायों सहित इन दोनों ही जिलों में आने वाले उद्योगों के उपचारित पानी को भी नदी नालों में छोड़ने पर रोक लगा दी गई है। दरअसल अभी तक नगरीय निकाय निकलने वाले गंदे पानी और उद्योग संचालक उपयोग किए गए पानी को नदी-नालों में छोड़ देते हैं। पानी छोड़ने वाले निकाय अधिकारी व उद्योग संचालकों द्वारा दावा तो यह किया जाता है कि वे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) व इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) से उपचारित करने के बाद ही पानी को छोड़ते हैं। उनके इन दावों के बाद भी कान्ह और क्षिप्रा में प्रदूषण का स्तर कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इन नदियों का पानी कितना प्रदूषित हो चुका है, इससे ही समझा जा सकता है कि कान्ह का पानी तो कई घाटों पर छूने भर से बीमार कर देता है। इसी तरह से शिप्रा के पानी की भी हाल बेहाल बने हुए हैं। इसकी वजह है कान्ह -शिप्रा की सहायक नदी है और उसका पानी आकर क्षिप्रा में ही मिलता है। इसकी वजह से क्षिप्रा का पानी भी बेहद प्रदूषित हो जाता है। दरअसल चार साल उज्जैन में कुंभ होना है। सरकार की मंशा इसके पहले इन दोनों ही नदियों के पानी का पूरी तरह से स्वच्छ बनाने की है। हर बार की तरह इस बार भी अधिकारियों का एक धड़ा नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपए खर्च करने वाली योजनाओं को विकल्प के रूप में सरकार के सामने पेश कर रहे हैं , लेकिन मुख्यमंत्री इससे इत्तेफाक नहीं रख रहे हैं। यही वजह है कि उनके द्वारा लगातार नदियों में प्रदूषण कम करने के लिए समीक्षाएं की जा रही हैं। वहीं पूर्व में दोनों ही नदियों को स्वच्छ बनाने के नाम पर इन्हीं अधिकारियों की बनाई योजनाओं पर हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। अब मुख्यमंत्री संबंधित अफसरों को साफ कर चुके  हैं कि उन्हें योजनाएं नहीं, बल्कि साफ और स्वच्छ नदियां चाहिए।
हाल हैं बेहाल
कान्ह नदी के प्रदूषित पानी को रोकने के लिए जगह-जगह बांध बनाए गए थे, जेा अब कई जगह फूट चुके हैं, जिसकी वजह से उसका पानी बाहर निकलकर  शिप्रा में मिलता रहता है। इसकी वजह से क्षिप्रा का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। शिप्रा में प्रदूषण का एक मामला एनजीटी भी पुहंच चुका है। शिप्रा के पानी को शुद्ध करने करोड़ों की लागत वाली नर्मदा- शिप्रा लिंक परियोजना लाई जा चुकी है। जिसमें पाइप लाइन की मदद से नर्मदा का पानी शिप्रा में लाया गया, लेकिन यह योजना भी सफल नहीं हो सकी है। कान्ह नदी में कबीट खेड़ी के पास घुलित ऑक्सीजन का स्तर अधिकांश समय शून्य रहता है, जबकि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर भी तय मानक में नहीं रहता।

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