- लोकनिर्माण विभाग की यह लापरवाही बन रही है हादसों की वजह
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र के लोक निर्माण विभाग के अफसर सडक़ों और पुल पुलियों के निर्माण में तय मानकों की खुलकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। इसकी वजह से वाहन चालकों को सडक़ हादसों तक का शिकार होना पड़ता है। इसके बाद भी इस विभाग के अफसर अपना ढर्रा सुधारने को तैयार नही हैं।
हालत यह है कि जिम्मेदार अपनी मनमर्जी से सडक़ों और पुलिस पुलियों की चौड़ाई तय कर निर्माण करा रहे हैं जबकि, इसके लिए इंडियन रोड कांग्रेस (आईआरसी) द्वारा मानक तय हैं। इन मानकों के अनुसार पुल से लगे पहुंच मार्ग की चौड़ाई पुल की चौड़ाई के बराबर होनी चाहिए। इसके बाद भी प्रदेश के पुलों के निर्माण में इसकी पूरी तरह से अनदेखी की जा रही है। यह खुलासा हुआ है नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट से। मार्च 2021 से सितंबर 2021 के बीच भोपाल, रीवा, जबलपुर, उज्जैन और इंदौर संभाग के 17 पुलों की सैंपल के तौर पर आडिट किया तो इस तरह की गड़बड़ी पाई गई है। कई पुलों की चौड़ाई साढ़े सात मीटर थी, जबकि पहुंच मार्ग की चौड़ाई सात से 12 मीटर के बीच मिली। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सडक़ मार्ग की चौड़ाई में अचानक परिवर्तन की वजह से ही दुर्घटनाओं की संभावनाएं बढ़ती हैं। यह सडक़ें 194 करोड़ रुपये की लागत से बनाई गई थीं। इनमें भोपाल संभाग की सर्वाधिक सात सडक़ें शामिल हैं। सीहोर में आंवली घाट नर्मदा नदी पर बने पुल में भी इस तरह की गड़बड़ी सामने आई है। यहां पुल की चौड़ाई साढ़े सात मीटर और पहुंच मार्ग की चौड़ाई सात मीटर है। इसी तरह से आइआरसी के अनुसार पहुंच मार्ग की लंबाई भी कम से कम 15 मीटर होनी चाहिए। जिसे आवश्यकतानुसार बढ़ाया जा सके।
फुटपाथ ही नहीं बनाए गए
आईआरसी में स्पष्ट प्रविधान होने के बाद भी लोक निर्माण विभाग ने कई पुल बिना फुटपाथ के ही बना डाले। भोपाल, इंदौर और उज्जैन संभाग के एक रेलवे ओवरब्रिज, दो हाई लेवल पुल और तीन सबमर्सिबल पुलों का निर्माण इसी तरह से किया गया है। इसके पीछे सरकार का तर्क था कि शहरों में जगह की कमी और ग्रामीण क्षेत्रों में जरूरत नहीं होने से फुटपाथ नहीं बनाए गए हैं। यह तर्क बेतुके नजर आ रहे हैं।
लोहा खरीदी के बिल गायब
लोक निर्माण विभाग के वर्ष 2015 के परिपत्र के अनुसार पुल निर्माण में उपयोग होने वाले लोहे की खरीदी ठेकेदार द्वारा मूल स्टील उत्पादकों या स्टील प्लांट से करने का नियम है। सीएजी ने भोपाल, जबलपुर, रीवा, इंदौर व उज्जैन के 22 पुलों की जांच की। इनमें सिर्फ सात पुलों के लिए लोहा खरीदी के ही बिल मिले, बाकी के नहीं। उपलब्ध मिलों में सभी जगह स्थानीय विक्रेताओं से लोहा खरीदा गया था। इससे यह संदेह है कि अन्य पुलों के निर्माण में इसी तरह की गड़बड़ी की गई हो। अच्छी गुणवत्ता का लोहा उपयोग किया जाए, इसलिए यह प्रविधान किया गया था। ठेकेदारों को 98 करोड़ रुपये भुगतान किया गया था।
तीन साल तक करना पड़ा पहुंच मार्ग का इंतजार
सरकारी कार्यप्रणाली का ढर्रे का एक बड़े उदाहरण का भी सीएजी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है। इसमें कहा गया है कि भोपाल, रीवा और उज्जैन संभाग के छह पुलों के कार्य में पाया गया कि पहुंच मार्ग का निर्माण पुल बनाने के साथ नहीं किया गया। पुल 64 करोड़ रुपये की लागत से तैयार किए, पर पहुंच मार्ग नहीं होने के कारण 41 माह तक इन पुलों का जनता उपयोग ही नहीं कर सकी है। इसके बाद कहीं जाकर उनके पहुंच मार्ग का निर्माण किया गया। ऐसे मामलों में सरकार और शासन ने संबंधितों के खिलाफ कोई कार्रवाई तक नहीं की।