नवाचार: कैदियों को सिखाई जा रही अंग्रेजी

  • आधा सैकड़ा कैदियों को बनाया गया साक्षर

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
वह दिन दूर नहीं है, जब जेल से रिहा होने के बाद कैदी अंग्रेजी में बात करते नजर आएंगे। इसकी वजह है इंदौर जेल में किए जाने वाला नवाचार। इसके तहत इंदौर सेंट्रल जेल में इस समय 20 कैदियों को अंग्रेजी सिखाई जा रही है। उन्हें अंग्रेजी बोलने से लेकर उसके लिखने तक का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
इसके अलावा जेल के ही स्कूल में निरक्षर कैदियों को भी शिक्षा देकर पढ़ना लिखना सिखाया जा रहा है। इसके पीछे जेल प्रबंधन की मंशा उनके जेल से बाहर आने पर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ना है। दरअसल, इंदौर सेंट्रल जेल में अभी दो हजार से अधिक कैदी हैं। इनमें 1455 पुरुष दंडित बंदी, 37 साधारण कैदी, 93 महिला बंदी, 699 विचाराधीन कैदी, 11 मृत्युदंड प्राप्त कैदी और 16 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत निरुद्ध कैदी भी शामिल हैं। जेल अधीक्षक अलका सोनकर का कहना है कि महिला और पुरुष कैदियों को जागरूक करने के लिए समय-समय पर नवाचार किए जाते हैं, जिनका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है। इन्हीं प्रयासों के परिणामस्वरूप कैदी अब शिक्षा की ओर रुचि दिखा रहे हैं और उन्हें विभिन्न बुनियादी कार्यों का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
आधा सैकड़ा कैदी बन चुके साक्षर  
जेल प्रशासन द्वारा निरक्षर कैदियों को भी शिक्षित बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके भी अच्छे परिणाम आना शुरू हो गए हैं। मौजूदा समय में जेल में 50 से अधिक कैदी न केचल साक्षर बन गए हैं बल्कि बाकायदा वे प्रायमरी स्कूल में जाकर पढ़ाई भी कर रहे हैं। इसके अलावा कई कैदी ऐसे हैं, जो हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी की परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कैदी भी है, जिनमें से 10 कैदी इस वर्ष इन परीक्षाओं में शामिल होंगे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले कैदियों की संख्या 8 है, जो बीकॉम और एमए जैसी डिग्रियां हासिल कर रहे हैं।
कैदी की पहल ला रही रंग
जेल के अंदर बनी पाठशाला में हर दिन अंग्रेजी की कक्षाएं लगाई जाती हैं। इन्हीं कक्षाओं में आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदी परविंदर त्रिलोक सिंह अपने साथी कैदियों को न केवल अंग्रेजी लिखना सिखा रहे हैं, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास के साथ फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने का अभ्यास भी करवा रहे हैं। इस समय जेल की इस पाठशाला में 20 कैदी नियमित रूप से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जिनमें से कई अब धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने लगे हैं। परविंदर त्रिलोक सिंह को वर्ष 2002 में भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467 और 471 के तहत धोखाधड़ी के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी और वह 6 दिसंबर 2002 से जेल में सजा काट रहा है। अब उसका संकल्प है कि अधिक से अधिक कैदियों को अंग्रेजी भाषा का ज्ञान दिया जाए, ताकि वे जेल से बाहर जाकर समाज में अपनी एक नई और सकारात्मक पहचान बना सके।
कराया जा रहा होटल मैनेजमेंट का कोर्स  
पिछले तीन वर्षों से सेंट्रल जेल में होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी संचालित किया जा रहा है, जिसमें अब तक 10 से अधिक कैदी प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। इनमें से कई कैदी जेल से बाहर जाने के बाद अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने की योजना बना रहे हैं, ताकि वे अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे तरीके से कर सकें। ऐसे ही एक कैदी, रुस्तम, जो वर्षों पहले हत्या के आरोप में जेल आया था, उसने न केवल उच्च शिक्षा ग्रहण की बल्कि होटल मैनेजमेंट का कोर्स भी किया। उसने अपने साथियों को भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया है। इसी तरह, जेल में बंद बिरजू अहिरवार ने भी अपने जीवन को बदलने के लिए शिक्षा का सहारा लिया और अब वह आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। सेंट्रल जेल में किए जा रहे ये सुधारात्मक प्रयास कैदियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यह पहल न केवल कैदियों के जीवन में बदलाव ला रही है, बल्कि यह समाज में उनके पुनर्वास की संभावनाओं को भी बढ़ा रही है।

Related Articles