- करना होगा आर्थिक तंगी का सामना
- गौरव चौहान
नए वित्त वर्ष का पहला ही महिना प्रदेश के कई नगर निगमों को भारी पड़ता दिख रहा है। इसकी वजह है सरकार द्वारा उन्हें हर माह दिए जाने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में से पचास करोड़ रुपए काट लिया जाना। इस कम की गई रकम को संचानालय स्तर से ही काटकर बिजली कंपनियों को दे दिया गया है। दरअसल नगर निगम समय पर बिजली के बिलों का भुगतान नहीं करते हैं, जिसकी वजह से उन पर करोड़ों रुपयों का बिजली बिल बकाया बना रहता है। इसकी वजह से यह कदम मंत्रालय स्तर से उठाया गया है। अगर काटी गई रकम को देखें तो भोपाल नगर निगम के खाते से 7.22 करोड़ रुपए और इंदौर नगर निगम का सर्वाधिक 12.63 करोड़ रुपए काटा गया है। यह वो राशि से ही जिससे ही निगम के अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन-भत्तों का भुगतान समय पर किया जाता है। दरअसल निकायों की कर वसूली समय पर पूरी नहीं करने और फिजूल खर्ची पर रोक नहीं लगने से उनकी आर्थिक हालत लगातार खराब बनी रहती है।
यह राशि भी तब कट रही है , जबकि निगमों को मिलने वाली राशि में पहले से ही स्थाई कटोति की जा चुकी है। भोपाल नगर निगम को चुंगी क्षतिपूर्ति पहले हर माह 28 करोड़ रुपए मिलती थी, लेकिन कांग्रेस की कमलनाथ सरकार में इसे कम कर 18 करोड़ रुपए कर दिया गया था। इसके उलट अकेले भोपाल नगर निगम में ही हर माह वेतन-भत्तों पर 32 करोड़ रुपए खर्च होता है। चुंगी क्षतिपूर्ति में कटौती की वजह से वेतन-भत्ते देने में निगम प्रशासन को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। यही नहीं निगम लंबे समय से ईपीएफ तक का का भुगतान भी नहीं कर रहा है।
प्रॉपर्टी टैक्स की वसूली 11 फीसदी अधिक
प्रदेश के नगरीय निकायों में करों की वसूली में 8 प्रतिशत और प्रॉपर्टी टैक्स कलेक्शन में 12 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। नगर निगमों में यह 11 प्रतिशत है। सर्वाधिक वृद्धि करने वाले नगर निगमों में उज्जैन, सिंगरौली, छिंदवाड़ा एवं ग्वालियर शामिल हैं। इन्होंने 20 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की है। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा है कि इससे निकायों की वित्तीय स्थिति में सुधार होने से अधिक विकास कार्य हो सकेंगे। वित्तीय वर्ष 2021-22 में नगरीय निकायों को लगभग 2354 करोड़ रुपये की आय हुई थी। बीते वित्तीय वर्ष 2022.23 में लगभग 2532 करोड़ रुपए, राजस्व मिला है। वहीं नगर पालिका परिषदों में संपत्ति कर वसूली में 10 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। नगर परिषदों में यह 21 फीसदी है। कोठरी, माचलपुर, इछावर, अम्बाह, शिवपुरी, आरोन, बारासिवनी, बरघाट तथा डिंडोरी जैसे निकाय में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है।
कर्ज वसूली में लापरवाही है बड़ी वजह
प्रदेश में 16 नगर निगम सहित 413 नगरीय निकाय हैं। निकायों का वित्तीय बजट टैक्स कलेक्शन पर निर्भर है, लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के चलते निकायों में पर्याप्त टैक्स कलेक्शन नहीं हो पाता है। सालाना टैक्स कलेक्शन 40 प्रतिशत से ऊपर नहीं पहुंच पाता है। इससे निकायों के विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं। इसके अलावा निकायों में सबसे बड़ी समस्या अनियमित नियुक्ति की है। जनप्रतिनिधि सबसे पहले अपने चहेतों की नियुक्तियां करते हैं। इससे आर्थिक बोझ बढ़ता है। एक बार नियुक्ति मिलने के बाद इन कर्मियों को हटाना नहीं जाता है।
दो साल से नहीं चुकता किया बिजली बिल
नगर निगम द्वारा बीते दो साल से बिजली का बिल पूरी तरह से नहीें चुकाया गया है, जिसकी वजह से उसकी राशि में लगातार वृद्धि होती जा रही है। बिजली कंपनी इसके लिए लगातार पत्राचार भी करती है , लेकिन फिर भी राशि का भुगतान नहीं किया जा रहा है। यही वजह है कि अब नगरीय प्रशासन संचालनालय ने चुंगी क्षतिपूर्ति में से राशि काट कर सीधे विद्युत वितरण कंपनियों के खाते में जमा करा दिया है। इसके बाद भी निकाय बिल की राशि जमा नहीं करते हैं। कई बार हालात ऐसे बन चुके हैं कि निगम दफ्तरों को बिजली तक काटनी पड़ गई थी। जिसकी वजह से स्ट्रीट लाइट तो बंद हो ही गई थी और शहर की जलप्रदाय व्यवस्था भी प्रभावित होने लगी थी , तब कहीं जाकर निगम प्रशासन ने आनन -फानन में कुछ पैसों को जमा करया था। ऐसे हालात अब भी गाहे बगाहे बने रहते हैं। इसकी वजह से नगरीय विकास मंत्री भूपेंद्र सिंह तक को एक बार दखल देना पड़ गया था।