- भाजपा मोदी की गारंटी और विकास का भर रही दम
- गौरव चौहान
लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही भाजपा मोदी की गारंटी और विकास के मुद्दे को लेकर चुनाव मैदान में उतर गई है। वहीं कांग्रेस मुद्दा विहीन है। आपसी गुटबाजी और भगदड़ के कारण कांग्रेस के नेता इस कदर उलझे हुए हैं कि वे, सरकार के खिलाफ एक मुद्दा खड़ा नहीं कर पाए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मुद्दा विहीन कांग्रेस जनता के बीच कैसे जाएगी।
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद आलाकमान ने बड़ी उम्मीद के साथ मप्र में युवाओं के हाथ में कांग्रेस की कमान सौंप दी है। लेकिन युवा नेतृत्व न तो पार्टी को संगठित रख पाया है और न ही भाजपा या उसकी सरकार पर हावी हो पाया है। एक तरफ भाजपा ने जॉइनिंग कमेटी की बनाकर लोकसभा चुनाव के लिए कई रणनीतियां तैयार की हैं। यह समिति कई पार्टियों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा में शामिल करवा रही है। भाजपा में शामिल होने वालों में न केवल नेशनल लेवल के बल्कि जिला स्तर के नेता भी शामिल हैं। भाजपा का मकसद आम चुनाव से पहले दूसरे दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करना है। इनमें कांग्रेसियों की संख्या ज्यादा है। भाजपा का दावा है कि अकेले मप्र में पिछले 80 दिनों में 17 हजार कांग्रेसी पार्टी में शामिल हुए हैं। वहीं कांग्रेस असमंजस में फंसी हुई है।
सडक़ से लेकर सदन तक मुद्दा विहीन कांग्रेस
मप्र में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस अभी तक भाजपा सरकार के खिलाफ एक मुद्दा खड़ा नहीं कर पाई है। चुनाव के मुद्दों को लेकर कांग्रेस के नेता एकजुट भी नहीं दिख रही है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी सिर्फ किसानों को भाजपा की चुनावी घोषणा अनुसार फसल की कीमत देने की मांग कर कर तो रहे हैं, लेकिन इसे मुद्दा नहीं बना पा रहे हैं। यूं तो देश में हर चुनाव मुद्दों के आधार पर ही लड़ा जाता है, लेकिन इस बार अभी तक मप्र में विपक्ष के हाथ कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा है।
उल्टा भ्रष्टाचार, गुटबाजी एवं अन्य पुराने मामलों को लेकर भाजपा ही कांग्रेस पर हमलावर दिखाई दे रही है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस सिर्फ चुनाव के दौरान ही मुद्दों को नहीं उठा पा रही है। बल्कि विधानसभा सत्र के दौरान भी कांग्रेस जनता की समस्याओं को उतनी पुरजोर तरीके से उठाने में नाकाम रही है। जितनी दमदारी से भाजपा विपक्ष में रहकर मुद्दों को उठाती थी। प्रदेश में नई सरकार बनने के बाद विधानसभा के दो सत्र बीत चुके हैं। जिनमें पहला सत्र सदस्यों के शपथ समारोह के लिए था। दूसरा सत्र फरवरी में आयोजित हुआ। जिसमें अनुपूरक बजट समेत अन्य विधेयक पास किए गए। पूरे सत्र के दौरान विपक्षी दल कांग्रेस ने एक भी मुद्दा ऐसा नहीं उठाया, जिसने सरकार को परेशानी में डाला हो। इसके बाद सदन के बाद सडक़ पर भी कांग्रेस कोई मुद्दा नहीं उठा पाई है। कांग्रेस ने अभी तक एक भी ऐसा कोई आंदोलन या प्रदर्शन नहीं किया, जिसमें लोगों की भागीदारी रही हो। कुछ मामलों में कांग्रेस के नेता प्रदर्शन की सिर्फ खानापूर्ति करते रहे हैं।
17 हजार ने कांग्रेस छोड़ी
देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टियों में से एक भाजपा ने ज्वॉइनिंग कमेटी की बनाकर लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कई रणनीतियां तैयार की हैं। इस समिति ने देशभर की कई पार्टियों के लगभग 80 हजार नेताओं और कार्यकर्ताओं को भाजपा ज्वॉइन करवाई है। भाजपा में शामिल होने वालों में न केवल नेशनल लेवल के बल्कि जिला स्तर के नेता भी शामिल हैं।
भाजपा का मकसद आम चुनाव से पहले दूसरे दलों के करीब एक लाख नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल करना है। इनमें कांग्रेसियों की संख्या ज्यादा है। भाजपा का दावा है कि अकेले मध्यप्रदेश में पिछले 80 दिनों में 17 हजार कांग्रेसी पार्टी में शामिल हुए हैं। भाजपा का दावा है कि 17 हजार कांग्रेसी भाजपा जॉइन कर चुके हैं। भाजपा की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि रिकॉर्ड बन चुका है। चुनाव तक हम 70 हजार से 1 लाख कांग्रेसियों को भाजपा जॉइन कराएंगे। यदि गिनीज बुक में ऐसे रिकॉर्ड का प्रावधान है तो हमारी तैयारी पूरी है।
भगदड़ से कांग्रेस परेशान
मप्र में कांग्रेस रोजाना कमजोर हो रही है। क्योंकि प्रदेश के किसी न किसी हिस्से से कांग्रेस के पूर्व विधायक, सांसद, मंत्री या अन्य कोई पदाधिकारी पार्टी छोड़ रहे हैं। चुनाव के दौरान नेता और कार्यकर्ताओं के पार्टी छोडऩे से जनता के बीच विपरीत संदेश जाता है। जिससे चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। पार्टी में जारी भगदड़ की वजह से नेता सरकार के खिलाफ कोई चुनावी मुद्दा खड़ा नहीं कर पाए हैं। कांग्रेस नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद प्रदेश प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला को मप्र की जिम्मेदारी से हटा दिया था। इसके बाद जितेन्द्र सिंह को मप्र का प्रभार सौंपा गया। शुरुआत में जितेन्द्र सिंह ने मप्र में सक्रियता दिखाई थी। लेकिन चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद उन्होंने मप्र से लगभग दूरी बना ली है। वे मप्र में उतने सक्रिय नहीं दिख रहे, जितने शुरू में थी। पिछले एक पखवाड़े से ज्यादा समय से जितेन्द्र मप्र दौरे पर ही नहीं आए। हालांकि वे दिल्ली में ज्यादा समय पार्टी को दे रहे हैं। मप्र के नेताओं से भी वहीं मुलाकात कर रहे हैं।