- 10 माह बाद भी नहीं हो पाई साइबर एक्सपर्ट की भर्ती
- गौरव चौहान
हाइटेक तकनीक की मदद से लोगों को ठगी का शिकार बनाकर गायब हो जाने वाले साइबर अपराधियों को पकडऩे के लिए मप्र में साइबर एक्पट्र्स की कमी है। जबकि सरकार ने प्रदेश में 27 साइबर एक्सपट्र्स की भर्ती करने की घोषणा की थी, लेकिन 10 माह बाद भी भर्ती नहीं हो पाई है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि प्रदेश में रोजाना साइबर अपराध हो रहे हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है।
गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में राज्य साइबर सेल ने साइबर अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए रोडमैप तैयार किया था। इस पर पांच साल में करीब 850 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। इसमें डायल-100 की तर्ज पर क्विक रिस्पॉन्स टीम, शिकायत पोर्टल, कम्पलेन मैनेजमेंट सिस्टम और सौ थानों में साइबर डेस्क तैयार की जानी है। इसके साथ ही प्रदेश में 80 साइबर एक्सपट्र्स की भी तैनाती होनी थी। पांच साल के इस रोडमैप के पहले चरण यानी दो साल में 160 करोड़ रुपए खर्च किए जाने थे। इसके तहत साइबर एक्सपट्र्स की तैनाती की जानी थी। लेकिन अप्रैल 2023 में शुरू हुई प्रक्रिया फाइलों में दबकर रह गई।
इसलिए जरूरी हैं साइबर एक्सपर्ट
दिन प्रतिदिन बदल रहे साइबर अपराध के तरीकों और नई तकनीकों के इस्तेमाल से साइबर अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर बने रहते हैं। डार्क नेट में उपलब्ध डेटा के दुरुपयोग से अपराधी लोगों की निजी जानकारी लेकर साइबर क्राइम को अंजाम देते हैं। अक्सर साइबर सेल में कार्यरत पुलिसकर्मियों से ये अपराधी दो कदम आगे रहते हैं। ऐसे में साइबर एक्सपर्ट की जरूरत लंबे समय से थी। प्रदेश में साइबर अपराध का ग्राफ सालाना 30 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ रहा है। लेकिन साइबर पुलिस पुराने ढर्रे पर काम कर रही है। आलम यह है कि साइबर अपराधों का सामना कर रहे पीड़ित सालों से अपना पैसा वापस पाने के लिए भटक रहे हैं। अर्थव कुमार टेलीग्राम एप के माध्यम से ठगी का शिकार हुए और निवेश के नाम पर सवा लाख रुपए गंवा बैठे। अपराधी का भी पता चल गया है, लेकिन साइबर पुलिस के पास इतना वक्त नहीं है कि वो अपराधी को पकडऩे प्रदेश से बाहर जा सकें। पुलिस कहती है कि अगर हम यहां से गए और अपराधी ने फोन बंद कर लिया तो हम कैसे पकड़ेंगे। जानकारी के अनुसार प्रदेश के 2 लाख से ज्यादा लोग सालाना साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। चाइल्ड और वूमन पोर्नोग्राफी के मामलों में हर साल 30 प्रतिशत वृद्धि हो रही है। कोविड काल में सिर्फ एक साल में 444 केसों में 29 करोड़ से ज्यादा की ठगी हुई है। प्रदेश में सबसे ज्यादा ओटीपी, नौकरी और निवेश के नाम पर ठगी हो रही है। साइबर के प्रदेश में कुल घटित मामलों में 50 प्रतिशत से कम मामले थाने पहुंच रहे हैं। एडीजी साइबर योगेश देशमुख का कहना है कि प्रदेशभर में 27 साइबर एक्सपर्ट नियुक्त होने थे। जो मामला अभी प्रक्रियाधीन है।
प्रदेश में साइबर क्राइम के डरावने आंकड़े
प्रदेश में साइबर क्राइम के डरावने आंकड़ों की बानगी ये है कि यहां 12.3 प्रतिशत की राष्ट्रीय दर से ये बढ़ रहे हैं। आईटी एक्ट में दर्ज मामलों में सबसे अधिक 71 फीसदी ऑनलाइन धोखाधड़ी के हैं, इनमें ठगे जाने वाले सैकड़ों लोग हर साल अपनी गाढ़ी कमाई से हाथ धो बैठे हैं। सोशल साइटों पर नीचा दिखने वाले संदेशों की भी भरमार है। पांच फीसदी से ज्यादा एडल्ट कंटेंट या डीप फेक जैसे शर्मसार करने वाले मामले परेशानी का सबब बने हैं। सबसे अधिक पीडि़त-प्रभावित शहरों में इंदौर और भोपाल शामिल हैं। प्रदेश में अब साइबर स्वच्छता को अपनाने पर जोर है। यहां बेकाबू साइबर अपराधी आए दिन कई लोगों की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं।
इन पर अंकुश के लिए अब साइबर स्वच्छता केंद्र प्रिवेंटिव पहल करेंगे। इसके लिए जहां केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से साइबर क्राइम समन्वय केंद्र पीडि़तों को फौरी राहत देंगे, वहीं आम से खास तक किसी के भी ऑनलाइन डाटा पर डाका नहीं पड़े, इसके पुख्ता प्रबंध किए जाएंगे। साइबर ऑडिट की व्यवस्था में प्रमुख सरकारी साइट के अलावा आइआइएम-आइआइटी, आरआर कैट जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के पोर्टल सुरक्षित करने पर फोकस रहेगा। चुनौतियों से निपटने को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रदेश को केंद्रों के पश्चिमी जोन में रखा है। यह अहमदाबाद में है। विशेषज्ञों के अनुसार मध्यप्रदेश में वारदात करने वाले ज्यादातर दूसरे राज्यों के होते हैं, इसलिए उनकी ट्रेसिंग-ट्रैकिंग और गिरफ्तारी के लिए राज्यों के बीच समन्वय जरूरी है। साइबर सुरक्षा दस्ते के रूप में 6000 अधिकारी और 23 हजार से अधिक एनसीसी कैडेट्स की ट्रेंड फोर्स राज्य और प्रमुख शहरों में उतरने की तैयारी में है। यह टीम शिकायत मिलते ही सिम ब्लॉक करने के अलावा आइएमइआइ नंबर बंद करने में तत्पर रहेगी। केंद्रीय स्तर पर नेशनल साइबर रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) एक्टिव किया गया है, इस पर हेल्पलाइन नंबर 1930 से ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराते ही ट्रेंड फोर्स सक्रिय होगी। जिस बैंक अकाउंट या ई-वॉलेट से लेन-देन हुआ, ट्रेस करके ब्लॉक करेगी। आपके ई-संसाधन जैसे लैपटॉप, मोबाइल अन्य टूल साइबर की दृष्टि से सुरक्षित हैं अथवा नहीं, इसका परीक्षण कराया जा सकता है। साइबर स्वच्छता केंद्र (सीएसके) की साइट पर जाकर अपने ई-गैजेट को ई-स्कैन एंटीवायरस, के-7 सिक्युरिटी की जांच नि:शुल्क करवा सकते हैं।
तेजी से शुरू हुई थी प्रक्रिया
गौरतलब है कि साइबर अपराध का मसला 20 मार्च 2023 को विधानसभा में भी उठा, जिसमें तत्कालीन गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने प्रदेश में 3 माह के भीतर साइबर एक्सपर्ट नियुक्त करने की घोषणा की थी। 10 महीने बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस हैं। बेसिक फॉरेंसिक लैब और एडवांस्ड डिजिटल साइबर फॉरेंसिक लैब तक का अभाव है। प्रदेश में घटित होने वाले जटिल केसों को सुलझाने के लिए साइबर एक्सपर्ट की नियुक्ति होने वाली थी। साइबर एक्सपर्ट की योग्यता के अनुसार इन्हें दो ग्रेड पर रखा जाएगा। साइबर क्राइम समेत इससे संबंधित विधा में पारंगत एक्सपट्र्स को 9 लाख और 7.50 लाख रुपए वार्षिक पैकेज दिए जाने की व्यवस्था की गई है। ये एक्सपर्ट साइबर क्राइम की रोकथाम और अपराधियों की धरपकड़ में राज्य साइबर सेल के मददगार बनेंगे। जिन्हें प्रदेश के 27 जगहों पर बतौर एक्सपर्ट नियुक्त किया जाता लेकिन साल बीत जाने के बाद भी इस मामले में कोई सुगबुगाहट नहीं है। मामला शासन के पास अभी भी प्रक्रियाधीन बताया जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि सरकार साइबर अपराधों को लेकर कितना चिंतित है।