-कृषि मंत्री कमल पटेल के निर्देश पर लगातार हो रही है कार्रवाई
-मप्र में कालाबाजारियों और माफिया पर टास्क फोर्स का पहरा
देश को 60 फीसदी सोयाबीन उत्पादन देने वाले मप्र में नकली बीज और खाद खपाने वाले माफिया और कालाबाजारियों की इस बार खैर नहीं है। दरअसल, कृषि मंत्री कमल पटेल के दिशा निर्देशन में खुफिया टास्क फोर्स बनाई गई है। इनकी सूचनाओं के आधार पर पुलिस प्रशासन नकली खाद-बीज का कारोबार करने वालों के खिलाफ छापामार कार्रवाई कर रहा है। अभी तक आधा दर्जन से अधिक कालाबाजारियों के खिलाफ कार्रवाई हो चुकी है।

विनोद कुमार उपाध्याय/भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। सोया स्टेट मप्र में पिछले चार साल से सोयाबीन की फसल खराब हो रही है। इस कारण किसान उच्च क्वालिटी का बीज तैयार नहीं कर पा रहे हैं। इसको देखते हुए कंपनियां, माफिया, कालाबाजारी संगठित होकर नकली बीज के साथ ही नकली खाद किसानों को बेच रहे हैं। किसानों का अधिक उत्पादन का प्रलोभन देकर प्रदेश में करीब 900 करोड़ रूपए के अमानक बीज और खाद खपाया जाएगा। हालांकि सरकार को इसकी भनक लग गई है। कृषि मंत्री कमल पटेल ने किसानों से कहा कि वे सीधे मुझे शिकायत करें। साथ ही अधिकारियों को निर्देश दिया है कि किसी भी स्थिति में किसानों के साथ ठगी नहीं होनी चाहिए। कृषि मंत्री को मिली शिकायक के बाद खंडवा, इंदौर, राजगढ़, भोपाल में नकली बीज और खाद बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
कृषि मंत्री कमल पटेल कहते हैं कि प्रदेश में नकली खाद-बीज-उवर्रक बेचने के लिए बड़ी संख्या में लोग सक्रिय हैं। इस कालाबाजारी पर लगाम लगाने के लिए खुफिया तंत्र तैयार किया गया है। इनकी सूचनाओं के आधार पर रेड मारेंगे और मार भी रहे हैं। इस टास्क फोर्स की सूचना पर कई जगह कार्रवाई की गई है। इस खुफिया तंत्र की अफसरों को भी जानकारी नहीं है। उधर, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, पिछले कुछ सालों में सोयाबीन कर फसल को सबसे अधिक नकली बीजों से नुकसान पहुंचा है। कंपनियों द्वारा बड़ी मात्रा में सोयाबीन का नकली बीज खपाए जाने से साल दर साल उत्पादन गिरता जा रहा है। इस कारण किसान दूसरी फसलों की बुवाई कर रहा है, वहीं सोयाबीन की खेती का रकबा घटता जा रहा है। उधर, कंपनियां, माफिया, कालाबाजारी नकली खाद और बीज बेचकर मालामाल हो रही हैं।
अरबों का काला कारोबार
कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार, सरकार की सतर्कता के बावजुद प्रदेश में हर साल अरबों रूपए के नकली खाद और बीज का कालाकारोबार होता है। नकली खाद-बीज को ब्रांडेड कंपनियों के बारदाने में पैकिंग कर बेचा जाता है। हर साल पुलिस फैक्ट्रियों, गोदामों, घरों पर छापामार कर नकली खाद-बीज पकड़ती है। लेकिन उसके बाद भी काला कारोबार चलता रहता है। इस साल सरकार द्वारा गेहूं की रिकार्ड 130 लाख मीट्रिक टन खरीदी करने से किसानों ने खरीफ की फसलों की बुवाई और उत्पादन पर अधिक जोर दिया। किसानों के उत्साह को देखते हुए बीज और दवा कंपनियों ने अधिक उत्पादन का सपना दिखाकर किसानों को नकली बीज और खाद बेचना शुरू कर दिया है। कृषि विशेषज्ञ इसे मप्र के किसानों के साथ बड़ा घोटाला मान रहे हैं। कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि किसानों से साथ यह फर्जीवाड़ा संगठित तरीके से किया जा रहा है। यह फर्जीवाड़ा बीज कंपनियां अधिकारियों के साथ मिलकर कर रही हैं और मारा जा रहा है बेचारा किसान।
दरअसल, मप्र में हर साल खाद-बीज की कालाबाजारी होती है। यहां नकली खाद-बीज आसानी से बिक जाता है। इसलिए कंपनियां मप्र पर अपना अधिक फोकस रखती हैं। विगत साल भी कृषि विभाग के अधिकारियों की सलाह पर किसानों ने दोगुना-तीनगुना उत्पादन के लालच में कंपनियों से महंगे दाम पर सोयाबीन का बीज और दवा खरीदकर बुवाई की थी। लेकिन कईयों के खेत में फसल ही नहीं उगी तो कईयों की फसल पीली पड़ गई थी। जो फसल बच गई उनकी फलियों में दाने नहीं आए थे। बिना दाने और पीली फसल देखकर किसानों के चेहरे भी पीले पड़ गए। जब फसल निकली है तो उसे देखकर किसान के आंसू भी निकल आए हैं। क्योंकि एक तो उत्पादन कम हुआ था, उस पर दाने भी छोटे थे। इस कारण न तो उन्हें अच्छे भाव मिल पाए थे और न ही वे बीज तैयार कर पाए थे।
ऐसे होता है खेल
किसानों की मानें तो उनके साथ लाइसेंसधारी बीज कंपनियां और अधिकारी मिलकर सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़ा का खेल करते हैं। कृषि विशेषज्ञ किसानों को सलाह देते हैं कि अच्छी फसल के लिए एक हेक्टेयर में 20-25 क्विंटल बीज डालिए, मगर मैदानी कृषि अधिकारी किसानों से एक हेक्टेयर में 50-60 क्विंटल बीज डालने को कहते हैं। यही नहीं अधिकारी बीज उत्पादक कंपनी की भी जारकारी देते हैं। दरअसल, यह कंपनियों की सांठ-गांठ से किया जाता है। उसके बाद कंपनियां अपने बीजों को बिक्रेताओं का उपलब्ध कराती हैं। यही नहीं अपने बीज को प्रमाणिक बताने के लिए कंपनियां भी फर्जीवाड़ा करती हैं। कंपनियां कुछ किसानों को 50 रुपए से लेकर 200 रुपए तक का लालच देकर उनसे उनके दस्तावेज और हस्ताक्षर करा कर ये साबित कर देती हैं कि उन्होंने फलां गांव के फलां किसान से बीज को लेकर अनुबंध किया और उनसे बीज की खेती कराई। मगर कंपनियां किसानों से बीज की खेती कराती ही नहीं बल्कि मंडियों से 3000 रुपए प्रति क्विंटल की दर सोयाबीन खरीद कर उसमें से मोटा दाना अलग करके उसे ही थैलियों में पैक कर और मार्का लगा कर किसानों को प्रमाणित बीज बताकर बेच देती हैं।
…3000 में फसल बेची…बीज का भाव 9000
मप्र में तीन दशक पहले सोयाबीन यानी पीला सोना के उत्पादन से लगातार किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इस बार सोयाबीन के रिकॉर्ड भाव के चलते किसानों को बीज की चिंता सता रही है। दरअसल 6 महीने से मंडियों में सोयाबीन के भाव ढाई गुना चल रहे हैं और बीज का भाव 9000 रुपए प्रति क्विंटल बताया जा रहा है। इस महीने मानसून की दस्तक होने से पहले किसानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही हैं। दरअसल किसानों को मानसून के पहले खेत जुताई कर बारिश की फसल बोने की तैयारी करना होती है और वह कर भी रहे हैं, लेकिन इस बार बड़े ही अनमने मन से किसान अपने खेत जोत रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि इस बार बीज की सोयाबीन के दाम सर्वाधिक 9000 के करीब बताए जा रहे हैं।
दरअसल गत वर्ष आखिरी समय में बारिश के कारण सोयाबीन की फसल दागी हो गई थी, इसलिए अच्छे बीज किसानों के पास बेहद कम या नहीं के बराबर हैं। जिन 5 से 10 फीसदी किसानों के पास सोयाबीन के बीज हैं वह अभी सोयाबीन बेचना ही नहीं चाहते। अक्टूबर-नवंबर 2020 में जब सोयाबीन की फसल मार्केट में आई थी, तब सोयाबीन 2900 से 3200 रुपए प्रति क्विंटल में किसानों ने बेची थी। पिछले 6 महीने में सोयाबीन में रिकॉर्ड तेजी आई है, जो अब तक के सबसे ज्यादा दामों हैं। वर्तमान में मंडी में सोयाबीन 7200 रुपए प्रति क्विंटल के करीब बोली जा रही है। सीहोर के किसान मलखान सिंह कहते हैं कि लगातार खेती में लागत बढ़ रही है। इससे किसानों को लाभ कम हो रहा है। वहीं इस बार सोयाबीन के दाम उच्च स्तर पर हैं। मंडी में 7000/7500 प्रति क्विंटल चल रहे हैं तो बीज का सोयाबीन 9000 है। यह स्थिति शुरुआत में ही नुकसानी जैसी लग रही है। वहीं देवास के किसान मनोहर ठाकुर का कहना है कि सरकार को किसानों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। सोयाबीन के बेतहाशा बढ़ते दाम पर किसान को सब्सिडी वाला बीज उपलब्ध कराना किसानों के हित में होगा। इस बार सोयाबीन से ज्यादातर किसान अपना मुंह मोड़ चुके हैं।
बीज के नाम पर ऊंचा दाम
कृषि मंत्री कमल पटेल भी इस बात को मानते हैं कि मप्र में नकली खाद-बीज की जमकर कालाबाजारी हो रही है। वह कहते हैं कि सरकार ने अधिकारियों को निर्देशित कर दिया है कि वे किसानों तक खाद-बीज पहुंचने से पहले उसकी पड़ताल कर लें। मंत्री का कहना है कि शासन और प्रशासन की सतर्कता से कई नकली कारोबारी पकड़ में आ चुके हैं। गत दिनों राजधानी भोपाल में एक ऐसा कारोबारी पकड़ाया जो बीज के नाम पर राजस्थान से सोयाबीज लाकर ऊंचे दाम पर बेच रहा था। जानकारी के अनुसार भोपाल जिले की हुजूर तहसील के अंतर्गत ग्राम परवलिया निवासी पवन जैन बड़ी मात्रा में राजस्थान से सोयाबीन लाकर उसे छानकर किसानों को बीज के नाम पर बेच रहा था। इसकी जांच करने पहले कृषि विभाग के इंस्पेक्टर एसके शर्मा पहुंचे तो उन्हें व्यापारी ने किसान का माल बताकर चलता कर दिया। इसके बाद मामले की शिकायत सीएम हेल्पलाइन में की गई तो मौके पर कृषि उपसंचालक एसएन सोनानिया, इंस्पेक्टर एसके शर्मा और कषि विस्तार अधिकारी जेपी कुशवाह पहुंचे। उनकी जांच में व्यापारी के पास सोयाबीन की बोरियां बरामद हुईं, लेकिन बीज का कोई वैध दस्तावेज नहीं मिला। इसके बाद व्यापारी के माल का पंचनामा बनाया गया है। सूत्रों ने बताया कि मप्र के व्यापारी रोज राजस्थान से सोयाबीन की गाड़ी बुला रहे हैं और उसे मंडी से ज्यादा दाम पर बेचकर व्यापारी मोटा मुनाफा कमा रहा है।
प्रदेश में सोयाबीन के बीज के साथ ही खाद की भी कालाबाजारी जोरों पर है। किसानों को नकली खाद महंगे दामों पर बेचा जा रहा है। जबकि सरकार के निर्देशानुसार, मप्र में खरीफ फसलों की बोवनी के लिए जरूरी डीएपी खाद की बोरी 1200 रुपए से ज्यादा में नहीं बेची जाएगी। यदि किसी सहकारी समिति द्वारा किसान से तय से अधिक कीमत ली जाती है तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उधर, कृषि मंत्री कमल पटेल ने किसानों से कहा कि खाद-बीज की कालाबाजारी, जमाखोरी या फिर अधिक कीमत लेने की शिकायत सीधे उनसे करें। किसानों के साथ गड़बड़ी करने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। प्रदेश में तीन लाख टन डीएपी उपलब्ध है। सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने बताया कि डीएपी को लेकर इस साल शुरुआत में असमंजस की स्थिति थी। पहले 1200 रुपए बोरी में किसानों को खाद दी गई। बाद में यह 1700 और फिर 1900 रुपए प्रति बोरी हो गई। राज्य सरकार की ओर से केंद्र सरकार से बढ़ी हुई कीमत को वापस लेने का अनुरोध किया गया। अन्य राज्यों से भी मांग आई, जिसे देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बढ़ी हुई कीमतों का भार किसान पर नहीं आने देने का निर्णय किया। सरकार ने तय किया कि किसान को 1200 रुपए में ही प्रति बोरी डीएपी मिलेगी। इसके लिए सरकार ने अपना अनुदान बढ़ा दिया। इसके बाद भी कुछ सहकारी समितियों ने बढ़ी हुई दरों पर किसानों को खाद बेची। इसको लेकर शिकायतें भी मिली हैं। इसे देखते हुए राज्य सहकारी विपणन संघ (मार्कफेड) के प्रबंध संचालक पी. नरहरि ने निर्देश दिए हैं कि किसान को 1200 रुपए बोरी से अधिक दर पर खाद नहीं बेची जाएगी, भले ही बोरियों पर दर कुछ भी अंकित क्यों न हो। दरअसल, बोरियों पर 1200, 1700 और 1900 रुपए एमआरपी दर्ज है। संयुक्त पंजीयक सहकारिता अरविंद सिंह सेंगर ने बताया कि स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं कि अब कोई भी समिति 1200 रुपए से ज्यादा में डीएपी की बोरी नहीं बेच सकती है। यदि इससे अधिक कीमत लिए जाने की शिकायत मिली तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ऐसी स्थिति में वे जिले में उप संचालक को शिकायत करें। कॉल सेंटर नंबर 0755-2558323 पर भी शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
घाटे का सौदा बनी सोयाबीन की फसल
वर्तमान में जो हालात हैं उसमें सोयाबीन की फसल किसानों के लिए घाटे का सौदा बनती जा रही है और किसान के पास इस फसल का कोई मजबूत विकल्प नहीं है। जिसके कारण प्रदेश का किसान कर्ज में फंसता जा रहा है, इस घाटे को नजदीक से समझने से ये निष्कर्ष निकलता है कि किसानों को उत्पादन लागत प्रति एकड़ एक सामान लगती है चाहे उत्पादन 3 क्विंटल हो या 13 क्विंटल हो। यह बीच का अंतर किसानों के लिए घाटा है। यह अंतर इसलिए आ रहा है की प्रदेश में फसलों के उन्नत और प्रमाणित बीज की जगह किसानों को कंपनियों और बीज प्रमाणीकरण की मिलीभगत से मंडी से खरीदी गई सोयाबीन को प्रमाणित और उन्नत बीज बनाकर बेचा जा रहा है। जिसके कारण कम अंकुरण होने लगा है। और यही कारण है कि 30 किलो प्रति एकड़ बीज बुआई की जगह किसानों को 70 किलो तक बीज की बुआई करनी पड़ रही है जिससे लागत दुगनी और उत्पादन एक चौथाई हो रहा है। बीजों में अनुवांशिक शुद्धता की कमी के कारण कीट व बीमारियां लग रही हैं जिससे उत्पादन प्रभावित हो रहा है।
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि प्रदेश में अमानक बीज उत्पादन का काम पिछले 10 वर्षों में बड़े स्तर पर बढ़ा है। बीज विक्रेता कंपनियों को बीज प्रमाणीकरण के सहयोग से काम करने पर मंडियो की सोयाबीन को प्रमाणित और उन्नत बीज के रूप में बेचने से दुगना फायदा होता है। किन्तु यह सब करने के लिए बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा कंपनियों के साथ मिलकर कागजों पर फर्जी बीज उत्पादन की प्रक्रिया की जाती है। जिसमें किसानों के नाम बीज उत्पादन का पंजीयन दिखाया जाता है। किसान से बीज खरीदने और भुगतान जैसी सभी प्रक्रिया कागजों पर दिखाई जाती है किन्तु वास्तविकता में किसान उस जमींन पर दिखाई गई फसल और किस्म को उगाता नहीं और न ही कंपनियों को बीज बेचता है। इस प्रक्रिया में कंपनियां अपने क्षेत्रीय दलालों के माध्यम से किसानों की बी1 और खसरा की कॉपी लेकर किसानों का फर्जी पंजीयन कर देते हैं और खाना पूर्ति के लिए किसानो को खाली बैग, टैग और बिल देते हैं जिससे जाँच के समय बीज की थैली, टैग और बिल दिखाए जा सकते है। कृषि विशेषज्ञ भी कहते हैं कि फसल को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए भी अच्छे बीज का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। बीजों की गुणवत्ता को वांछित स्तर पर सुनिश्चित करने के लिए बीज प्रमाणीकरण का प्रावधान है जिसके अंतर्गत बीज का सत्यापन, फसल का परीक्षण, प्रयोगशाला परीक्षण व टैगिंग की विधिवत प्रक्रिया होती है। आज जो किसानों की हालत खराब है उसमें सबसे बड़ा दोष अप्रमाणित, गुणवत्ता हीन व घटिया बीजों का है। बीज खराब होने से फसल खराब होती है और खाद बीज खरीदने के लिए ऋण के बोझ से दबा किसान आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा लेता है।
उड़द, ज्वार और मक्का का बढ़ेगा रकबा
मप्र में सोयाबीन का प्रमाणित बीज नहीं मिल पा रहा है। जिन व्यापारियों के पास सोयाबीन का स्टॉक रखा है वह 9 हजार रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से उसे बेच रहे हैं लेकिन अंकुरण की कोई गारंटी नहीं दे रहे हैं। बीज निगम और सोसायटियों के पास भी प्रमाणित बीज उपलब्ध नहीं है। इस कारण किसान उड़द, ज्वार और मक्का की खेती पर फोकस कर रहे हैं। इससे प्रदेश में इस बार सोयाबीन का रकबा घट सकता है। जिन किसानों ने खेत की मिट्टी पलटने के लिए पिलाउ कराया था। उन्होंने अब खेत को तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है। इसके अलावा जिन खेतों से किसानों ने हार्वेस्टर के माध्यम से गेहूं की फसल कटाई की थी उनमें गेहूं के पौधे के जो अवशेष खड़े हुए थे मानसून पूर्व हुई अल्प और जोरदार बारिश से खेतों की हकाई जुताई का रास्ता साफ हो गया है। बारिश से पूर्व बोवनी की तैयारी कर रहे हैं। इससे मौका देख कर फसल बोवनी प्रारंभ की जा सके। इसी के चलते खाद बीज डीजल का भी स्टॉक कर रहा है। वर्तमान में कृषि मंडी में सोयाबीन का भाव 7000 रु. प्रति क्विंटल चल रहा है। जिन लोगों के पास सोयाबीन का स्टॉक रखा है, उन्होंने भी सोयाबीन किसानों से ही खरीदा है। इसी को छानबीन कर कतिपय स्टॉकिस्ट बीज के रूप में 9000 रुपया प्रति क्विंटल दे रहे हैं। पिछले सालों के दौरान किसानों ने बाजार से जो बीज खरीदा था। खेतों में अंकुरित नहीं हुआ था।
सोयाबीन का फाउंडेशन बीच कभी आता ही नहीं। बीज निगम भी बीज निर्माता पंजीकृत सोसायटियों से खरीद कर लाती है। पिछले सालों के दौरान बीज निगम और सहकारी सोसाइटियों द्वारा खरीदा गया बीज अंकुरित नहीं हुआ था। इसके चलते किसानों को परेशान होना पड़ा था। शिकवा शिकायत के कारण कानूनी कार्रवाई का सामना भी करना पड़ा था। इसके कारण सोसाइटियों ने डिमांड भेजना बंद कर दी। बीज निगम पर फिलहाल उपलब्ध नहीं है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिकूल मौसम और सोयाबीन बीज वैरायटी 9560 में आ रही समस्याओं के कारण पिछले कुछ वर्षों से किसानों की फसल खराब हो रही है। जरूरी है कि किसान सोयाबीन बीज की अन्य वैरायटी जैसे कि 2034, जे.एस. 335 आदि का उपयोग शुरू करें। किसानों को फसल खराब होने से बचाने के लिए जरूरी जानकारी देना भी जरूरी है। अच्छी वैरायटी के बीजों से मृदा संरक्षण में भी सहायता मिलेगी, जिससे किसानों की आगे की फसल अच्छा उत्पादन दे सकेगी।
खतरे में सोयाबीन राज्य का दर्जा
पिछले कुछ वर्षों से नकली खाद-बीज और मौसम की मार का असर जिस तरह पीले सोने पर पड़ा है, उससे मप्र का सोयाबीन राज्य का दर्जा खतरे में है। इसकी वजह है किसानों का सोयाबीन की खेती से मोहभंग। दरअसल, मौसम की बेरूखी, नकली बीज-खाद और फसल का उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण सोयाबीन की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन रही है। मप्र अनाज उत्पादन में सात कृषि कर्मण अवार्ड पा चुका है, लेकिन चिंता की बात यह है कि प्रदेश में सोयाबीन की खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई है। इस कारण किसान अब दूसरी खरीफ फसलों की खेती करने लगे हैं। सोपा (सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया) के मुताबिक प्रदेश में पिछले 6 साल में सोयाबीन के उत्पादन में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार सोयाबीन में 30 डिग्री का तापमान जरूरी होता है, जो औसतन 35 से 38 के बीच रहा। रुक-रुक कर पानी मिलना चाहिए, जो नहीं मिली, एक साथ बारिश हुई, तो कहीं नहीं हुई। वहीं बरसात नहीं होने के कारण पीला मोजर से पत्ते पीले हो गए हैं।
प्रदेश मेंं फसल उत्पादन के मामले में सोयाबीन बेल्ट माने जाने वाले मालवा इलाके के किसान अब बाजार में उपज की सही कीमत नहीं मिलने से तेजी से इस फसल से मुंह फेर रहे है। सरकारी रिकार्ड के मुताबिक मंदसौर जिले में पिछले 25 सालों से लगातार करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में सोयाबीन फसल की बुआई की जा रही है, लेकिन अब इस कैश क्राप से किसानों ने हाथ खींच लेने से फसल बुआई के रकबे में 25 से 30 फीसदी की कमी हो गई है। वहीं 80 के दशक में विंध्य के किसानों की माली हालत सुधारने वाली नकदी फसल सोयाबीन की खेती अब किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। विंध्य प्रदेश के सबसे अधिक सोया उत्पादन वाले सतना जिले में कभी 85 हजार हेक्टेयर में बोई जाने वाली सोयाबीन की फसल का रकबा घटकर महज 10 हजार हेक्टेयर में सिमट गया है। स्थिति यह है कि सोयाबीन उत्पादन में मालवा को टक्कर देने वाले जिले में स्थित सोया प्लांटों को अब दूसरे राज्यों से उपज मंगानी पड़ रही है।
केंद्र ने खरीफ फसलों का एमएसपी बढ़ाया
कोरोना महामारी के दौरान लगातार दूसरे साल सरकार ने खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। केंद्रीय कृषि नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि किसानों को राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने एमएसपी बढ़ाया है। तिल की एमएसपी 452 रु., तुअर और उड़द दाल की 300 रुपए बढ़ाई गई है। धान (सामान्य) की एमएसपी पिछले साल के 1,868 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,940 रुपए प्रति क्विंटल की गई है यानी 72 रुपए ज्यादा। नई एमएसपी पर केंद्र के 25,000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। पिछले साल 1 जून को 14 खरीफ फसलों की एमएसपी बढ़ाई गई थी। 2020-21 में धान की एमएसपी को 1815 से बढ़ाकर 1868 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया गया था।
बाजरा पर एमएसपी बढ़ाकर 2150 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2250 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि विगत 7 साल में किसान के पक्ष में बड़े निर्णय हुए हैं ताकि किसानों की आमदनी बढ़ सके और उनमें खुशहाली आ सके। एमएसपी 2018 से लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा जोडक़र घोषित की जाती है।
किस फसल की एमएसपी कितनी हुई
फसल एमएसपी 2020-21 एमएसपी 2021-22
धान (सामान्य) 1868 1940
धान (ए ग्रेड) 1888 1960
ज्वार (हाईब्रिड) 2620 2738
ज्वार (मालदंडी) 2640 2758
बाजरा 2150 2250
रागी 3295 3377
मक्का 1850 1870
तुअर 6000 6300
मूंग 7196 7275
उड़द 6000 6300
मूंगफली 5275 5550
सूरजमुखी 5885 6015
सोयाबीन 3880 3950
तिल 6855 7307
नाइजर 6695 6930
कपास (मिडिल स्टेपल) 5515 5726
कपास (लॉन्ग स्टेपल) 5825 6025