भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही केन्द्र व राज्य सरकारें महिलाओं को सत्ता में भागीदारी देकर उनको आगे लाने के प्रयासों में लगी हुई हैं, लेकिन इसके बाद भी महिला जनप्रतिनिधियों के अधिकारों पर उनके परिजन ही अतिक्रमण करने में पीछे नहीं रह रहे हैं। बड़ी बात यह है कि इस मामले में अफसर में भी मूकदर्शक बनकर देखते रहते हैं। ऐसा तब हो रहा है, जबकि देश की संसद द्वारा महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का कानून पास किया जा चुका है। इस तरह का शिकार वे महिलाएं खासतौर पर बन रही हैं, जो नगरीय निकाय, जिला, जनपद पंचायतों और बतौर सरपंच चुनी जाती हैं। यह वे संस्थाएं हैं, जिनमें महिलाओं के लिए पचास प्रतिशत सीटें आरक्षित हैं।
इसकी वजह से हालत यह है कि जनता द्वारा तो महिला को ही ने जनप्रतिनिधि के रूप में चुना जाता है , लेकिन इन महिला अध्यक्षों का कामकाज इनके पति या परिजन ही संभालते हैं। अध्यक्ष पति, सांसद या विधायकों का प्रतिनिधि बनकर परिषद और तमाम बैठकों में शामिल होते हैं। जब सांसद और विधायक प्रतिनिधि नहीं बनाते तो अध्यक्ष पति खुद को अपनी पत्नी का प्रतिनिधि नियुक्त करवा लेते हैं। प्रदेश में 200 से ज्यादा स्थानीय निकायों में महिला अध्यक्षों ने अपने पति और अन्य परिजन को अपना प्रतिनिधि बना दिया है, जबकि निगम एक्ट के तहत सांसद और विधायक तो प्रतिनिधि नियुक्त कर सकते हैं लेकिन, निकायों के अध्यक्षों व सदस्यों द्वारा अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का कोई प्रावधान ही नहीं है। अहम बात यह है कि बैठकों में यह सब अफसरों के सामने होता है और वे मूकदर्शक बनकर सब देखते रहते हैं। इसकी वजह से उनकी भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं।
इन दो जिलों में सभी महिलाओं के प्रतिनिधि है परिजन
राजगढ़ और सागर जिले की सभी नगर पालिका और नगर परिषदों में महिला अध्यक्षों ने अपने प्रतिनिधि के रूप में पति, पुत्र या अन्य परिजन को नियुक्त करवा लिया है। जबकि अलीराजपुर और झाबुआ जिले में निकाय की किसी भी अध्यक्ष ने अपना प्रतिनिधि नियुक्त नहीं करवाया। ये महिला अध्यक्ष अपना काम खुद देखती हैं। इस मामले में जनपद पंचायत, खिलचीपुर की अध्यक्ष सीमा नैनावत का कहना है कि मीटिंग में पूरा काम वे ही (पति सुनील नैनावत) करते हैं, मैं तो मीटिंग में सिर्फ शामिल होने जाती हूं। हालांकि मीटिंग की सभी जानकारी मुझे रहती हैं।
02/01/2024
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