- मंत्रियों के यहां पदस्थ हो गए मनपसंद स्टाफ
- विनोद उपाध्याय
शासन-प्रशासन में सुचिता लाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कई कठोर कदम उठाए हैं। इस कड़ी में मंत्रियों को भी निर्देश दिए गए थे कि वे अपने स्टाफ में ऐसे लोगों को रखें जो पाक-साफ हो। लेकिन संघ, सरकार और संगठन के निर्देशों को दरकिनार कर कई मंत्रियों ने अपने यहां अपनी मनपसंद स्टाफ को रख लिया है। गौरतलब है कि पूर्व में भी संघ मंत्रियों के स्टाफ की मनमानी पर सवाल उठाते रहा है। मंत्रियों के स्टाफ की करतूतों के कारण कई बार सरकार की फजीहत भी हुई है। इसलिए इस बार मंत्रियों के स्टाफ रखने के लिए गाइड लाइन बनाई गई है। लेकिन उसका पालन होता नहीं दिख रहा है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय संगठन ने निर्णय लिया था कि जो स्टाफ पहले मंत्रियों के यहां पदस्थ रहा है, उसे फिर मंत्रियों की निजी पदस्थापना में नहीं रखा जाए। इसमें विशेष सहायक से लेकर निज सचिव और निज सहायक आदि शामिल थे। बताया जाता है कि यह निर्णय संघ के कहने पर लिया गया था। इसके बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मंत्रियों द्वारा अपने स्टाफ में पदस्थापना में ऐसे लोगों की फाइल जीएडी को लौटा दी थी। जीएडी ने मंत्रियों से ऐसे लोगों के नाम भेजने को कहा था जो पहले मंत्री स्टाफ में न रहे हों। इसके बाद कई मंत्रियों के यहां नए विशेष सहायकों की पदस्थापना हुई, परंतु अधिकांश मंत्रियों ने अपने चहेतों के लिए दूसरा रास्ता निकाल लिया। उन्होंने अपने स्टाफ में पदस्थापना के लिए अपने चहेते अफसरों का पहले अपने विभाग में डेपुटेशन कराया फिर धीरे से अपने स्टाफ में शामिल कर लिया। विभाग से किसी भी अफसर या कर्मचारी की पदस्थापना के लिए जीएडी की अनुमति की जरूरत ही नहीं पड़ती। यही नहीं कई मंत्री इस उम्मीद में कि उनका मनचाहा पुराना स्टाफ मिल जाएगा, नए के लिए कोई नोटशीट सामान्य प्रशासन विभाग को
नहीं भेजी।
इस तरह की गई पदस्थापना
सरकार की पाबंदी के बाद मंत्रियों ने मन चाहा स्टाफ रखने के लिए ऐसा रास्ता निकाला, जिससे सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी। पहला मामला सत्य शुभ्र मिश्रा का है। मिश्रा महिला बाल विकास विभाग में अधिकारी है। पिछले कार्यकाल में मंत्री इंदर सिंह परमार के यहां विशेष सहायक के तौर पर पदस्थ थे। इस पर सीएम ऑफिस ने नस्ती लौटाई, तो महिला बाल विकास विभाग से आयुष विभाग में डेपुटेशन कराया, फिर से मंत्री स्टाफ में पदस्थ हो गए । इंदर सिंह परमार के पास आयुष मंत्रालय भी है। वहीं भरत व्यास स्कूल शिक्षा विभाग में प्राचार्य संवर्ग के अधिकारी है। मंत्री इंदर सिंह परमार के यहां पदस्थ थे। इस बार नियमों के पैंच में पदस्थापना उलझी तो स्कूल शिक्षा से उच्च शिक्षा विभाग में डेपुटेशन कराया। फिर मंत्री के यहां जम गए। इंदर सिंह परमार उच्च शिक्षा मंत्री भी हैं। आलोक सारस्वत मूल रूप से विधानसभा के कर्मचारी हैं। पूर्व में मंत्री राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव के स्टाफ में पदस्थ थे। अब वाल्मी में डेपुटेशन कराकर पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के स्टाफ में पहुंच गए हैं। वीरेन्द्र पांडे स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के स्टाफ में पदस्थ हो गए। पूर्व में वे मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, जयंत मलैया, अजय विश्नोई, लखन घनघोरिया के स्टाफ में थे। वे नगरीय प्रशासन विभाग के कर्मचारी है। वहीं दिलचस्प यह भी है कि कई अधिकारी और कर्मचारी जो दशकों से मंत्रियों के स्टाफ में सेवाएं देते रहे हैं, इस बार उनकी मंत्री स्टाफ में विधिवत रूप से पदस्थापना नहीं हुई है पर पदस्थापना की आस में वे अब भी उन्हीं के स्टाफ में सेवाएं दे रहे हैं। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के स्टाफ में एकेवीएन के एक अधिकारी बिना आदेश के कार्यरत हैं। वहीं पहले तुलसी सिलावट के यहां ओएसडी रहे जीवन रजक इस समय संस्कृति मंत्री धर्मेन्द्र लोधी के यहां सेवाएं दे रहे हैं। पिछले 15 सालों से कई मंत्रियों के यहां सेवाएं देने वाले एसडी हारोड़े कृषि मंत्री ऐंदल सिंह कंसाना के यहां काम कर रहे हैं। इनके आदेश अभी नहीं हुए हैं। कंसाना के यहां कृषि विभाग के एक सेवानिवृत्त अधिकारी जो पूर्व में मंत्रियों के स्टाफ में रह चुके हैं, अघोषित रूप से काम कर रहे हैं।
मंत्रियों ने निकाल लिया नया रास्ता
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव चाहते हैं कि मंत्री अपने स्टाफ में नए अधिकारियों व कर्मचारियों को ही रखें। लेकिन भाजपा के केंद्रीय संगठन के निर्देश और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का वीटो भी मंत्रियों के यहां उनके चहेते स्टाफ की पोस्टिंग नहीं रोक पा रहा है। पहले मंत्रियों के यहां पदस्थ रहे विशेष सहायक समेत अन्य स्टाफ की पदस्थापना की फाइल मुख्यमंत्री ने लौटाई तो मंत्रियों ने इस स्टाफ को अपने यहां पदस्थ करने के लिए नया रास्ता निकाल लिया। पहले इन अफसर-कर्मचारियों का अपने विभाग में डेपुटेशन कराया, फिर अपने यहां ज्वाइनिंग करा ली। वहीं कई ओएसडी, निज सहायक और निज सचिव बिना किसी आदेश के अब भी मंत्रियों के यहां धड़ल्ले से सेवाएं दे रहे हैं। सवाल यह है कि क्या ये अधिकारी और कर्मचारी विभाग से अवकाश पर हैं। गौरतलब है कि मंत्रियों के यहां चहेते स्टाफ की पदस्थापना का मामला कैबिनेट की बैठक में भी उठ चुका है। बुंदेलखंड और चंबल के मंत्रियों ने यह मामला उठाते हुए कहा था कि पुराना स्टाफ काम समझता है, नए स्टाफ को फिर से काम समझना होता है, इससे दिक्कत होती है पर मुख्यमंत्री ने पुराने स्टाफ की फिर से पदस्थापना करने से यह कहकर इंकार कर दिया था कि ऊपर से ऐसे आदेश हैं।
सशर्त मन पसंद स्टाफ रखने की छूट
उधर, सूत्रों का कहना है कि अब सरकार ने अपने मंत्रियों को सशर्त मन पसंद स्टाफ रखने की छूट प्रदान कर दी है। इसकी वजह से अब मंत्रियों ने कुछ हद तक राहत की सांस ली है। अब मंत्री अपनी पसंद के अधिकारी एवं कर्मचारियों को अपने स्टाफ में रखने की कवायद में लग गए हैं। हालांकि शर्त के मुताबिक उन अधिकारी एवं कर्मचारी को स्टाफ में नहीं रखा जा सकेगा जो पूर्व की सरकार के मंत्री के स्टाफ में रहा हो। दूसरे मंत्रियों के साथ काम कर चुके निज सचिव एवं निज सहायक और विशेष सहायकों को जरूर अपने साथ रखने की इसमें छूट दी गई है। यही नहीं स्टॉफ में रखे गए संबंधित कर्मचारी की ईमानदारी की जिम्मेदारी भी मंत्री को ही लेनी होगी। इससे यह तो तय है कि जिसके खिलाफ भी लोकायुक्त या विभाग में गंभीर शिकायतें हैं या जो कभी भ्रष्टाचार के चलते निलंबित रहा हो, उसे मंत्री स्टाफ में जगह नहीं दी जाएगी। प्रदेश सरकार के ज्यादातर मंत्री स्टाफ में पदस्थापना के लिए राज्य शासन को एक महीने में ही नोटशीट लिख चुके थे, लेकिन उनमें से अधिकांश के आदेश जारी नहीं हुए गए हैं। इसकी बड़ी वजह है इनमें अधिकांश वे नाम थे, जो पूर्व की सरकारों में मंत्रियों स्टाफ में पदस्थ रह चुके हैं। दरअसल मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव चाहते हैं कि मंत्री अपने स्टाफ में नए अधिकारियों व कर्मचारियों को ही रखें। यही वजह रही कि सामान्य प्रशासन विभाग ने मंत्री स्टाफ में पदस्थापना के आदेश जारी नहीं किए हैं। कैबिनेट बैठक में दो बार मंत्री मुख्यमंत्री के सामने इसको लेकर अपनी बात रख चुके हैं।