इज्जत घर पर… महंगाई की मार

इज्जत घर

-संसदीय समिति ने भी माना शौचालय बनाने के लिए 12 हजार का फंड अपर्याप्त
-एक शौचालय बनाने में आ रहा है 22 से 25 हजार खर्च
भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम।
पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बेतहासा वृद्धि के कारण निर्माण सामग्रियों के दाम आसमान छू रहे हैं। इसका असर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन पर भी पड़ रहा है। महंगाई के कारण सरकार द्वारा शौचालय बनाने के लिए दिया जा रहा 12 हजार रुपए का फंड कम पड़ने लगा हैं। इसकी वजह यह है कि एक शौचालय बनाने में 22 से 25 हजार रुपए खर्च आ रहा है। इस तथ्य का संसदीय समिति ने भी स्वीकार किया है।
गौरतलब है कि पेट्रोल-डीजल से लेकर निर्माण और खाद्य सामग्री के दाम आसमान छू रहे हैं महंगाई लोगों का तेल निकाल रही हैं। इसके बावजूद केंद्र सरकार स्वच्छ भारत मिशन के तहत व्यक्तिगत शौचालय बनाने 12 हजार ही दे रही है। वर्तमान में व्यवस्थित शौचालय बनाने 22 से 25 हजार लागत आ रही है। गांव के लोग खुद मेहनत कर शौचालय बनाने पसीना बहा रहे हैं। किसी को जैसे-तैसे सुविधा मिल पा रही है तो कई के शौचालय आधे अधूरे पड़े हैं। इस बीच जल संसाधन संबंधी स्थाई संसदीय समिति ने शौचालय निर्माण के लिए 20 हजार रुपए देने की पुरजोर सिफारिश की है। समिति ने मौजूदा सहायता राशि को पूरी तरह से अपर्याप्त माना है। वह वास्तविक लागत के करीब भी नहीं है। भले ही कोई लाभार्थी अपनी मेहनत से शौचालय बनाएं।
शौचालय बनवाना किसी चुनौती से कम नहीं
महंगाई के कारण सरकारी फंड से शौचालय बनवाना किसी चुनौती से कम नहीं है। शहडोल जिले की ग्राम पंचायत कल्याणपुर के राजेश सिंह बताते हैं निर्माण सामग्री के दाम इतने बढ़ गए हैं कि एक शौचालय बनवाने में करीब 807 वर्ग फुट गिट्टी, 3 बोरी सीमेंट, नल, टंकी, दो गड्ढे, गड्ढों की खुदाई, दरवाजा, टॉयलेट सीट की जरूरत होती है।
मजदूरी लगभग 15 सौ रुपए तय है। कुल लागत 25 हजार रुपए आ रही है। ऐसे में सिर्फ 12 हजार रुपए में शौचालय कैसे बन सकता है। राजेश ने जैसे-तैसे शौचालय तो बनवा लिया लेकिन दरवाजा नहीं लगा पाए, नतीजतन पर्दे से काम चला रहे हैं। इसी तरह लक्ष्मी सिंह के घर के शौचालय में टॉयलेट सीट और छपाई का काम अधूरा है। उधर, संसदीय समिति ने स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के लिए 3 वर्ष में संशोधित बजट अनुमान में गिरावट पर चिंता जताई है। 2021-22 के लिए बजट अनुमान 9994.10 करोड़ था। संशोधित अनुमान में घटाकर छह हजार करोड़ कर दिया गया। हैरानी है कि विभाग ने राज्यों को सिर्फ 21 सौ करोड़ रुपए जारी किए। विभाग का तर्क है कि राज्यों को उनकी मांगों, निधियों की उपलब्धता और राज्यों के कार्यों के आधार पर राशि जारी की जाती है। हालांकि कोरोना काल में अनुमानित लक्ष्य के अनुसार राशि का उपयोग नहीं हो पाया।

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