- सरकार ने डाल रखा है निगेटिव सूची में
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर देश का सर्वाधिक सोयाबीन का उत्पादन किया जाता है, इसके बाद भी बीते एक दशक में प्रदेश में कोई भी नया सोयाबीन से संबधित उद्योग नहीं लगा है। इसकी वजह है इस कृषि उत्पाद संबधी उद्योगों की प्रदेश मे उपेक्षा की जाना। इसकी वजह से प्रदेश में उत्पादित सोयाबीन बड़ी मात्रा में आसापस के प्रदेशों में चला जाता है, जहां के उद्योग प्रदेश के सोयाबीन से खूब फलफूल रहे हैं। अहम बात यह है कि दूसरे प्रदेशों में इससे सबंधित उद्योगों के लिए बेहद अनुकूल पॉलिसी होने से वहां पर नए-नए उद्योग लग रहे हैं। दरअसल, बीते एक दशक से मप्र सरकार ने सोयाबीन प्लांट या सोयाबीन पर आधारित उद्योग को प्रदेश में उद्योगों की नेगेटिव लिस्ट में शामिल किया हुआ है। यही वजह है कि प्रदेश में न केवल मौजूदा संयंत्र संचालक नए प्लांट लगाने से बच रहे हैं, वहीं सरकार के उदासीन रवैया से नए संयंत्र संचालक भी इस ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसके उलट मप्र के सीमावर्ती राज्य जैसे महाराष्ट्र गुजरात एवं राजस्थान बढ़-चढक़र सोयाबीन पर आधारित उद्योगों को न केवल प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी दे रहे हैं, बल्कि कम टैक्स और ड्यूटी लगाकर उन्हें इस दिशा में और आगे काम करने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं। ऐसे में अगले वर्ष आने वाली मप्र की नई इंडस्ट्रियल पॉलिसी से सोयाबीन प्लांट संचालकों को आशा है की इस बार शायद सरकार सोयाबीन आधारित उद्योगों को मप्र में निगेटिव लिस्ट से हटकर पॉजिटिव में डालकर सोयाबीन पर आधारित उद्योगों को प्रदेश में प्रोत्साहित किया जाएगा।
दूसरे राज्यों में 30 फीसदी तक अनुदान
प्रदेश के सीमावर्ती राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में सरकार द्वारा सोयाबीन आधारित उद्योग लगाने पर न केवल सरकार उद्यमियों को 30 प्रतिशत तक लागत पर अनुदान देती है, बल्कि कई राज्यों में 5 साल तक उद्योग स्थापित करने के लिए स्टेट पर आधारित जीएसटी पर भी 100 प्रतिशत की छूट का प्रावधान है। वहीं अन्य राज्यों में 5 से 7 प्रतिशत तक बैंक से फाइनेंस पर इंटरेस्ट सब्सिडी भी महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्य सोयाबीन आधारित उद्योगों को दे रहे हैं। ऐसे में मप्र में सोयाबीन पर आधारित उद्योगों को किसी भी तरीके की रियायत या प्रोत्साहन न देना कहीं ना कहीं सरकार की मंशा पर सवाल खड़े करता है। भले ही मप्र इस समय पूरे देश में सोयाबीन उत्पादकता में अग्रणी राज्य है, लेकिन प्लांट्स की सीमित संख्या और नए प्लांट को लगाने के लिए प्रोत्साहन न मिलाना कहीं ना कहीं सोयाबीन उत्पादक किसानों के लिए निराशा पैदा करने वाली बात है।
सौंपा नहीं चाहती टूटे एकाधिकार
दरअसल, प्रदेश में सोयाबीन ऑयल प्रोड्यूसर एसोसिएशन यानी की सौंपा द्वारा एक सिडिंकेट बनाकर बीते एक दशक से इस उद्योग पर अपना एकाधिकार बनाए हुए है । वह नहीं चाहता है कि उसका एकाधिकार समाप्त हो। अगर इस उद्योग में नए उद्योगपति आते हैं तो उसके एकाधिकार को चुनौति मिलेगी। इसकी वजह से वह निगेटिब सूची में से इसे बाहर किए जाने के विरोध में है। अभी सोपा में इंदौर और मालवा अंचल के 14 से 15 बड़े सोयाबीन संयंत्र संचालक अपना एकाधिकार बनाए हुए हैं। इससे अलग अभी प्रदेश में अलग-अलग जगह पर करीब ढाई दर्जन सोयाबीन प्लांट संचालित हो रहे हैं।