प्रदेश के संरक्षित वन क्षेत्रों में हो रही पेड़ों की अवैध कटाई

अवैध कटाई

-भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के प्रतिवेदन-2022 में खुली सुरक्षा की पोल
-टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क, अभयारण्य  में 4 साल के दौरान काटे गए 69,585

भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र देश में सर्वाधिक वन क्षेत्र वाला राज्य है। यह प्रदेश टाइगर स्टेट, लेपर्ड स्टेट के रूप में जाना जाता है, लेकिन यहां के संरक्षित क्षेत्र (टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क, अभयारण्य)सुरक्षित नहीं हैं। आलम यह है कि सामान्य वनों की तरह यहां के टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क, अभयारण्यों में भी पेड़ों की अवैध कटाई बेधड़क हो रही है। इसका ख्ुालासा भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) के प्रतिवेदन-2022 से  हुआ है।  रिपोर्ट में बताया गया है कि पांच साल (2016 से 2019 ) में प्रदेश के 11 संरक्षित क्षेत्रों से चोर 69,585 वृक्ष काटकर ले गए।
कैग की रिपोर्ट ने प्रदेश के वन क्षेत्रों की सुरक्षा की पोल खोलकर रख दी है। रिपोर्ट के अनुसार सबसे अधिक 19,681 पेड़ रायसेन जिले में स्थित रातापानी अभयारण्य से चोरी हुए हैं। दूसरे नंबर पर सागर जिले का नौरादेही अभयारण्य है। इसमें से 10,059 वृक्ष काटकर चुराए गए हैं। यह इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि भोपाल के नजदीक रातापानी अभयारण्य एकमात्र ऐसा स्थान है, जिसमें 60 से अधिक बाघ हैं। यहां के बाघ भोपाल शहर के नजदीक तक आते हैं। वहीं नौरादेही अभयारण्य को चीता  परियोजना के तहत चिह्नित किया गया है। यदि इनसे वृक्ष चोरी होते रहेंगे, तो भविष्य में वन्यप्राणियों के लिए भी खतरा बढ़ सकता है।
टाइगर रिजर्व में भी अवैध कटाई
 प्रदेशमें स्थित टाइगर रिजर्व का जंगल अपनी खूबसूरती और बाघों के दीदार के लिए विश्वविख्यात हंै, लेकिन लकड़ी माफिया लगातार इस जंगल की सुंदरता से खिलवाड़ कर रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ टाइगर रिजर्व का जिम्मेदार प्रशासन भी पूरे मामले मौन धारण कर अवैध लकड़ी कटान के धंधे को बढ़ावा देता नजर आ रहा है। लकड़ी चोरी के मामले में प्रदेश के सभी छह टाइगर रिजर्व असुरक्षित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित क्षेत्रों में ईंधन के लिए लकड़ी एकत्रित  करने की अनुमति सिर्फ आसपास रहने वालों को है। वह भी व्यक्तिगत वास्तविक जरूरत के लिए। जंगल से ईंधन की लकड़ी की अवैध कटाई के कारण संसाधन का क्षरण इस हद तक होता है कि संग्रह और सतत उपज से अधिक हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप वन क्षेत्र में कमी आती है और वन्यप्राणी रहवास में जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रातापानी में काटे जा रहे सागौन के पेड़
रातापानी में अवैध रूप से काटे जा रहे सागौन  दिनों दिन घटती हरियाली और बढ़ते सीमेंट के जंगलों से पर्यावरण को पहले ही काफी नुकसान हो चुका है।  मगर लगता है कि वन विभाग अब भी अपनी नींद से जागने को तैयार नहीं है। जी हां औबेदुल्लागंज वन परिक्षेत्र में आने वाले रातापानी वन अभयारण्य में इन दिनों बड़े पैमाने पर अवैध रूप से सागौन के पेड़ काटे जाने का मामला सामने आया है। अभयारण्य के अंतर्गत आने वाली वन विभाग की बरखेड़ा रेज के बोरपानी, उमरिया में कई किमी क्षेत्र में लक्कड़ चोरों ने जंगल का जंगल साफ कर दिया है। कमाल की बात यह कि यहां इतनी बड़ी संख्या में सागौन के पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है और वन विभाग का अमला बड़ी कार्रवाई कर हरियाली के दुश्मनों को दबोचने के बजाए खामोश बैठा हुआ है।  वहीं बरखेड़ा रेंज के सागौन के पेड़ों की कटाई का आलम यह कि माफिया जंगल में आग लगाकर पेड़ काटते हैं।  पूरी तरह से बखौफ लकड़ी माफिया बाकायदा जंगल में ही पेड़ काटकर उसको छीलते हैं और जरूरत के मुताबिक लकड़ी की सिल्लियां बनाकर ले जाते हैं।  वन विभाग के सूत्रों की माने तो औबेदुल्लागंज वन मंडल के वरिष्ठ अधिकारियों के मुख्यालय पर नहीं ठहरने से यह स्थिति बनती है। ज्यादातर अधिकारी प्रतिदिन भोपाल से अपडाउन करते है, जिसके चलते उनके जाते ही माफिया जंगलों में सक्रिय हो जाता है।

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