एक्ट के उल्लंघन में मप्र में रोजाना एक अधिकारी हो रहा दंडित

एक्ट

सूचना अधिकार अधिनियम की अनदेखी में मध्यप्रदेश दूसरे नंबर पर

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। करीब 17 साल पहले सूचना अधिकार अधिनियम 2005 को  लागू किया गया था। इसका उद्देश्य है कि आमजन सरकारी योजनाओं-परियोजनाओं के बारे में कोई भी जानकारी पा सकते हैं। लेकिन देखा यह जा रहा है कि सरकार द्वारा जनता को दिए गए इस अधिकार का अधिकारी ही उल्लंघन कर रहे हैं। आलम यह है कि देशभर में आरटीआई एक्ट का उल्लंघन किया जा रहा है। आरटीआई एक्ट के उल्लंघन के मामले में कर्नाटक पहले स्थान पर है, वहीं मप्र दूसरे स्थान पर। आलम यह है कि मप्र में औसतन रोजाना एक अधिकारी दंडित किया जा रहा है। अफसरों पर पेनॉल्टी लगाने के मामले में कर्नाटक देशभर में अव्वल है। कर्नाटक ने 1265 अफसरों पर 1.04 करोड़ की पेनॉल्टी एक साल में लगाई है। हरियाणा 161 अफसरों पर 38.81 लाख के साथ मप्र के बाद तीसरे स्थान पर है।
सूचना का अधिकार आजादी की लड़ाई का कानून है, देश में आदर्श लोकतंत्र की स्थापना का कानून है, यह कानून आम जनता का मजबूत हथियार है। इस कानून के माध्यम से आम जन बड़े से बड़े कार्यालय में आवेदन देकर सूचना मांग सकते हैं। सूचना की मांग करने वाले आरटीआई का अर्थ सूचना प्राप्त करने का राइट टू इनफार्मेशन समझते हैं ,जबकि  सूचना देने वाला तबका इसका मतलब राइट टू इग्नोर समझता है, जो सरासर गलत है। बीते एक साल में आरटीआई एक्ट के उल्लंघन पर मप्र के 222 अफसरों पर 47.50 लाख रुपए की पेनॉल्टी राज्य सूचना आयोग ने लगाई है। मप्र में अब तक 222 अधिकारी दंडित: आरटीआई एक्ट यानी सूचना का अधिकार अधिनियम के उल्लंघन के मामले में मध्य प्रदेश के अधिकारी भारत में दूसरे नंबर पर आ गए हैं। यहां जानकारियों को छुपाने का काम किया जाता है। नागरिकों के सूचना के अधिकार का हनन किया जा रहा है।  इसका खुलासा सरकारी रिकॉर्ड से हुआ है। नंबर वन पर कर्नाटक है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश जहां राज्य सूचना आयोग द्वारा 222 अधिकारियों को जानकारी छुपाने के अपराध में दंडित किया गया। राज्य सूचना आयोग द्वारा यह कार्रवाई 1 जुलाई 2021 से 30 जून 2022 के बीच की गई। यानी साल में हर रोज (प्रति कार्य दिवस) एक से ज्यादा अधिकारी को दंडित किया गया। सरकारी तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली संस्था सर्तक नागरिक संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में मप्र में आरटीआई में जानकारी नहीं दिए जाने की 9005 शिकायतें और अपीलों का निराकरण किया गया हैं। वहीं इस अवधि में 8413 नई सेकंड अपीलें भी दायर हुई हैं। वर्तमान में आरटीआई की 5929 सेकंड अपीलें राज्य सूचना आयोग में लंबित हैं।
सूचना आयुक्त के पद खाली
मध्यप्रदेश में राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा की जाती है। राज्य सूचना आयोग में सूचना आयुक्त के कुल 10 पद हैं। वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला के अलावा तीन सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी, अरुण कुमार पांडेय और राहुल सिंह कार्यरत हैं। यानी 7 पद खाली हैं।  नवंबर 2021 में सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए आवेदन बुलाए थे। 121 दावेदारों ने आवेदन किए। इनमें रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस, कई रिटायर्ड जज से लेकर पत्रकार भी शामिल हैं। लेकिन आवेदन जमा होने के पूरे एक साल बाद भी कोई नई नियुक्ति नहीं हो सकी है। राज्य सूचना आयोग के अवर सचिव कृष्णकांत खरे का कहना है कि नियुक्ति प्रक्रिया पूरी तरह से जीएडी के अधीन हैं। इसमें आयोग का कोई दखल नहीं हैं। वर्तमान में मुख्य सूचना आयुक्त एके शुक्ला के अलावा तीन सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी, अरुण कुमार पांडेय और राहुल सिंह कार्यरत हैं। सर्तक नागरिक संगठन के मुताबिक मप्र में अपीलों के निराकरण की रफ्तार को देखा जाए, तो मौजूदा अपीलों के निपटारे में अभी 8 महीने का वक्त लगेगा। नई अपीलों की सुनवाई का नंबर इनके बाद ही आ सकेगा।
सूचना देने से मना करने के केस निपटाने में 24 साल तक लग रहे
देश में हर साल तकरीबन 40 से 60 लाख आरटीआई दाखिल हो रही हैं यानी हर मिनट लगभग 11 आवेदन। मगर चौंकाने वाली बात ये है कि सूचना देने से इनकार करने के मामले निपटाने में कई-कई साल लग रहे हैं। मसलन, पश्चिम बंगाल में अगर 1 जुलाई 2022 को ऐसी शिकायत की जाए, तो उस पर फैसला आने में 24 साल 3 महीने लगेंगे। जबकि, महज एक साल पहले तक यह अवधि 4 साल 7 महीने ही थी। सर्तक नागरिक संगठन द्वारा सूचना आयुक्तों के प्रदर्शन को लेकर जारी ताजा रिपोर्ट में ये आंकड़े सामने आए हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि पर्याप्त स्टाफ नहीं होने से शिकायतों का अंबार बढ़ता जा रहा है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में स्थिति कुछ बेहतर है, फिर भी 8-9 महीने इंतजार करना पड़ेगा। आरटीआई के तहत हर राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त व 10 तक सूचना आयुक्त होने चाहिए। महाराष्ट्र में मुख्य सूचना आयुक्त समेत 5 का स्टाफ है। केंद्रीय सूचना आयोग में दिसंबर 2019 में 4 पद खाली थे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 3 महीने में भरने को कहा था, लेकिन अब तक अमल नहीं। आरटीआई में सूचना न देने की जितनी शिकायतें लंबित हैं और जिस रफ्तार से निपटाई जा रही हैं, उस हिसाब से 1 जुलाई 2022 की शिकायत निपटाने में प. बंगाल में 24 साल, 3 माह लगेंगे। 30 जून, 2022 तक सबसे ज्यादा 99,722 शिकायतें महाराष्ट्र में लंबित थीं। उप्र (44,482) दूसरे, कर्नाटक (30,358) तीसरे और बिहार (21,342) चौथे नंबर पर है। राजस्थान में 13188, मप्र में 5929, पंजाब में 4671 शिकायतें में लंबित थीं।
देरी के अजीब तर्क और अनोखी सजा
भोपाल के एक मामले में लोक सूचना अधिकारी ने जानकारी की फोटोकॉपी के खर्च के नाम पर आवेदक से 40 हजार जमा करा लिए। सूचना आयुक्त ने अफसर पर 25 हजार रुपए जुर्माना ठोंका और 40 हजार रुपए भी वापस करवाए। उत्तराखंड में विद्युत विभाग ने सूचना देने में 30 दिन की जगह 4 महीने लगा दिए। इस पर संबंधित अफसर का तर्क था कि कार्यालय में रंग रोगन होने के कारण आवेदन इधर-उधर रख दिया गया। उन पर 5 हजार रुपए जुर्माना लगा।

यह है राज्यों की स्थिति
राज्य            निपटान की अवधि
प. बंगाल 24 साल, 3 महीने
ओडिशा 5 साल, 4 महीने
महाराष्ट्र 5 साल, 3 महीने
बिहार 2 साल, 2 महीने
छत्तीसगढ़ 1 साल, 6 महीने
उत्तरप्रदेश 1 साल, 2 महीने
राजस्थान 9 महीने
मप्र, पंजाब 8 महीने
हरियाणा, गुजरात 5 महीने

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