विभाग प्रमुख की जगह कॉलेज संचालकों व बाबूओं तक सिमटी जांच

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–   आयुष कॉलेजों में प्रवेश घोटाले में सालों बाद जारी किए गए नोटिस

भोपाल/प्रणव बजाज//बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में लगभग पांच साल पहले शुरू हुए आयुष मेडीकल कॉलेजों में प्रवेश का घोटाला तीन सालों तक अनवरत चलता रहा। इस मामले का खुलासा हुआ तो मामले की जांच के निर्देश देकर पूरे प्रकरण को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। हाल ही में जब यह मामला कांग्रेस विधायकों द्वारा विधानसभा में उठाया गया तो एक बार फिर इस मामले की जांच फाइल खोलनी पड़ गई। फाइल तो खोली गई, लेकिन अब इस मामले में आला अफसरों को बचाने का खेल शुरू कर दिया गया। यही वजह है कि इस मामले में अब तक महज बाबुओं और कॉलेज संचालकों को ही नोटिस दिए गए हैं। दरअसल बीते सत्र के दौरान विधानसभा में पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा और कांग्रेस विधायक सचिन यादव ने लिखित प्रश्न और उसके बाद ध्यानाकर्षण के जरिए इस घोटाले का मामला जोर शोर से उठाया था। इसके बाद विभाग द्वारा इस मामले से संबंधित फाइल को मुख्यमंत्री सचिवालय भेज दिया गया था।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा अपने स्तर पर इस घोटाले से संबंधित दस्तावेजों का परीक्षण कराने के बाद कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए हैं। मामले की जांच शुरू होते ही आयुष विभाग ने एक बार फिर खेल करने की तैयारी कर ली है। विभाग द्वारा अपने पूर्व मुखिया सहित आला अफसरों को बचाने की तैयारी की जा रही है। यही वजह है कि अब तक जांच की जद में महज कक्ष प्रभारियों को ही शामिल किया गया है। इस मामले में अब तक तत्कालीन आयुक्त और समिति के सदस्यों को नोटिस देना तो दूर उसकी तैयारी तक नहीं की गई है। दरअसल जब यह पूरा खेल किया गया, तब विभाग में आयुक्त व प्रमुख सचिव के पद पर एक ही अधिकारी पदस्थ था। अब तक की जो जांच हुई है उसमें प्रदेश के पन्द्रह निजी आयुष कॉलेजों में हुए 1120 प्रवेश में से 549 प्रवेश गलत तरीके से देना पाया गया है।  

इस तरह से किया गया खेल
आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय जबलपुर द्वारा काउंसलिंग की सूची विभाग को भेजी गई थी। इसके बाद कक्ष प्रभारियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन काउंसलिंग की सूची मिलान करके समिति को भेज दिया। समिति की अनुशंसा के बाद सूची को तत्कालीन आयुष मंत्री रहे रुस्तम सिंह और जालम सिंह पटेल की नोट शीट पर दी गई सिफारिश पर तत्कालीन आयुक्तों ने प्रवेश सूची पर अंतिम हस्ताक्षर कर दिए। यानी कक्ष प्रभारियों द्वारा की गई गलतियों पर ध्यान दिए बिना ही समिति सदस्यों और आयुक्त ने भी अपनी मुहर लगा दी। गौरतलब है कि आयुष विभाग में लंबे समय से आयुक्त के पद पर पूर्णकालिक स्थापना ही नहीं की जा रही है। उस समय भी  आयुक्त शिखा दुबे और एमके अग्रवाल आयुष संचालनालय में दोनों ही पदों के प्रभारी बने हुए थे। इसकी वजह से उनके द्वारा ही प्रस्ताव भेजा जाता था और उनके द्वारा ही उसका अनुमोदन किया जाता था। इसकी वजह से ही लगातार जारी रहा।

मिलकर तीन सालों तक करते रहे गड़बड़झाला
इस गड़बड़झाले की जांच शुरू हुई तो सामने आया कि यह पूरा खेल तीन सालों तक अनवरत रुप से प्रदेश में चलता रहा। प्रारंभिक जांच में पाया गया है कि आयुष संचालनालय और निजी मेडिकल यूनिवर्सिटी के अधिकारियों की सांठगांठ से इस घोटाले को किया गया है। जांच समिति द्वारा 2016 से 2018 तक आयुष कॉलेजों में हुए प्रवेश की जानकारी ली तो पता चला कि इन तीन सालों में 1292 अपात्र छात्रों को प्रवेश दिया गया है। खास बात यह है जो निजी कॉलेज 2016 और 2017 में एमपी ऑनलाइन की काउंसिलिंग में शामिल ही नहीं हुए उनके द्वारा अवैध रूप से 1120 छात्रों को प्रवेश दे दिया। खास बात यह है कि यह सब खेल तब भी खेला जाता रहा जब  वर्ष 2018-19 से नीट परीक्षा अनिवार्य कर दी गई थी।

छोटे अफसरों को रखा जांच समिति में
इस पूरे गड़बड़झाले मे तत्कालीन आयुक्त शिखा दुबे और एमपी अग्रवाल की भूमिका भी पूरी तरह से संदेह के दायरे में बनी हुई है। इसके बाद भी इस मामले की जांच के लिए गठित की गई समिति में छोटे अफसरों को शामिल किया गया है, जिनकी हैसियत इतनी बड़ी नहीं है कि वे आयुक्त स्तर के अफसरों की भूमिका की जांच कर सके। यही वजह है कि समिति की जांच केवल छोटे कर्मचारियों तक ही सीमित रह गई है।

रिपोर्ट के बाद भी कोई एक्शन नहीं
आयुष कॉलेजों में अपात्र छात्रों को प्रवेश देने की शिकायत फरवरी 2020 में हुई थी, जिस पर संचालनालय ने 3 सदस्यीय जांच समिति बनाई थी। जांच समिति ने इस पूरे मामले की पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट 21 जून को प्रमुख सचिव आयुष कैरोलिन खोंगवार को सौंप दी थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर आयुष संचालनालय ने तत्कालीन कक्ष प्रभारियों और 1 दर्जन से अधिक निजी कॉलेज के संचालकों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा है, जबकि समिति प्रभारियों व सदस्यों से कोई जवाब तलब ही नहीं किया गया है।

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