कलेक्टर बनने में दूसरे राज्यों से पिछड़े मप्र के आईएएस

  • कैडर मिस मैनेजमेंट की वजह से नए अफसरों को करना पड़ रहा है इंतजार
  • विनोद उपाध्याय
आईएएस

आईएएस में चयन होने के बाद इस सेवा के हर अफसर का सपना कलेक्टर बन कर जिले की कमान सम्हालने का होता है। मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर नए आईएएस अफसरों को कलेक्टर बनने के लिए अन्य राज्यों की तुलना में कई साल अधिक इंतजार करना पड़ता है। इसकी वजह है प्रदेश में इस कैडर को लेकर जारी मिस मैनेजमेंट है। यही वजह है कि अन्य राज्यों में जहां दो से चार साल पहले नए आईएएस अफसरों को कलेक्टर बनाने का मौका मिल चुका है, जबकि प्रदेश में उनके साथ ही आईएएस बनने वाले अफसर अब भी अपनी बारी का इंतजार करने को मजबूर बने हुए हैं। इसकी वजह से उनके  करियर प्रोफाइल पर भी बुरा असर पड़ रहा है। अगर अन्य राज्यों की बात की जाए तो उड़ीसा, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड जैसे राज्यों की तुलना में मप्र काफी पीछे है। उड़ीसा में 2018, राजस्थान में 2016,और छत्तीसगढ़ में 2017 बैच के आईएएस अफसर कलेक्टर के पद पर पोस्टिंग पा चुके हैं। इन राज्यों की तुलना में मप्र में अभी 2014 बैच के कुछ आईएएस अधिकारियों  को ही कलेक्टर बनाने का मौका मिल सका है। इसकी वजह से प्रदेश में अभी 2015 और उसके बाद के बैच के अफसरों को कलेक्टर बनने का इंतजार करना पड़ रहा है। अहम बात यह है कि प्रदेश में लाड़ली बहना का ढिंढोरा पीट जा रहा है, लेकिन 2012 बैच की लाड़ली बहना नेहा मारव्या को अब तक कलेक्टर तक नहीं बनाया गया है। हालांकि इसके पीछे की वजह है उनके द्वारा एक बड़े साहब के खास अफसर के करोड़ों के घोटाले की  जांच कर फाइल शासन को भेज दी गई थी। यह बात अलग है कि उस फाइल पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
छह साल में मिलती है कलेक्टरी
दो साल के प्रशिक्षण के बाद आईएएस अफसर को एक साल एसडीएम, दो साल जिला पंचायत सीईओ और एक साल एडीएम या नगर निगम कमिश्नर के रूप में पदस्थ किया जाता है। इस छह साल की अवधि के बाद ही आईएएस अफसर को जिले की कमान दी जाती है, लेकिन मप्र में यह अवधि बढ़ती ही जा रही है। अगर बीते सालों पर नजर डालें तो 2010 बैच के अधिकारी 6-6.5 साल बाद 2011, 2012 और 2013 बैच के अफसर 7 साल बाद और 2014 बैच के अफसर आठ साल बाद कलेक्टर के पद पर पदस्थ किए गए थे। इसके बाद 2015 बैच के अफसर 8.5 साल बाद होने के बाद भी कलेक्टर नहीं बनाए गए हैं। इसकी वजह से 2016 और 2017 बैच के अधिकारियों को 9 साल से अधिक समय लगना तय है। दरअसल सामान्यत: किसी आईएएस अधिकारी की 13 साल की सेवा अवधि तक कलेक्टर के पद पर पोस्टिंग की जाती है।
मनोबल पर पड़ रहा है विपरीत असर
 कलेक्टर के पद पर पोस्टिंग में देरी का असर आईएएस अफसरों के मनोबल पर भी पड़ रहा है। एक ही पद पर कई वर्षों तक काम करने की वजह से उनका  मनोबल टूट रहा है। दूसरे राज्यों में उनके बैच के अधिकारी कलेक्टर के पद पर पदस्थ हैं और मप्र में आईएएस वर्षों से जिला पंचायत सीईओ, मंत्रालय में उप सचिव, एडीएम जैसे पदों पर पदस्थ हैं।
तीन बैच में मिले अधिक अफसर  
दरअसल प्रदेश को 2012, 2013 और 2014 बैच के तीन सालों में बड़ी संख्या में आईएएस अफसर मिले थे। इसकी वजह रही प्रदेश सरकार द्वारा इन तीन सालों में अधिक अफसरों की मांग की जाना। इसकी वजह से भी कैडर बिगड़ने की वजह मानी जा रही है।
तीन साल पहले तक माना जाता था आदर्श राज्य
 दरअसल वर्ष 2020 से पहले आईएएस के कैडर मैनेजमेंट के मामले में मप्र को आदर्श राज्य के रूप में देखा जाता था, लेकिन इसके बाद यहां कैडर मिस मैनेजमेंट का जो काम किया गया, उससे लगातार हालत बिगड़ते चले गए। प्राय: एक बैच के सभी आईएएस अफसरों को कलेक्टर के पद पर एक साथ पदस्थ किया जाता है। मप्र में अब ऐसा नहीं होता है। प्रदेश में एक ही बैच के अफसरों को कलेक्टर अलग-अलग समय पर बनाया जा रहा है। खास बात यह है कि इसमें भी वरिष्ठता का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। जो अफसरों के चहेते हैं, उन्हें तो लगातार कलेक्टर बनाया जा रहा है, लेकिन जो अफसर किसी आला अफसर या राजनेता के चहेते नहीं है, उन्हें कलेक्टरी नहीं मिल पा रही है। गौरतलब है कि कलेक्टर की पदस्थापना के लिए जिलों को ए, बी और सी जैसी तीन कैटेगरी में बांटा जाता है। ए कैटेगरी में बड़े जिले, बी कैटेगरी में मध्यम जिले और सी कैटेगरी में छोटे जिले आते हैं। सबसे पहले किसी आईएएस को छोटे जिले में, फिर मध्यम और फिर बड़े जिले में पदस्थ किया जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में मप्र में कलेक्टर की पदस्थापना में इसका भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है।

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