
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा हायर सेकेंडरी स्कूलों की ग्रेडिंग लिस्ट जारी की गई है। इस लिस्ट में जहां महागरों वाले सरकारी स्कूल फिसड्डी साबित हुए हैं तो वहीं ग्रामीण परिवेश वाले जिलों ने बाजी मारकर सभी को चौका दिया है। खास बात यह है भोपाल जैसे राजधानी वाले जिले को 19 वां स्थान दिया गया है। भोपाल का यह हाल तब है जबकि यहीं पर विभाग के आला अफसरों से लेकर पूरी सरकार मौजूद रहती है। दरअसल लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा जारी की गई नवमी से बारहवीं तक के स्कूलों को लेकर जिलों, की ग्रेडिंग में बाजी मारते हुए दमोह ने पहला तो खरगौन ने अंतिम स्थान पाया है। दरअसल यह पूरी कवायद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सरकारी स्कूलों की रैंकिंग प्रणाली विकसित करने और सीएम डैशबोर्ड में प्रदर्शित करने के निर्देश के बाद की गई है। दिए थे। मुख्यमंत्री के निर्देश के करीब आठ महीने बाद लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा नवमी से बारहवीं तक के स्कूलों को लेकर आठ बिंदुओं के आधार पर रैकिंग की गई है।
इन बिन्दुओं में स्कूलों में शिक्षकों की उपलब्धता, प्रशिक्षण, आवश्यक अधोसंरचना, विभिन्न शासकीय योजनाओं की हितग्राहियों तक समय पर पहुंच आदि कार्य प्राथमिकता से किये जाने को शामिल किया गया है। इसके तहत जिलों में संचालित गतिविधियों, योजनाओं एवं विभिन्न कार्यक्रमों की समीक्षा की गई है। इसके आधार पर ही जिलों की ग्रेडिंग निर्धारित की गई है। जिला स्तरीय ग्रेडिंग निर्धारित करने में प्रमुख रूप से वार्षिक परीक्षा परिणाम, सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों का निराकरण, व्यावसायिक शिक्षा हेतु नामांकन, निष्ठा प्रशिक्षण, इन्सपायर अवार्ड, विद्यालयों में टेबलेट की उपलब्धता, ब्रिज कोर्स, नामांकन एवं ठहराव इत्यादि मानकों में जिलों के प्रदर्शन की समीक्षा की गई।
सीएम हेल्पलाइन के मामले में पिछड़ा भोपाल
भोपाल जिले को वार्षिक परीक्षा परिणाम में 20 में से 12.1 अंक मिले है, जबकि सीएम हेल्पलाइन के प्रकरणों में 10 में से 7.1 नंबर है। इंस्पायर अवार्ड व वोकेशनल में दस में से दस अंक मिले है। जबकि निष्ठा ट्रेनिंग में 10 में से 5.2 अंक ही मिल सके हैं। इसकी वजह से भोपाल जिला ग्रेंडिग में पिछड़ गया है।
तीन सौ से अधिक शिक्षक है पदस्थ
भोपाल ऐसा जिला है जिसमें तय पदों की तुलना में तीन सौ से ज्यादा शिक्षक पदस्थ हैं। इनमें से अधिकांश अधिकारी व कर्मचारी सालों से एक ही पद पर पदस्थ हैं। इस मामले में स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार के प्रयास भी नाकाम साबित हो रहे हैं। दरअसल सरप्लस शिक्षकों की नई पदस्थापना और एक ही पद पर सालों से जमे अफसरों व कर्मचरियों को हटाने के मामले में अफसर मंत्री की भी नहीं सुन रहे हैं। नतीजा यह है कि स्कूल शिक्षा विभाग के रिपोर्ट कार्ड में भोपाल जिला पिछड़ता ही जा रहा है। राज्य शिक्षा केंद्र की 15 सितंबर को जारी रैकिंग में भी भोपाल की स्थिति बेहद खराब सामने आयी थी। उस समय भोपाल का नंबर 51 वां था। पहली से आठवीं की व्यवस्था करने का जिम्मा डीपीसी कार्यालय का होता है। डीपीसी कार्यालय में अभी तक परीक्षा होने के बाद एपीसी, बीआरसीसी व बीएसी की नियुक्ति तक नहीं की गई है। अब लोक शिक्षण की रैंकिंग में 19 वां स्थान मिला है। हालांकि यह स्थान ए ग्रेड में शामिल है।
अब तीन माह बाद की जाएगी जारी
लोक शिक्षण संचानालय के मुताबिक आगामी तिमाही में स्कूल पर आईसीटी योजना का क्रियान्वयन, छमाही परीक्षा परिणाम, छात्रवृत्ति वितरण, परिवेदना निवारण, उपचारात्मक कक्षाओं का आयोजन, शैक्षणिक मॉनिटरिंग, वित्तीय व्यय आदि बिंदुओं को भी शामिल कर उसकी समीक्षा उपरांत ग्रेडिंग लिस्ट तैयार कर जारी की जाएगी।