‘माननीयों’ के खिलाफ जांच अधर में

जांच
  • बेबस जांच एजेंसियां

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने वाली एजेंसियां इस कदर बेबस हैं, कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद भी पूर्व मंत्रियों और वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ जांच आगे नहीं बढ़ पाई हैं। इससे लोकायुक्त और ईओडब्ल्यृ संगठन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते रहे हैं। गौरतलब है कि एक तरफ जहां पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांचें अटकी हुई हैं, वहीं दूसरी तरफ यह प्रावधान किया गया है कि लोकायुक्त में अब मंत्रियों के खिलाफ आसानी से जांच प्रकरण दर्ज नहीं होंगे। शिकायत मिलने पर पहले इस बात का परीक्षण किया जाएगा कि मंत्री की संबंधित मामले में सीधी भूमिका है या नहीं। अभी होता ये है कि शिकायत का परीक्षण करने पर पहली नजर में जांच प्रकरण दर्ज करने के आधार समझ में आने पर मामला दर्ज कर लिया जाता है पर ये बारीकी से नहीं देखा जाता कि उसमें मंत्री की भूमिका कितनी है। इसकी वजह से जांच के बाद मंत्री के खिलाफ विलोपन और खात्मे की कार्रवाई करनी पड़ती है। इससे अनावश्यक विवाद की स्थिति बनती है। इसलिए नई व्यवस्था लागू करने का फैसला किया गया है। गौरतलब है कि मप्र हाई कोर्ट के निर्देश पर भी कई पूर्व मंत्रियों के खिलाफ अनुपातहीन संपत्ति के मामले की जांच लोकायुक्त संगठन पूरी नहीं कर पाया है। इसी तरह से बीते लंबे समय से छापे की कार्रवाई भी लगभग ठप पड़ी हुई है।  पूर्व डीजी लोकायुक्त अरुण गुर्टू का कहना है कि जांच एजेंसियों की स्थापना संगठित, सफेदपोश अपराध को पकडऩे के लिए की गई थी। पटवारी, पंचायत सचिव जैसे छोटे कर्मचारियों को पकडऩे के लिए तो जिला पुलिस ही पर्याप्त हैं। ऐसा लगता है कि कहीं न कहीं जांच एजेंसियां भी दबाव में काम करती हैं। यही कारण है बड़ी मछलियां हमेशा बच जाती हैं।
दागी अफसरों की जांच भी अटकी
मप्र के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मलाई काट रहे हैं। डिजाइन-ड्राइंग में मनमाने बदलाव, सडक़ और भवनों के गुणवत्ताहीन निर्माण के मामलों में ढेरों शिकायतें ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के पास लंबित हैं। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मलाई काट रहे हैं। डिजाइन-ड्राइंग में मनमाने बदलाव, सडक़ और भवनों के गुणवत्ताहीन निर्माण के मामलों में ढेरों शिकायतें ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के पास लंबित हैं। कोई जांच 12 साल से चल रही है तो कोई 10 साल से अटकी हुई है। ऐसे 15 से ज्यादा इंजीनियर विभाग में ऊंचे पदों पर काबिज हैं और सरकार में अपने दखल का सहारा लेकर जांचों को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे मामलों में दो से तीन साल में जांच पूरी होने के बाद न्यायालय में सुनवाई शुरु हो जाती है, लेकिन विभाग की मेहरबानी से ये एक दशक से भी ज्यादा समय से बचे हुए हैं। आर्थिक अनियमितता, निर्माण में गड़बड़ी की आंच में प्रमुख अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री स्तर के तकनीकी अधिकारी भी घिरे हैं। ऐसे अधिकारियों के मामले जांच एजेंसियों में सालों से दबे हुए हैं। शिकायतों के बावजूद इन अधिकारियों पर कार्रवाई तो हुई नहीं उल्टा ये अपने रसूख के सहारे लगातार ऊंचे पदों का प्रभार हासिल करने में कामयाब होते रहे हैं। ऐसे ही दागी अफसरों का दबदबा पीडब्ल्यूडी में कायम है और इसी वजह से घटिया निर्माण, ठेकेदारों से साठगांठ के मामलों में जांच आगे ही नहीं बढ़ पा रही है।
ऊंचे पदों पर भी दागी काबिज
सबसे पहले उन अधिकारियों की बात करते हैं जो निर्माण कार्यों में गड़बड़झालों की शिकायतों से घिरे हुए हैं। इनमें मध्यप्रदेश सडक़ विकास निगम के मुख्य अभियंता जीपी मेहरा मुख्य हैं। वे पीडब्ल्यूडी में भी मलाईदार भवन विभाग के प्रमुख अभियंता भी रह चुके हैं। मेहरा का विभाग में खासा रसूख है। प्रतिनियुक्ति के दौरान हैदराबाद की श्रीकेएन कम्पनी और ग्वालियर के तोमर बिल्डर्स से चंदेरी-मुंगावली के बीच घटिया सडक़ निर्माण का आरोप मेहरा पर लगा था। इसकी शिकायत लोकायुक्त पुलिस में की गई है। मेहरा पर लगे आरोपों की जांच के लिए विभागीय स्तर पर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। कमेटी में शामिल तकनीकी अधिकारी भी जांच पूरी नहीं कर सके। भवन विकास निगम के मंडला डिवीजन प्रभारी प्रभारी उपमहाप्रबंधक ललित चौधरी का है। चौधरी पर पुराने आरोपों के साथ-साथ बीते साल ही सीएम राइज स्कूल के भवन निर्माण में गड़बड़ी का आरोप लगा है। उनके द्वारा स्कूल भवन के निर्माण में केंद्र और राज्य सरकार की राशि का गलत तरीके से उपयोग करने और भ्रष्टाचार की शिकायत ईओडब्ल्यू तक पहुंची थी। यह जांच भी अब तक फाइल से बाहर नहीं आई है।
इन पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच अटकी
एक जनहित याचिका पर सुनवाई में अगस्त, 2022 में हाई कोर्ट ने लोकायुक्त से तत्कालीन मंत्री गौरीशंकर बिसेन की संपत्ति की जांच करने के निर्देश दिए थे। जनहित याचिका लांजी (बालाघाट) के पूर्व विधायक किशोर समरीते ने दायर की थी। मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के विरुद्ध अरबों रुपये की बेनामी संपत्ति की शिकायत लोकायुक्त से की गई थी, पर जांच प्रारंभ नहीं हुई।  बिसेन के विरुद्ध शिकायत करने वाले समरीते ने बताया कि वर्ष 2013 में की गई शिकायत पर जब लोकायुक्त संगठन ने जांच प्रारंभ नहीं की तो हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने लोकायुक्त संगठन को जांच के निर्देश दिए थे, पर जांच पूरी  नहीं हुई। समरीते अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। इधर, पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन का कहना है कि उनके मामले में की गई शिकायत की जांच लोकायुक्त ने निर्दोष पाया। कोई भी शिकायत प्रामाणिक नहीं पाई गई। उसकी समय अवधि भी खत्म हो गई है। बिसेन ने कहा कि समरीते कहीं भी जाएं, यह उनकी मर्जी है।  खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद राजपूत के विरुद्ध कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने मार्च में लोकायुक्त सत्येन्द्र कुमार सिंह को जमीन, फ्लैट की रजिस्ट्री व अन्य  दस्तावेज सौंपकर जांच की मांग की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया था कि राजपूत के पास 1250 करोड़ रुपये की अनुपातहीन संपत्ति है। इस मामले में अभी तक संगठन ने जांच शुरू नहीं की है। कांग्रेस के आरटीआई प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पुनीत टंडन ने 2023 में तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री के विरुद्ध लोकायुक्त संगठन में शिकायत करके राज्य शिक्षा केंद्र व बंगलों में लगे वाहनों में अनियमितता की शिकायत की थी। उस समय स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार थे। टंडन के अनुसार, आज तक नहीं बताया कि जांच की क्या स्थिति है। अब कोर्ट में याचिका लगाने की तैयारी कर रहे हैं।  सागर से भाजपा विधायक रहीं सुधा जैन के विरुद्ध लगभग 10 वर्ष पहले लोकायुक्त में शिकायत पहुंची थी। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि  उन्होंने विधायक निधि का उपयोग नरयावली क्षेत्र में किया, वह भी सार्वजनिक हित में नहीं था। इस मामले में लोकायुक्त संगठन ने अभियोजन स्वीकृति सामान्य प्रशासन के माध्यम से मांगी थी। सूत्रों ने बताया कि स्वीकृति के लिए मामला विधानसभा सचिवालय पहुंचा। वहां से संसदीय कार्य विभाग में भेज दिया गया। अब विभाग ने कह दिया है कि इस तरह की स्वीकृति विभाग से नहीं दी जाती।

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