पटवारी के लिए आसान नहीं है आलाकमान के भरोसे पर खरा उतरना

जीतू पटवारी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से पराजित क्या होना पड़ा, पार्टी आलाकमान ने प्रदेश में अब तक पार्टी के आलंबदार रहे नेताओं को पूरी तरह से बेदर कर दिया है। अब पार्टी द्वारा युवा नेता जीतू पटवारी पर भरोसा जताकर उन्हें पार्टी की की कमान सौंपी गई है। पटवारी को कमान दिए जाने के बाद से इस बात की चर्चा अधिक हो रही है, कि प्रदेश कांग्रेस के सामने जो मुश्किलें पहले से खड़ी हुई हैं, क्या उन्हें हल करने में वे सफल हो पाएंगे। इसकी वजह है प्रदेश में न केवल उनसे बेहद वरिष्ठ नेताओं की बड़ी फौज है, बल्कि संगठन भी बेहद कमजोर है। यही नहीं चंद महिने बाद लोकसभा चुनाव की सबसे बड़ी परीक्षा से भी उन्हें गुजरना होगा। पटवारी की गिनती उन कांग्रेसियों में होती है, जिन्हें आक्रामक शैली के जुझारू नेता माना जाता है। अब पीसीसी चीफ होने के नाते चुनावी रणनीति बनाने से लेकर उसे जमीन पर उतारने की जिम्मेदारी भी पटवारी के कंधों पर ही है। ऐसे में उन्हें एक रणनीति बनाने वाली टीम की भी जरूरत होगी। पटवारी ने पदभार संभालने के बाद से ही पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मेल- मुलाकात करना शुरु किया हुआ है। पटवारी के लिए अगले कुछ माह बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को अग्नि परीक्षा के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि इसके पहले उन्हें जिन बड़ी चुनौतियों से निपटना होगा, उनमें गुटबाजी, दिग्गजों से सामंजस्य, संगठन को मजबूती प्रदान करने के साथ ही कार्यकर्ताओं को हताशा से बाहर निकालकर उनमें उत्साह का संचालन करना प्रमुख है। दरअसल अब तक कमलनाथ के बारे में यही माना जाता है कि वे संगठन को अपने हिसाब से ही चलाते थे, न कि पार्टी हाईकमान के हिसाब से।  उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रदेश प्रभारियों को भी कभी ज्यादा महत्व नहीं दिया। ऐसा इसलिए कि संगठन प्रभारी बनकर जो भी नेता आते थे, वे तकरीबन नाथ से जूनियर ही होते थे। लिहाजा उनके सामने वे ज्यादा न तो बोल पाते थे और न ही कोई कदम उठा पाते थे। पटवारी के साथ ऐसा नहीं होगा।
गुटबाजी समाप्त करने की सबसे बड़ी चुनौती
कांग्रेस में गुटबाजी सर्वाधिक बड़ी कमजोरी है। ऐसा नहीं हैं कि उसकी प्रमुख प्रतिद्वंदी दल भाजपा में गुटबाजी नहीं हैं, लेकिन भाजपा में अनुशासन के डंडे के डर से वह बाहर नहीं आ पाती है। कांग्रेस में हालात इसके ठीक उलट ही बने रहते हैं। विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद भी गुटबाजी समाप्त नहीं हुई हैं, बल्कि और बढ़ती नजर आना शुरु हो गई है। कांग्रेस को नुकसान भी इसी गुटबाजी की वजह से लंबे समय से उठाना पड़ रहा है। इसे ही विधानसभा चुनाव में हार का प्रमुख कारण बताया जा रहा है। इसकी वजह है पार्टी में संगठन का ताकतवर न हो पाना। दरअसल पार्टी संगठन में भी क्षेत्रीय क्षत्रपों के समर्थकों का बोलबाला है, जिसकी वजह से नेता क्षत्रप के हिसाब से कामकाज करते हैं।
संगठन की मजबूती
साल 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जब दीपक बाबरिया मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी थे, तब उन्होने संगठन पर जबरदस्त तरीके से फोकस किया था। माना जा रहा है कि 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आने का वह बड़ा कारण था। सता में आने के बाद प्रदेश कांग्रेस के नेता बाबरिया के बनाए संगठन और उसके ढंाचे को सुरक्षित नहीं रख सके, लिहाजा एक बार फिर से संगठन कमजोर हो गया है।

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