दो माह की जगह चार साल में भी नहीं हो पाई जांच पूरी

मध्यप्रदेश
  • फर्जी दस्तावेजों से नौकरी पाने वालों का मामला, 57 मामले 4 साल से पेंडिंग
    विनोद उपाध्याय

    मध्यप्रदेश में ऐसे दर्जनों अफसर व कर्मचारी हैं, जो फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल कर चुके हैं। उनकी शिकायतें भी हुई और जांच भी शुरू हुईं, लेकिन जांच के परिणाम अब तक नहीं आ सके हैं। इससे फर्जीवाड़ा कर नौकरी करने वालों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। यह वे लोग हैं जो दूसरों का हक मारकर खुद सरकारी नौकरी कर रहे हैं। इन मामलों में अफसरशाही भी पूरी तरह से इन फर्जीवाड़ा करने वालों के पक्ष में खड़ी दिखाई देते हैं। अगर ऐसा नहीं है तो दो माह की जगह सालों से जांच पूरी कर उस पर कार्रवाई क्यों नही की जा रही है। ऐसे अफसरों की संख्या एक दो नहीं बल्कि दर्जनों में है। अहम बात यह है कि फर्जीवाड़ा कर नौकरी पाने वाले अफसर लगातार पदोन्नति भी पाते जा रहे हैं। यह हाल प्रदेश में तब बने हुए हैं, जबकि सामान्य प्रशासन विभाग का करीब 28 साल पुराना आदेश है कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र या कूट रचित दस्तावेजों से सरकारी नौकरी पाने वाले की जांच उच्च स्तरीय छानबीन समिति को दो माह में पूरी करना अनिवार्य है। आदेश यह भी है कि समिति द्वारा जांच दिन-प्रतिदिन के आधार पर की जाएगी। लेकिन, जनजातीय कार्य विभाग में आए प्रकरणों की संख्या लगातार बढ़ रही है। यही कारण है कि चार साल में (वर्ष 2020 से) जांच के लिए पेंडिंग प्रकरणों की संख्या 57 तक पहुंच गई है। इन्हीं चार सालों में 63 अन्य प्रकरणों में 24 जाति प्रमाण पत्र ही अमान्य किए गए हैं। सबसे ज्यादा कोरकू, कोल, सहरिया, गोंड, मांझी, पनिका, हलबा, भुजिया, भार, मन्नेवार, कीर, चत्री, मीना और धनगड़ के नाम पर फर्जी दस्तावेज से नौकरी हासिल की गई है। यह तो महज एक विभाग के हाल है, जबकि अन्य विभागों में भी ऐसे ही कई मामले लंबित चल रहे हैं।
    शिकायत होने पर जांच की यह है व्यवस्था
    शिकायत मिलने पर किसी भी शासकीय कर्मचारी के जाति प्रमाण पत्र की जांच राज्य उच्च स्तरीय छानबीन समिति करती है। इसके बाद ही निर्णय लिया जाता है कि शासकीय सेवक द्वारा बनाए गए जाति प्रमाण पत्र कूट रचित दस्तावेजों से बनाए गए हैं अथवा नहीं। समिति में पीएस या सचिव जनजातीय कार्य विभाग अध्यक्ष होता है। सदस्य सचिव आयुक्त को बनाया जाता है।
    इन वजहों से समय पर पूरी नहीं हो पा रही जांच
    जाति प्रमाण पत्र की जांच करने प्रकरण संबंधित थाने को भेजा जाता है। जिससे जांच कई दिनों तक पेंडिंग रहती हैं। अगर समिति द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र अमान्य कर दिए जाते हैं तो शासकीय सेवक कोर्ट की शरण ले लेता है।
    यह भी है नियम …
    रिपोर्ट अथवा उत्तर प्रस्तुत करने के लिए 30 दिन से अधिक समय नहीं दिया जाएगा। समिति प्रकरण में निर्णय के लिए आम सूचना जारी करेगी जिसका प्रचार- प्रसार किया जाएगा। जांच प्रतिदिन के आधार पर की जाएगी और इसे पूर्ण करने 2 माह का समय तय है।
    विधानसभा में भी उठ चुका है मामला
    विधानसभा के शीत कालीन सत्र में कांग्रेस विधायक डॉ. राजेन्द्र कुमार सिंह द्वारा पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में सरकार ने बताया था कि  2020 के बाद पिछले चार साल में 24 अधिकारी कर्मचारियों के जाति प्रमाण पत्रों को निरस्त किया जा चुका है। इसी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर इन कर्मचारी-अधिकारियों ने सरकारी नौकरी प्राप्त की थी। वहीं जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह ने इसकी लिखित जानकारी विधानसभा में दी है। जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में 232 कर्मचारी अधिकारियों के जाति प्रमाण पर की जांच की जा रही है। इन 232 कर्मचारी-अधिकारियों के खिलाफ अलग-अलग लोगों द्वारा शिकायतें दर्ज कराई गई हैं।
    पेंडिंग मामलों के यह  हैं उदाहरण
    आरके केवट उप पुलिस अधीक्षक।
    रविशंकर खैरवार अनुभाग अधिकारी सीएस कार्यालय।
    अनिल कुमार नंदनवार इंस्पेक्टर आयुक्त केंद्रीय वस्तु एवं सेवाकर तथा केंद्रीय उत्पाद शुल्क।
    सुनील कुमार सहरिया चिकित्सा अधिकारी।
    द्वारिका दास संत सहायक वन संरक्षक।
    सुनील मंडावी अवर सचिव जीएडी।
    गीता पडवार महिला सशक्तिकरण अधिकारी।
    शैलेश कोहद संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश।
    डॉ. माया पारस सहायक प्राध्यापक ।
    मनोज बाथम उप संचालक सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण।
    विभाग का जवाब- समिति की प्रक्रिया अर्धन्यायिक
    जनजातीय कार्य विभाग के आला अधिकारी इस मामले में कुछ नहीं बोल रहे हैं। विभाग का इतना ही कहना है कि छानबीन समिति की प्रक्रिया अर्धन्यायिक है।

Related Articles