- मामला दर्ज होने के बाद भी पा गए पदोन्नति, लगातार कार्यशैली रही विवादों में
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। नई सरकार के मुखिया बनने के बाद जिस तरह से डां. मोहन यादव की सख्त कार्यशैली बनी हुई है, उससे लग रहा है कि जल्द ही सरकार उन आला अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति प्रदान कर सकती है, जिन पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं। ऐसे में आईएएस अफसर पवन जैन की मुश्किलें बढऩा तय मानी जा रही हैं। दरअसल, उनके खिलाफ आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने अभियोजन स्वीकृति मांगी हुई है। यह मामला बीते दो साल से सरकार के पास लंबित पड़ा हुआ है। पूर्व की सरकार की मेहरबानी तो देखिए उनके खिलाफ जांच लंबित रहने के बाद भी उन पर कार्रवाई करने की जगह, उन्हें पदोन्नत कर आईएएस अफसर बना दिया गया।
जैन के विरुद्ध ईओडब्ल्यू में धोखाधड़ी की धारा 420, 120बी के तहत वर्ष 2015 से मामला दर्ज है। करीब नौ साल पहले बैतूल एसडीएम रहते जैन ने आदिवासियों की जमीन नियम विरुद्ध तरीके से सामान्य वर्ग के लोगों को बेचने की अनुमति दे दी थी। इस मामले में भी उन्हें बैतूल से हटाया गया था। यही नहीं दो साल पहले उन्हें एक दिव्यांग के साथ अभद्रता करने के बाद इंदौर से भी हटाया जा चुका है। इसमें भी खास बात यह है कि जैन को आइएएस अवार्ड तो दे दिया गया, लेकिन शासन ने उनके नौ साल पुराने प्रकरण में अब तक अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी है। अभियोजन का मामला भी 2022 से लंबित है। वर्ष 2006 के एक प्रकरण में इंदौर जिले के सांवेर में कालोनाइजर को आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए तत्कालीन एसडीएम कौशल बंसल द्वारा कालोनाइजर विद्युत जैन के साथ मिलकर शासन को 98 लाख 72 हजार रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचाई थी। कौशल बंसल के बाद पवन जैन सांवेर एसडीएम रहे। जैन ने भी कालोनाइजर का साथ दिया। वर्ष 2010 में पवन जैन ने कालोनाइजर विद्युत जैन को बंधक रखे कालोनी के 25 भू-खंड को तत्कालीन राजस्व निरीक्षक दिनेशचंद्र शर्मा के बिना दिनांक वाले चार लाइन के पत्र के आधार पर बिना विकास कार्य पूरा हुए मुक्त करने का आदेश दे दिया था। जबकि राजस्व निरीक्षक दिनेशचंद्र शर्मा कालोनी के आंतरिक विकास कार्य के कार्य पूर्णता का प्रमाण पत्र देने के लिए अधिकृत नहीं थे। पवन जैन ने रजिस्टर्ड माडगेज कराने का आदेश कालोनाइजर को नहीं दिया। इस भू-खंड पर रजिस्टर्ड माडगेज कराया जाता तो शासन को 22 लाख 68 हजार रुपये स्टांप शुल्क के रूप में प्राप्त होते। उस समय तक कालोनी का आधारभूत विकास भी नहीं हुआ था। इसको लेकर भू-खंड धारियों की शिकायत पर वर्ष 2011 में तत्कालीन एसडीएम सिटी इंदौर सुधीर तारे ने जांच कर जांच रिपोर्ट अपर कलेक्टर कार्यालय इंदौर को सौंपी थी। तत्कालीन एसडीएम भारत भूषण सिंह तोमर ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में उक्त कालोनी में मूलभूत विकास कार्य अपूर्ण होने की बात कही। कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित 15 प्रतिशत भूमि पर भवनों का विकास करना कालोनी विकास की अनुमति की शर्तों में था। जिसे मार्च 2010 तक पूर्ण नहीं किया गया था। तत्कालीन एसडीएम पवन जैन ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बंधक रखे गए 25 प्रतिशत भू-खंडों को आंतरिक विकास के 98 कार्य पूरे हुए बिना एवं संबंधित विभागों से कार्य पूर्णता प्राप्त किए बिना ही अनधिकृत रूप से मुक्त कर दिया था।
तीन तत्कालीन अफसरों को पाया दोषी
इस पूरे प्रकरण की जांच में ईओडब्ल्यू ने तत्कालीन सांवर एसडीएम कौशल बंसल, पवन जैन और दिनेश चंद्र शर्मा को अपने पद का दुरुपयोग करते हुए कालोनाइजर विद्युत जैन व अन्य को अवैध लाभ पहुंचाने के लिए कालोनी के विकास की अनुमति के समय पर्यवेक्षण शुल्क रूप में 77 लाख 30 हजार रुपये कम जमा कराने और वहीं बंधक रखे गए भू-खंडों के गिरवीनामे का रजिस्टर्ड माडगेज नहीं कराने पर स्टांप शुल्क के रूप में 21 लाख 42 हजार रुपये इस तरह कुल लाख 72 हजार रुपये आर्थिक क्षति शासन को करने का दोषी पाया है।