- प्रदेश में भाजपा संगठन द्वारा चलाए गए तमाम कार्यक्रमों पर लगा प्रश्र चिन्ह
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। निकाय चुनाव के पहले चरण में जिस तरह से मतदाताओं ने बेरुखी दिखाई है, उससे प्रदेश में भाजपा संगठन द्वारा दस फीसदी मत बढ़ाने के अभियान की पोल खोलकर रख दी है। दरअसल दस फीसदी मतदान बढ़ने की जगह पांच फीसदी उल्टे कम हो गया है। पार्टी के मतों में दस फीसदी की वृद्वि के लिए प्रदेश में भाजपा संगठन बीते एक साल से कई तरह के अभियान व कार्यक्रम चला रही थी। कम मतदान को लेकर जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उसमें सरकारी अमले की भी बड़ी लापरवाही रही है।
इस मामले में प्रदेश का चुनाव आयोग भी कटघरे में दिखाई पड़ रहा है। दरअसल निकाय चुनाव के लिए आयोग ने कोई जागरुकता अभियान तक नहीं चलाया है और न ही समय पर मतदाताओं को दी जाने वाली पर्ची बंटवाने में गंभीरता दिखाई है। बची कुची कसर अफसरों ने एक- एक कर्मचारी को तिहरी जिम्मेदारी देकर पूरी कर दी। दरअसल भाजपा इस साल को अपने पितृ पुरुष और पार्टी के शीर्ष नेता रहे कुशाभाऊ ठाकरे के जन्मशती बर्ष के उपलक्ष्य में संगठन पर्व के रूप में मना रही है। इसके तहत केन्द्रीय नेतृत्व ने उसे दस फीसदी वोट शेयर बढ़ाने का लक्ष्य दिया है। इसके लिए पिछले सालभर से अधिक समय से पूरे प्रदेश में कई तरह के कार्यक्रम भी चल रहे हैं।
भाजपा ने छह महीने वाले सवा महीने से अधिक समय तक बूथ विस्तारक अभियान भी चलाया था। इसमें बूथ को मजबूत करने पर जोर दिया गया था। इसके अलावा हर बूथ पर बूथ अध्यक्ष, बीएलए समेत तीन लोगों की टीम तैनात की गई थी, इसे त्रिदेव का नाम दिया गया था। इस त्रिदेव पर मतदान की पूरी जिम्मेवारी थी। इसके अलावा पन्ना प्रभारियों को भी मतदान के लिए दायित्व दिए गए हैं। इसके बाद भी मतदान प्रतिशत कम होने से यह तय है की इस व्यवस्था पर पूरी तरह नजर नहीं रखी गई और कार्यकर्ता वोटर को बाहर लाने में असफल रहा है। राजनैतिक दलों के साथ ही प्रशासन को इस मामले में जरुर आत्म चिंतन करना चाहिए। खास बात यह है की इस बार सबसे बड़ी परेशानी की वजह भाजपा के लिए यह है की उसके बेहद मजबूत गढ़ माने जाने वाले इलाकों में सबसे कम मतदान हुआ है। इसकी वजह से जहां भाजपा का टेंशन बढ़ा हुआ है ,वहीं कांग्रेस को उम्मीदों के पंख लग गए हैं। कांग्रेस कम वोटिंग में वह अपनी जीत तलाश रही है। कम वोटिंग ने भाजपा संगठन के मैनेजमेंट पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। संगठन के नेताओं का अब दूसरे चरण के मतदान पर फोकस है और इसके लिए चाक चौबंद व्यवस्था की जा रही है। साढ़े आठ साल पहले हुए नगरीय निकाय चुनाव में प्रदेश में औसत वोटिंग का आंकड़ा 65 फीसदी से अधिक रहा था और कई शहरों में तो 75 फीसदी से अधिक मतदान हुआ था पर इस बार यह साठ प्रतिशत के आसपास जाकर सिमट गया है। कई वार्डों में तो चालीस से पचास फीसदी के बीच ही मतदान हुआ है। राजनीतिक पंडित कम वोटिंग को भाजपा के लिए नुकसानदेह मानते हैं। उनका मानना है कि यह भाजपा के लिए अच्छा नहीं है। पिछले चुनाव में प्रदेश के सभी सोलह नगर निगमों में जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार भी क्लीन स्वीप चाहती थी, पर कम मतदान ने उसकी पेशानी पर चिंता की लकीरें उभार दी है। हालांकि भाजपा का दावा है कि मतदान का प्रतिशत कम होने से लीड भले ही घट जाए पर जीत उसी के प्रत्याशियों की होगी। वहीं कांग्रेस इसे अपने पक्ष में देख रही है। पहले चरण में 11 नगरनिगमों में हुए चुनाव में वह कुछ स्थानों पर कांग्रेस अपने प्रत्याशियों के जीतने की उम्मीद लगाए हुए है।
इस तरह के चलाए भाजपा ने अभियान
बीजेपी ने बीते माह ही निकाय चुनाव के ठीक पहले प्रदेश के प्रत्येक नगरीय निकाय एवं ग्रामीण निकाय के बूथों पर बूथ विजय संकल्प अभियान चलाया था। इसके लिए पार्टी ने नारा दिया था की कार्यकर्ता जीतेगा बूथ, जीतेगी भाजपा। इस अभियान में जिलों की चुनाव प्रबंध समिति, मंडलों की टीम, बूथ त्रिदेव सहित पूरी बूथ समिति को लगाया गया था। इसमें मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, सांसद, विधायक, वरिष्ठ नेतागण और कार्यकर्ताओं ने बस्तियों में जाकर योजनाओं के हितग्राहियों से संपर्क भी किया था। इसके पहले पार्टी द्वारा बूथ विस्तारक अभियान भी चलाया गया था। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से लेकर मंत्रियों, सांसद व विधायकों से लेकर आम कार्यकर्ताओं को इसमें भागीदार बनाया गया था।
कार्यकर्ता भी रहे सुस्त
कम मतदान होने से यह तो तय हो गया की प्रदेश में भाजपा द्वारा चलाए गए तमाम अभियान पूरी तरह से बेअसर रहे हैं। यही नहीं कार्यकर्ता भी इस बार सुस्त रहे हैं। इसकी वजह है लगातार पार्टी के सत्ता में होने के बाद भी उन्हें सत्ता में भागीदारी नही दी जाना भी है। इसके अलावा जिस तरह से पार्षद से लेकर महापौर तक के टिकट विधायकों के दबाब में मनमाने तरीके से दिए गए हैं उससे न केवल जनता में नाराजगी रही , बल्कि कार्यकर्ताओं में भी निराशा देखी गई, जिसकी वजह से भी कम मतदान हुआ है। प्रत्याशियों और हर बार चुनाव में दोहराए जाने वाले वही पुराने वादों को लेकर भी मतदाताओं में कोई ललक नहीं दिखी। यह हाल शहरी इलाकों में तब रहा जबकि भाजपा के तमाम बड़े नेताओं ने न केवल रोड शो किए , बल्कि सभाएंभी की हैं। इसके अलावा रही सही कसर चुनाव में लगे सरकारी अमले ने पर्ची वितरण व वोटर सूची में लापरवाही बरत कर पूरी कर दी।
विधायक भी रहे बेअसर
भाजपा ने अपने मंत्री और विधायकों को भी नगरीय निकाय चुनाव की जिम्मेदारी दे रखी है। इसके लिए उनसे कहा गया था की वे अपनी- अपनी विधानसभा में आने वाली नगरपालिका और नगरपरिषदों पर फोकस करें और वोट शेयर बढ़ाने पर पूरा ध्यान दें। सूत्रों की माने तो कई विधायकों के परिजन पंचायत चुनाव लड़ रहे थे और कुछ के नगरीय निकाय चुनाव। इसकमी वजह से विधायक अपने परिजनों के चुनाव में ही उलझे रहे , जिसकी वजह से उनके द्वारा मतदान पर ध्यान ही नहीं दिया गया। गौरतलब है कि भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा और लोकसभा में वोट शेयर 51 फीसदी तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे चालीय फीसदी मत मिले थे। इसमें 11 प्रतिशत की वृद्धि को लेकर पार्टी काम कर रही है पर नगर निगम चुनाव में हुआ मतदान ने भाजपा संगठन को निराश कर दिया।